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राजकिशोर के कविता-संग्रह 'पाप के दिन' में सामाजिक चिन्ताओं के अलावा ऐसे निजी सच हैं, जो बदलते समय को अनार की तरह खोलते हुए दरअसल स्वयं से जिरह के नतीजे हैं। जिन दिनों इतिहास का इस्तेमाल घृणा, परायापन और दूरियाँ बढ़ाने के लिए किया जा रहा है, राजकिशोर अपनी कविताओं... Read More
राजकिशोर के कविता-संग्रह 'पाप के दिन' में सामाजिक चिन्ताओं के अलावा ऐसे निजी सच हैं, जो बदलते समय को अनार की तरह खोलते हुए दरअसल स्वयं से जिरह के नतीजे हैं। जिन दिनों इतिहास का इस्तेमाल घृणा, परायापन और दूरियाँ बढ़ाने के लिए किया जा रहा है, राजकिशोर अपनी कविताओं में एक तरफ अपनी सभ्यता के दुख, उदासी और विडम्बना के चित्र देते हैं, दूसरी ओर अपने कवि-मन के उस मध्यवर्गीय पापबोध को उजागर करना नहीं भूलते जो चारों तरफ़ मची पुण्य और सुख की लूट के बीच एक अलग संकेत देता है। कविता को किसी उत्सव या अनुष्ठान में बदलने की जगह ज़िन्दगी की एक आत्मीय चीज़ तथा आदमी की बेचैनी और आनन्द की एक कलात्मक जगह के रूप में देखना और एक ऐसी गैर-व्यावसायिक जगह के रूप में लेना, जहाँ आदमी अभी भी अपने स्वप्न देख सकता है, मूल्यों की बात कर सकता है और आत्मविमुग्ध हुए बिना अपने अन्धकार में भी निर्मम होकर झाँक सकता है-राजकिशोर का कविता से इस तरह का नाता न केवल उनके संवेदनशील व्यक्तित्व के अनदेखे पहलुओं को उभारता है, कविता के दायरे को भी विस्तार देता है। हिन्दी पत्रकारिता को नया क्षितिज देने वाले राजकिशोर के लेखन की शुरुआत कविता से ही हुई थी। उनके बहुत-से पाठकों को सन्तोष की बात लग सकती है कि उनका कविकर्म जीवन के बीहड़ संघर्षों में भी थमा नहीं। ‘पाप के दिन' उनकी ज्ञानात्मक संवेदना में एक नये मोड़ की सूचना है। इस संग्रह की कविताओं में राजकिशोर किसी निष्क्रिय मनोव्यथा में फंसे रह जाने की जगह वैश्विक महाविपत्ति की तह में जाते हैं और हत्यारी दशाओं में आम आदमी के उत्तर-आधुनिक परायेपन का गहरा एहसास उजागर करते हैं। रोचक सूक्ति-कथन और व्यंग्य-विनोद से भरपूर ‘पाप के दिन' एक कवि की बेलौस आत्मकथा भर नहीं है। यहाँ सार्वजनिक और व्यक्तिगत, दोनों का आत्मीय अनुभव है। कवि ने छोटे सच के वैभव को पहचाना है और विभिन्न पीड़ाओं के बीच उसे ढलते-खड़े होते भी देखा है। उन्हें सिद्धान्त और आचरण के फर्क ने हमेशा परेशान किया। वे काव्यात्मक ईमानदारी से अपना भी ऑपरेशन करते हैं। उनकी कविताओं में आवेग नहीं, खुलापन है। वे दुख, उदासी और दुविधाओं से दबे आदमी में छिपे उस साहस की तलाश करते हैं जो कभी नहीं मरता। सब कुछ के बावजूद, उनकी कविताओं के माध्यम से यह जानना कितना आश्वस्तिकर है कि दुनिया सुन्दर है, लोग अच्छे हैं, घर खूबसूरत हैं और उपभोक्ता के अन्दर आदमी बचा हुआ है। -शंभुनाथ
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