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Pandit Radheshyam Kathawachak Rachit Natak 'Parivartan' (Play)
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पं. राधेश्याम कथावाचक के मन में 'परिवर्तन' नाटक लिखने से पूर्व कई प्रकार के विचार रहे होंगे। उनके सामने सन् 1857 का वह परिदृश्य भी होगा जहाँ अनेक गणिकायें नवाबों और राजाओं के दिलों पर राज करती थीं और शासन भी चलाती थीं। बेग़म हज़रत महल का .फलस.फा भी उनके सामने रहा होगा। पहले गायकी और नाचने वाली गणिकाओं का अपना चरित्र था। लोग सभ्यता सीखने के लिए इनके कोठे पर सम्मान से जाते थे। गणिकाओं के आवास सभ्यता की पाठशाला भी हुआ करते थे। कालान्तर में फिरंगियों द्वारा अपनी दावतों में इन गणिकाओं को बुलाने का सिलसिला शुरू हुआ और उनके देह-शोषण की कहानी भी। इस प्रकार गणिकाओंे का पवित्र पेशा वेश्यावृत्ति का रूप लेता गया जिससे गायकी का पेशा और कोठे बदनाम होते गए। यह उस समय की प्रमुख समस्या और सामाजिक बुराई थी, जो रईसों, नवाबों तथा आम और ख़ास में फैल रही थी। अनेक समाज-सुधारकों ने इस दिशा में कार्य किया और लेखकों ने अपनी कलम को धार दी। वेश्या समस्या पर लिखे गए उपन्यास और नाटकों की एक समृद्ध परम्परा है।
पं. राधेश्याम कथावाचक ने 'परिवर्तन' नाटक लिखकर समाज-सुधार की ओर कदम उठाया। वेश्या समस्या पर लिखा गया यह उनका पहला सामाजिक नाटक है, जिसकी मूल समस्या आज भी समाज में ज़िंदा है। महानगरों के बदनाम कोठे, कालगर्ल्स, सम-विषम लैंगिक संबंध, पोर्न ि.फल्में तथा समाज में सैक्स की भूख और उससे जुड़े अपराध समाज में असुरक्षा का महौल बना रहे हैं। अत: आज भी इस नाटक का सामाजिक महत्व है। यह नाटक पं. राधेश्याम कथावाचक की दूरदृष्टि का परिणाम है। 
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