Pachas Kavitayen Nai Sadi Ke Liye Chayan Gangaprasad Vimal
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Author | Gangaprasad Vimal |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 108 |
ISBN | 978-9350723562 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.4 kg |
Edition | 1st |
Pachas Kavitayen Nai Sadi Ke Liye Chayan Gangaprasad Vimal
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पचास कविताएँ : नयी सदी के लिए चयन : गंगा प्रसाद विमल - बीसवीं शताब्दी के उठे दशक में युवा कविता का जो स्वर उभरा था उसने कविता की दुनिया में देशव्यापी हलचल मचायी थी। आलोचना के खेमों में उस नव्यता को आत्मसात करने की क्षमता नहीं थी। वह तो उन प्रवादों ने स्पष्ट किया जो अकादमिक दुनिया के चटखारों तक सीमित रहे, वह उस कविता के वस्तु तत्त्व और विन्यास को नासमझी के स्तर पर व्याख्यायित करते रहे। जबकि सत्य यह था कि आधी शताब्दी के स्थापत्य के प्रति विश्वव्यापी असहमति युवा स्वरों में उभरनी आरम्भ हुई थी और उसके व्यापक अर्थ फ्रांस, चीन, पूर्वी एशिया के अतिरिक्त अमेरिका और अन्य राष्ट्रों की सृजनात्मक कोशिशों में प्रतिबिम्बित हुए थे। उन्हीं कोशिशों का एक हिस्सा हिन्दी का भी था और गंगा प्रसाद विमल एक सृजनशील कवि की तरह अपनी भूमिका निभाते रहे। उनकी आरम्भिक कविताएँ, जिनके कुछेक दृष्टान्त इस संचयन में संकलित हैं उन प्रवादों और फतवों से एकदम अलग हैं और शायद अलग होने का यही गुणधर्मी स्वभाव ऐसी कविताओं के प्रति आज भी आश्वस्ति जगाता है। अपने दूसरे कामों के साथ गंगा प्रसाद विमल कविता की दुनिया से न तो बेदख़ल हुए और न गुमनामी की दिशा में पहुँचे। चुपचाप अपने सृजन के प्रति समर्पण की इस रेखा को आगे बढ़ाते रहे बिना यह परवाह किए कि साहित्यिक शिविरों में उन्हें किस तरह अनदेखा किया जा रहा है। अपने राजनैतिक रुझान का साहित्यिक फ़ायदा उठाने की कोई कोशिश भी उनकी कविताओं का विषय नहीं है। यहीं से देखना उचित होगा कि आखिर अन्य विधाओं में काम करते-करते एक सर्जक फिर कविता की ओर क्यों मुड़ आता है? हमारे समय के अनेक कवियों ने इसके उत्तर अपनी कविताओं में प्रस्तुत किये हैं। मनुष्य जीवन के सन्ताप और त्रासदियों क्या जैसी घटित हुई उन्हीं विवरणों में अपने उस चिरन्तन सत्य को संरक्षित करती है? या उनके भीतर प्रवेश कर यह देखना ज़्यादा लाज़िमी है कि आदमी के भीतर की पशुता को किस विवेक से परास्त किया जाय? कुछेक ऐसे सवाल है जिनके उत्तर वर्तमान व्यवस्थाओं के बूते के नहीं हैं। स्पष्ट है वह विवेक, वह दृष्टि मतवादों, फ़तवों और प्रवादों के घेरे से बाहर हैं। अपनी कविताओं में आम जनों से सम्बोधित 'खैनी में ख़ुश होते सत्तू में उत्सव मनाते लोगों को न भूलना ठीक वैसे ही जैसे' गपोड़े अन्तरिक्ष से पहाड़ बतियाते हैं। वे 'भविष्य के लोगों' से अनुरोध करते हैं कि जब तुम हत्यारों की सूची बनाओगे तो मुझे मत भूलना। उन्होंने स्पष्ट भी किया कि 'न सही' हत्याओं के वक़्त हथियार हाथों में नहीं थे परन्तु उस उपेक्षा में तो शामिल थे जिसने हत्यारों को सम्पुष्ट किया। गंगा प्रसाद विमल की कविताएँ सकारात्मकता की उन विरल छवियों को प्रस्तुत करती। हैं जिनमें उद्वेग की जगह अनुडंग की ऊष्मा है और वही ऊष्मा बराबर रोशनी में रहने की आतुरता को 'विजीविलिटी' नहीं मानती क्योंकि अँधेरे की सन्तप्तता उजालों के अँधेरों में ही बोधगम्य होती है। नयी कविता, सगरंग, आधार जैसी पत्रिकाओं से अपनी यात्रा शुरू करने वाले विमल की कविताएँ चेस्टर्न ह्यूमैनिटीज रिव्यू, मेडिटिरेरियन रिव्यू, न्यू डायमेंशन आदि विश्वविख्यात पत्रिकाओं के साथ-साथ विश्व की अनेक अग्रणी भाषाओं में अनूदित हुई हैं और उनके अनेक संकलन अन्य भाषाओं में भी प्रकाशित हुए हैं। अपनी कविताओं में प्रयोगधर्मी गुण के कारण ऐसा हुआ होगा या किसी अन्य कारण इसकी पड़ताल अपेक्षित है। अन्तिम आवरण पृष्ठ - कुछ कमी आकस्मिक नहींनियत है सब कुछफिर भी प्रमुदित हैं हमआकस्मिक प्राप्ति मेंजो है नहींभ्रम में हैंकिस्मत की तरहब्रह्माण्ड में नियम हैंनियत कुछ भीआकस्मिक नहींनियत है जन्मना और जानानियत है यह कहनाऔर सुनना। आकस्मिक...
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