Patheya
Author | JawaharLal Kaul |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9386001269 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.2 kg |
Edition | 1 |
Patheya
'दिव्य प्रेम सेवा मिशन' की कल्पना जैसे अनायास ही साकार हुई, वैसे ही मेरा उससे जुड़ना भी अनायास ही था। आत्म-साक्षात्कार के लिए निकले एक साधक के सामने अचानक कुष्ठ रोगियों के रूप में समाज खड़ा हो गया और 'दिव्य प्रेम मिशन' का जन्म हुआ। इस पुस्तक में पहाड़ों की संवेदनशीलता और पीड़ा की बातें हैं, जिन्हें हमारे पूर्वजों ने अरण्य नाम दिया, उन पर समाज और शासन के बीच तलवारें खिंचने की आशंकाएँ हैं, हिमानियों के लुप्त होने के खतरे, विकास के नाम पर प्रकृति के दोहन को शोषण में बदलने के कुचक्रों की दास्तान हैं। तीर्थों को निगलते पर्यटन स्थल, मलिनता के बीच तीर्थों की पवित्रता के दावे, अपनों से ही त्रस्त गंगा और ऐसी ही अनेक विचारणीय बातें हैं। बीच-बीच में महान् परिव्राजक विवेकानंद, योगी अरविंद, युगांतरकारी बुद्ध और स्वच्छता के पुजारी गांधी सरीखे लोगों की याद भी आती रही; जो पाथेय मिला, वह भौतिक नहीं, बौद्धिक और आध्यात्मिक था। वह बाँटकर ही फलित होता है, इसलिए आपके सामने है।________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमभूमिका — Pgs. 5खंड : एकमिशन1. संवेदनशील समाज — Pgs. 192. ऐसे हुआ, इस मिशन का जन्म — Pgs. 223. सेवा का फल, सेवा ही है — Pgs. 274. उदासीन समाज ह��गा तो सरकार भी उदासीन ही होगी — Pgs. 29खंड : दोक्षम्यताम5. हमने तुम्हें बेच दिया गंगा माँ — Pgs. 356. गंगा को अपनों ने ही छला है — Pgs. 417. जब दासी भी विद्रोह कर देती है — Pgs. 478. इस त्रासदी से हमने कुछ सीखा? — Pgs. 529. पर्यावरण की चिंता किसे है? — Pgs. 5510. अपनी संपत्ति की पहचान — Pgs. 5911. इस चुनाव में नदियों, वनों और पहाड़ों की भी सुनें — Pgs. 6212. पर्यावरण का भारतीय दृष्टिकोण — Pgs. 67खंड : तीनधर्म और संस्कृति13. मिथक तोड़ने का समय आ गया है — Pgs. 7514. प्रकृति की कोख में जन्मी है भारतीय संस्कृति — Pgs. 8015. धर्म संस्थापनार्थाय — Pgs. 8316. अमृत की कुछ बूँदों के लिए — Pgs. 8717. गौ-रक्षा और ग्राम-रक्षा — Pgs. 9118. मानस के दर्पण में कैलाश का स्फटिक — Pgs. 94खंड : चारसंत, योगी, दार्शनिक और बुद्ध19. सेवा योग के महायोगी — Pgs. 10120. योगी अरविंद की भविष्य दृष्टि — Pgs. 10421. शंकराचार्य आज भी प्रासंगिक हैं — Pgs. 10722. भारतीय संस्कृति के रक्षक थे महात्मा बुद्ध — Pgs. 11123. कथा उनके लिए एक साधन मात्र है — Pgs. 11524. आनंदविहीन पश्चिम में भारतीय संत — Pgs. 118खंड : पाँचविविधा25. तय करना होगा, युवा का लक्ष्य — Pgs. 12526. 1857 के विद्रोह की असफलता की सीख — Pgs. 12827. वे आजादी की नींव के पत्थर बने — Pgs. 13328. मध्यप्रदेश : जो यहाँ है और कहीं नहीं — Pgs. 13629. संबंधों की व्यापकता से बनता है व्यक्तित्व — Pgs. 14030. अस्थायित्व की आँधी में कैसे टिके रहें? — Pgs. 14331. हम, अंग्रेज और पश्चिमी सभ्यता — Pgs. 14632. पर्यटन उत्तराखंड का केंद्रीय कर्म है — Pgs. 15033. सुशासन चाहते हैं तो अपने ही तौर-तरीके विकसित करें — Pgs. 15434. स्वच्छता अभियान का श्रीगणेश हम खुद से करें — Pgs. 15735. मानव संसाधन हैं, लेकिन शिक्षा कहाँ है? — Pgs. 16036. किताबी शिक्षा ही नहीं, हाथों का हुनर भी चाहिए — Pgs. 164
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