नंगे पाँव बालक का उदय—एक आत्मकथा Nangey paanw balak ka uday: Ek atmakatha (Hindi)
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Item Weight | 285 Grams |
ISBN | 978-8172211370 |
Language | Hindi |
Publisher | Pharos Media |
Pages | 226 |
Book Type | Paperback |
Edition | 1st |
लेखक देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक, शिक्षा विशेषज्ञ, शिक्षा प्रबंधक, पद्मश्री प्रोफ़ेसर जलीस अहमद ख़ाँ तरीन का जन्म 6 अप्रैल 1947 को मैसूर में हुआ। उन्होंने 1967 से 2007 तक का समय मैसूर विश्वविद्यालय में शिक्षण एवं शोधकार्य में व्यतीत किया। 2001 से 2004 के दौरान कश्मीर विश्वविद्यालय के कुलपति रहे, फिर 2007 से 2013 के दौरान पांडिचेरी विश्वविद्यालय के कुलपति रहे और 2013 से 2015 के दौरान ही एस. अब्दुर्रहमान विश्वविद्यालय, चेन्नई के कुलपति रहे। वह मुस्लिम एजुकेशन सोसाइटी मैसूर के संस्थापक सचिव थे और फ़िल्हाल उसके अध्यक्ष हैं।
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नंगे पाँव बालक का उदय—एक आत्मकथा Nangey paanw balak ka uday: Ek atmakatha (Hindi)
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इस आप बीती में पद्मश्री प्रोफ़ेसर जलीस अहमद ख़ाँ तरीन ने अपने बचपन से लेकर अब तक के सारे संस्मरणों को मैसूर के मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार के एक अभावग्रस्त लड़के की प्रेरणादायक कहानी के रूप में वर्णित किया है, जिसने सात साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया, अपने पाँच भाई-बहनों के साथ अपनी माँ की देखरेख में परवरिश पाई, ज़िन्दगी के उतार-चढ़ावों का सामना किया, फिर भी संकल्प और दृढ़ता के साथ अपने लक्ष्यों को हासिल किया। उसने सर्वोच्च शैक्षणिक योग्यता प्राप्त की और एक प्रोफ़ेसर, एक राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित शोधकर्ता और भारत के तीन महत्वपूर्ण विश्वविद्यालयों का कुलपति बना। इस किताब में स्कूल के आरंभिक दिनों से लेकर कश्मीर जैसे देश के सबसे अशांत इलाक़ों के साथ-साथ दक्षिण जैसे शांत इलाक़ों में बतौर शोधकर्ता एवं तीन विश्वविद्यालयों के कुलपति के रूप में उसके जीवन के दिलचस्प अनुभवों का लेखा-जोखा है। वास्तव में यह किताब जीवन की उन अदृश्य पेचीदगियों को चित्रित करती है जो भारत के विविधतापूर्ण सामाजिक परिवेश के समान हैं। लेखक ने पुरानी और नई पीढ़ी को जोड़ने का प्रयास किया है और ज़िन्दगी में आनेवाली हर अड़चन को सफलता के अवसर में बदलकर युवाओं को प्रेरित किया है। उन्होंने अपनी किताब में भारतीय विश्वविद्यालयी प्रणाली में मौजूद ख़ामियों, भारतीय विश्वविद्यालयों में परिसर राजनीति की गतिशीलता, भारतीय समाज में अतिवाद, एक बड़ी शांतिप्रिय एवं संयत आबादी द्वारा सांप्रदायिक पसन्द-नापसन्द का सामना करने और उनमें सन्तुलन स्थापित करने, मदरसों के आधुनिकीकरण की ज़रूरत, और मुस्लिम महिलाओं के लिए शिक्षा का महत्त्व जैसे कई विविध और दिलचस्प मुद्दों का विस्तार से वर्णन किया है। लेखक के अनुभव और उनकी सफलता की दास्तानें इस किताब को अकैडमिक विभूतियों, संस्थानों के प्रमुखों और आधुनिक युग के युवाओं के लिए एक अनिवार्य पठन सामग्री बनाती हैं।
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