Patthar Phenko, Sukhi Raho
Author | Gopal Chaturvedi |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9353222291 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.354 kg |
Edition | Ist |
Patthar Phenko, Sukhi Raho
इन पेशेवर पत्थर-फेंकुओं की एक और खासियत है कि बड़े होकर ऐसे नन्हे फूस में आग लगाकर चंपत होने में पारंगत हैं। उन्हें नजर बचाकर पत्थर फेंकने का बचपन से अभ्यास है और किसी भी ऐसी वारदात में भाग लेकर भाग लेने का भी। अनुभव के साथ इनमें से कुछ शारीरिक को तज कर शाब्दिक प्रहार में महारत हासिल करते हैं। ऐसों के करतब संसद्, विधानसभा और सार्वजनिक सभाओं की शोभा और आकर्षण हैं।पत्थर फेंकना कुछ का पेशा है तो बाकी का शौक। जब कोई अन्य निशाना नहीं मिलता है तो लोग एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। कई सियासी पुरुषों का यह पूर्णकालिक धंधा है। साहित्यकार भी इससे अछूते नहीं हैं। कुछ लेखन में जुटे हैं तो चुके हुए दूसरों पर पत्थर फेंकने में। कभी मौखिक, कभी लिखित शाब्दिक पत्थर का प्रहार बुद्धिजीवियों का मानसिक मर्ज है। कभी-कभी लगता है कि इसके अभाव में उन्हें साँस कैसे आएगी?—इसी पुस्तक सेहिंदी के वरिष्ठ लोकप्रिय व्यंग्यकार श्री गोपाल चतुर्वेदी के व्यंग्यों का यह नवीनतम संग्रह है। हमेशा की तरह समाज में फैली कुरीतियों, बढ़ते भ्रष्टाचार एवं उच्छृंखलता और राष्ट्र-समाज के हितों को ताक पर रखकर भयंकर स्वार्थपरतावाले माहौल पर तीखी चोटें मारकर वे हमें गुदगुदाते हैं, खिलखिलाने पर मजब���र करते हैं, पर सबसे अधिक हमें झकझोरकर जगा देते हैं।____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रम1. बचुआ, पलाश और लालबत्ती —Pgs.92. कैसे हो सड़क का नामकरण —Pgs.143. पलटू खुश क्यों होते हैं? —Pgs.204. चौटिल्य का शिक्षाशास्त्र —Pgs.265. मक्खी और आदमी —Pgs.326. सफलता के सूत्र और अंग्रेजी की अनिवार्यता —Pgs.387. स्वच्छ भारत अभियान के खतरे —Pgs.448. इक्कीसवीं सदी का प्लास्टिकी सौंदर्य-बोध —Pgs.519. सबकुछ माया है —Pgs.5710. भारत भिक्षा शिक्षा संस्थान —Pgs.6211. जमीन से जुड़े इनसान और नेता —Pgs.6812. भारत का नया मुखौटा उद्योग —Pgs.7513. अतीत के खँडहर —Pgs.8014. दीवाल पर टँगा आदमी —Pgs.8715. अपने-अपने भूकंप —Pgs.9316. वे मुसकराते क्यों नहीं हैं? —Pgs.9917. खोट खोज के खर-दूषण —Pgs.10418. दाढ़ी और देश —Pgs.11019. आजादी है फ्रीगीरी में —Pgs.11520. जनतंत्र से जाततंत्र की ओर —Pgs.12221. बलिहारी गुरु आपकी! —Pgs.12722. वसंत कौन है? —Pgs.13323. ठेकेदार का धर्म —Pgs.13824. साँझ के समझौते —Pgs.14425. किस्सा कूडे़दान का —Pgs.15126. सत्तापुर के नकटे —Pgs.15827. इनसान का सूरज बनने का स्वप्न —Pgs.16428. कमिश्नर का पर्स गुमा —Pgs.16929. मुरगे का मुगालता —Pgs.17630. आजादी के बाद इंतजार के आयाम —Pgs.18231. फुटपाथ के रैन बसेरे —Pgs.18732. दुर्घटना, सड़क और अफसर —Pgs.19133. आज की मुखौटा सदी —Pgs.19734. पत्थर फेंको, सुखी रहो —Pgs.203
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