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विश्वप्रसिद्ध ट्रॉय-युद्ध के महान योद्धा ओडिसियस की घर वापसी का वृत्तान्त है—‘ओडिसी’। प्राचीन यूरोप के महान रचनाकार होमर की कथाकारिता का बेमिसाल नमूना है। यह ग्रन्थ जिसकी विशेषताओं की पुनरावृत्ति परवर्ती कथाकारों से सम्भव नहीं हो सकी।
इस ग्रन्थ ने सम्पूर्ण विश्व के कथा साहित्य को प्रभावित किया है। इसका रचनाफलक व्यापक है जिसमें मानवीय सम्बन्ध, क्रिया-कलाप और समाज के सभी पक्षों का समावेश है।
नित परिवर्तनशील विश्व के सुख-दु:ख और संघर्षों के चित्रण के माध्यम से ‘ओडिसी’ में होमर ने जीवन और जगत् के यथार्थ को उजागर करते हुए यह रेखांकित किया है कि साहस, उत्साह और जिज्ञासावृत्ति से ही मनुष्य सफलता के शिखर पर पहुँचता है।
होमर के रचना-कौशल ने दृश्य-जगत् की वास्तविकताओं को कुछ इस तरह सहेजा है कि यह ग्रन्थ साहित्य ही नहीं अपितु इतिहास, पुरातत्त्व, समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र और मनोविज्ञान के खोजी विद्वानों के आकर्षण की वस्तु बन गया है।
जटिल संरचना के बावजूद ‘ओडिसी’ का कथाप्रवाह पाठकों का औत्सुक्य बनाए रखता है। अपनी इन विशेषताओं के कारण ही ई.पू. 850 के आसपास जन्मे होमर की यह कृति आज भी प्रेरणादायी बनी हुई है। Vishvaprsiddh trauy-yuddh ke mahan yoddha odisiyas ki ghar vapsi ka vrittant hai—‘odisi’. Prachin yurop ke mahan rachnakar homar ki kathakarita ka bemisal namuna hai. Ye granth jiski visheshtaon ki punravritti parvarti kathakaron se sambhav nahin ho saki. Is granth ne sampurn vishv ke katha sahitya ko prbhavit kiya hai. Iska rachnaphlak vyapak hai jismen manviy sambandh, kriya-kalap aur samaj ke sabhi pakshon ka samavesh hai.
Nit parivartanshil vishv ke sukh-du:kha aur sangharshon ke chitran ke madhyam se ‘odisi’ mein homar ne jivan aur jagat ke yatharth ko ujagar karte hue ye rekhankit kiya hai ki sahas, utsah aur jigyasavritti se hi manushya saphalta ke shikhar par pahunchata hai.
Homar ke rachna-kaushal ne drishya-jagat ki vastaviktaon ko kuchh is tarah saheja hai ki ye granth sahitya hi nahin apitu itihas, puratattv, samajshastr, rajnitishastr aur manovigyan ke khoji vidvanon ke aakarshan ki vastu ban gaya hai.
Jatil sanrachna ke bavjud ‘odisi’ ka kathaprvah pathkon ka autsukya banaye rakhta hai. Apni in visheshtaon ke karan hi ii. Pu. 850 ke aaspas janme homar ki ye kriti aaj bhi prernadayi bani hui hai.

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अनुक्रम

 1. प्रस्तावना : होमर और ओडिसी -7

2. देवसभा : टेलेमेकस और एथीनी -21

3. टेलेमेकस द्वारा प्रणययाचकों का विरोध -33

4. टेलेमेकस का नेस्टर से मिलना - 45

5. टेलेमेकस की मेनिलेयस एवं हेलेन से भेंट - 59 

6. कैलिप्सो - 82

7. नौसिकेया - 95

8. ऐलसिनोअस के महल में ओडिसियस - 104

9. फेयेशियनों के खेलकूद एवं नृत्य-संगीत - 113

10. ओडिसियस का अपनी कहानी शुरू करना : साइक्लॉप्स - 129

11. प्रेतात्माओं के लोक में ओडिसियस - 144

12. सिला और कैरिबडिस : सूर्यदेव के मवेशी - 159 

13. ओडिसियस का इथाका पहुँचना - 176 

14. ओडिसियस और शूकर- संरक्षक यूमिय* - 189 

15. टेलेमेकस का इथाका लौट आना - 201 

16. ओडिसियस और टेलेमेकस - 209 

17. भिखारी के भेस में ओडिसियस - 213 

18. राजमहल में भिखारी ओडिसियस- 216 

19. रानी और भिखारी : धाय यूरीक्लिया और ओडिसियस - 231 

20. ओडिसियस का प्रणययाचकों से प्रतिशोध - 244 

21. ओडिसियस और पिनेलपी - 261 

22. प्रणययाचकों की प्रेतात्माएँ : ओडिसियस और लेयरटीज़ : लड़ाई का अन्त - 273 

23. ओडिसियस का अपमान - 290 

24. धनुष - परीक्षा - 301 

25. ओडिसियस का प्रतिशोध- 313 

26. ओडिसियस और पिनेलपी - 327 

27. प्रणययाचकों की प्रेतात्माएँ : ओडिसियस और लेयरटीज़ : लड़ाई का अन्त - 338

 

