एक
सुषमा को लगा कि नील आकर सिरहाने खड़ा हो गया है, फिर
उसने झुककर, धीरे-से उसके बाल छुए हैं। सुषमा चौंककर उठ
बैठी, चारों ओर घुप अँधेरा था। उसने काँपते हुए कंठ से पुकारा-
"नील!”
बरामदे में सोई हुई भौंरी खाँसी - सुषमा ने पाया कि वह अपनी
चारपाई पर उठकर बैठी हुई है और नील कहीं नहीं है । सब ओर
सन्नाटा है, भयावह, अकेला सन्नाटा। वह अकुलाकर खड़ी हुई और
उसने खिड़की पूरी खोल दी। बाहर से प्रकाश की एक फाँक आकर
उसके पैरों पर लोटने लगी और सुषमा छड़ों का ठंडा स्पर्श अनुभव
चार
फिर सुषमा कुछ काम से बाजार गई, तो वहाँ अचानक ही नील
मिल गया। उसे देख नील के चेहरे पर ऐसी मुस्कान आई, जैसे
कि उसे बहुत बड़ी निधि मिल गई है। आग्रह कर वह सुषमा को वहाँ
से एक रैस्ट्रॉ में ले गया और ऑर्डर देकर बोला, “आप नियति पर
विश्वास करती हैं?"
"क्यों?"
“मैं आज यही सोच रहा था कि अभी कल ही तो आपके साथ
गया था, आज कैसे जाऊँ? पर देखिए, आप ही मिल गईं।”
सुषमा को लगा कि नील की इस बात पर उसे बहुत बुरा लगना
बारह
अगले दिन नील का नौकर मीनाक्षी के पैकेट दे गया। सुषमा
थोड़ी-सी निराशा हुई। उसने सोचा था कि नील शायद स्वयं आ
जाए। दोपहर में नील ने सुषमा को फोन किया। फोन पर उसकी
आवाज बहुत बदल जाती थी और सुषमा को लगता था जैसे वह किसी
नए पुरुष से प्यार की बातें कर रही है। नील ने बताया कि वह फर्म
के काम से बम्बई जा रहा है, वहाँ कितने दिन लग जाएँ, निश्चय नहीं
था। उस वार्तालाप के बीच में मिस शास्त्री के आ जाने से सुषमा कह
भी न सकी। उसके रिसीवर रखते ही मिस शास्त्री बोल उठीं- “अब मुझे
होस्टल छोड़कर कहीं और ठिकाना ढूँढ़ना पड़ेगा। तुम्हें तो देखने-भालने