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Nithalle Ki Diary
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हरिशंकर परसाई हिन्दी के अकेले ऐसे व्यंग्यकार रहे हैं जिन्होंने आनन्द को व्यंग्य का साध्य न बनने देने की सर्वाधिक सचेत कोशिश की। उनकी एक-एक पंक्ति एक सोद्देश्य टिप्पणी के रूप में अपना स्थान बनाती है। स्थितियों के भीतर छिपी विसंगतियों के प्रकटीकरण के लिए वे कई बार अतिरंजना का आश्रय लेते हैं, लेकिन, तब भी यथार्थ के ठोस सन्दर्भों की धमक हमें लगातार सुनाई पड़ती रहती है। लगातार हमें यह एहसास होता रहता है कि जो विद्रूप हमारे सामने प्रस्तुत किया जा रहा है, उस पर सिर्फ ‘दिल खोलकर’ हँसने की नहीं, थोड़ा गम्भीर होकर सोचने की हमसे अपेक्षा की जा रही है। यही परसाई के पाठ की विशिष्टता है।
‘निठल्ले की डायरी’ में भी उनके ऐसे ही व्यंग्य शामिल हैं। आडंबर, हिप्पोक्रेसी, दोमुँहापन और ढोंग यहाँ भी उनकी क़लम के निशाने पर हैं। Harishankar parsai hindi ke akele aise vyangykar rahe hain jinhonne aanand ko vyangya ka sadhya na banne dene ki sarvadhik sachet koshish ki. Unki ek-ek pankti ek soddeshya tippni ke rup mein apna sthan banati hai. Sthitiyon ke bhitar chhipi visangatiyon ke praktikran ke liye ve kai baar atiranjna ka aashray lete hain, lekin, tab bhi yatharth ke thos sandarbhon ki dhamak hamein lagatar sunai padti rahti hai. Lagatar hamein ye ehsas hota rahta hai ki jo vidrup hamare samne prastut kiya ja raha hai, us par sirph ‘dil kholkar’ hansane ki nahin, thoda gambhir hokar sochne ki hamse apeksha ki ja rahi hai. Yahi parsai ke path ki vishishtta hai. ‘nithalle ki dayri’ mein bhi unke aise hi vyangya shamil hain. Aadambar, hippokresi, domunhapan aur dhong yahan bhi unki qalam ke nishane par hain.

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अनुक्रम

 

निठल्लेपन का दर्शन - 7

शिवशंकर का केस - 12

रामभरोसे का इलाज - 18 

युग की पीड़ा का सामना - 25

राष्ट्र का नया बोध - 31 

प्रेमी के साथ एक सफर - 37

वाक आउट ! स्लीप आउट ! ईट आउट ! - 43

सर्वोदय-दर्शन - 48

साहब का सम्मान - 51

पहला पुल - 56

'कोई सुनने वाला नहीं है !' - 61

निठल्लेपन का दर्शन
निठल्ला भी कहीं डायरी लिखने का काम करेगा? 
असम्भव !

उसी
तरह अविश्वसनीय जैसे यह कि तुलसीदास 'रामचरितमानस' की पांडुलिपि
टाइप करते पाए गए।
या यह कि तुकाराम पियानो पर अपने अभंग गाते थे। मगर निठल्ले-निठल्ले में फर्क है-
जैसे इनकमटैक्स विभाग के ईमानदार और शिक्षा विभाग के ईमानदार में फर्क
होता हैगो ईमानदार दोनों हैं।
यह निठल्ला कुछ भिन्न किस्म का था। पूरी डायरी पढ़ने से ऐसा मालूम होता
है कि वहनिठल्ला' के नाम से इसलिए बदनाम था कि वह लगातार कोई काम नहीं
करता था। अगर वह लगातार चौराहे पर खड़े होकर लोगों को मुँह चिढ़ाने का काम

 

साहब का सम्मान
जो अखबार में छपा :
कल रात को स्थानीय बड़ा बाजार स्थित 'शान्ति भवन' में नगर के कपड़ा-
व्यापारियों की ओर से आयकर अफसर श्री देवेन्द्र कुमार 'सरसिज' का उनकी
साहित्य-सेवाओं के लिए सम्मान किया गया। 'सरसिज' जी का अभिनन्दन करते
हुएवस्त्र-व्यापारी संघ' के अध्यक्ष सेठ बाबूलालजी ने कहा कि 'सरसिज' जी
एक महान कवि और लेखक हैं; उन्होंने उत्तम कविताओं से माँ भारती की
गोद भरी है। कालिदास और रवीन्द्र की महान परम्परा के कवि को पाकर यह नगर
धन्य हो गया है। सम्मान का उत्तर देते हुए 'सरसिज' जी ने कहा कि मेरा सम्मान
करके आपने वास्तव में कला की देवी माँ सरस्वती का सम्मान किया है। मैं
आपका अत्यन्त आभारी हूँ। मैं नहीं जानता कि किस प्रकार आपकी इस कृपा का
बदला चुकाऊँ

 

 
नगर-पालक
सभा भरी थी 
मंच पर से म्युनिसिपैलिटी में विरोधी दल के नेता और शहर के सबसे बड़े
गल्ला व्यापारी सेठ गोपालदास भाषण दे रहे थे वे सिर पर टोपी की जगह कफन
लपेटे थे।
उनके मुख से ऐसे अंगारे बरस रहे थे कि दो बार माइक फेल हो चुका था। एक
बार उन्होंने क्रोध से ऐसा झपटा मारा कि वह नीचे गिर पड़ा।
वे कह रहे थे, ‘“मैं आज कफन लपेटकर निकला हूँ। यह कफन मैंने सत्ताधारी
पक्ष के नेता की दुकान से खरीदा है। मैंने जनता के भले के लिए प्राण देने का
संकल्प कर लिया है। मैं सरेआम जनता के हितों की हत्या नहीं देख सकता जनता
ने हमें चुनकर म्युनिसिपैलिटी में भेजा है और हमारा नैतिक कर्तव्य है कि हम
उसकी सेवा करें। जब-जब हमने सत्ता सँभाली, हमने सर्वस्व त्यागकर नगर की

 

 

Customer Reviews

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d
dinesh gupta
jarror padhein

Parsai ji ka koi jod nahi hai. vyngya lekhan me unko maharath hasil hai

M
Manmohan Singh Bashera
इसमें सिर्फ हास्य ही नहीं अपितु बहुत कुछ है

हलाकि यह किताब काफी वर्षो पहले लिखी गयी थी परन्तु आज के कालखंड में भी बिलकुल सही बैठती है।
यह सिर्फ व्यंग मात्र नहीं है अपितु आपको सोचने पर भी विवश कर देती है।

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