प्रस्तावना : होमर और ओडिसी
इलियड के बाद होमर के दूसरे कालजयी महाकाव्य ओडिसी को हिन्दी में
पहली बार प्रस्तुत करते हुए मुझे अपार हर्ष और तोष का अनुभव हो रहा है।
हिन्दी इलियड की भूमिका में मैंने होमर की विस्तार से चर्चा की है
उन तथ्यों को यहाँ दोहराना अनावश्यक है, लेकिन ओडिसी के सम्बन्ध में
कुछ आधारभूत बातें बता देना उचित होगा
ओडिसी में ट्रॉय के महासमर के प्रख्यात योद्धा ओडिसियस के घर
लौटने की कथा कही गई है। ट्रॉय को ध्वस्त कर देने के पश्चात यवन
सेना के बचे हुए लड़ाकों में से हरेक की घर वापसी की कहानी दिलचस्प
और महत्त्वपूर्ण है। परन्तु सबसे रोचक, रोमांचक तथा लम्बी कथा ओडिसियस
की है जिसे होमर ने ओडिसी का कथानक बनाकर अमर कर दिया है
भले ही इलियड कला, कथाबंध एवं गठाव की दृष्टि से ओडिसी से श्रेष्ठ
है, किन्तु रोचकता, कथाशैली और कथानक की संरचना में ओडिसी
निश्चय ही उससे बीस पड़ता है कथाकारिता में ओडिसी ने जो ऊँचाई
हासिल की है, उसे छू पाना परवर्ती किसी कथाकार से सम्भव नहीं हो पाया
है और आज भी इसका महत्त्व अक्षुण्ण है इतिहास, पुरातत्त्व, समाजशास्त्र,
राजनीतिशास्त्र-यहाँ तक कि मनोविज्ञान के खोजी विद्वानों एवं जिज्ञासुओं
के लिए इलियड तथा ओडिसी का महत्त्व पहले से बढ़ा ही है।
हिन्दी पाठकों की सहूलियत के लिए पहले इसकी कथा संक्षेप में कह
देना ज़रूरी है। इसी से मालूम हो जाएगा कि इसकी संरचना कितनी जटिल
है। यही जटिलता कथा-प्रवाह को निरन्तर बनाए और पाठकों का औत्सुक्य
जगाए रखती है।
ओडिसियस यूनान के पश्चिमी तट पर स्थित इथाका नामक एक छोटे
और पथरीले टापू का राजा था। पिनेलपी से उसके विवाह के अधिक दिन
नहीं हुए थे और उसकी पहली सन्तान पुत्र टेलेमेकस अभी-अभी पैदा हुआ
था कि ट्रॉय का युद्ध शुरू हो गया जैसा कि सर्वविदित है, वह महासमर

ऐलसिनोअस के महल में ओडिसियस
धीर-वीर ओडिसियस वहाँ ऐसी विनती कर रहा था, जबकि राजकुमारी को दोनों
बलिष्ठ खच्चर शहर की ओर लिए जा रहे थे। पिता के भव्य महल पहुँच जाने पर
वह प्रवेशद्वार पर रुक गई। उसके चारों ओर उसके देवसदृश भाई इकट्ठे हो गए
और गाड़ी से खच्चरों को खोलकर कपड़े महल में ले गए। परन्तु राजकुमारी अपने
कक्ष में चली गई। वहाँ अन्तःपुर की दासी बूढ़ी यूरीमेडूसा ने उसके लिए आग जला
दी। बहुत पहले एपायरिया से वह दासी वक्र पोतों द्वारा ले आई और ऐलसिनोअस
को पारितोषिक के रूप में दे दी गई थी, क्योंकि ऐलसिनोअस समस्त फेयेशियनों का
राजा था और लोग उसे देवता मानकर उसकी आज्ञा का पालन करते थे। उसने ही
महल में नौसिकेया का लालन-पालन किया था। अब वह आग जलाकर भीतरी
प्रकोष्ठ में राजकुमारी के लिए रात का भोजन तैयार किया करती थी
उसी समय ओडिसियस नगर जाने को प्रस्तुत हो गया और एथीनी ने उसकी
भलाई के वास्ते उसके चारों तरफ़ घना कुहरा डाल दिया ताकि संयोग से यदि कोई
उद्धत फेयेशियन उसे मिल गया, तो कटु शब्दों में उसका परिचय पूछकर वह उसकी
हँसी उड़ा पाए। जब वह रमणीक नगर में प्रवेश करने ही वाला था कि एक
नवयुवती कुमारिका के रूप में सिर पर घड़ा लिए एथीनी उससे मिलने गई और
आकर उसके आगे खड़ी हो गई ओडिसियस ने उससे पूछा :
"बिटिया, क्या तू मुझे राजा ऐलसिनोअस, जो यहाँ के निवासियों का शासक
है, के महल का रास्ता दिखा सकती है? सुन, मैं दूर देश से यहाँ आया एक बड़ा
ही पथश्रान्त परदेशी हूँ, इसलिए इस नगर और इसके आसपास के इलाके के किसी
आदमी को नहीं जानता हूँ "
इस पर एथीनी ने उसे उत्तर दिया : पितातुल्य परदेशी, वह भवन तुम्हें
ज़रूर दिखा दूँगी जिसके बारे में तुम बोल रहे हो, क्योंकि वह मेरे कुलीन पिता के
मैं आगे-आगे चलूंगी। नज़र उठाकर किसी व्यक्ति को तो देखना और किसी
कुछ पूछना ही होगा। ऐसा इस कारण कि अजनबियों को यहाँ के बाशिन्दे पसन्द

 


 

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