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जाँ निसार अख़्तर
फरवरी, 1914 को खैराबाद, ज़िला—सीतापुर में जन्म हुआ। पिता मुज़्तर खैराबादी उर्दू के प्रसिद्ध कवियों में से थे और घर का वातावरण साहित्यिक होने के कारण उनमें बचपन से ही शे’र कहने की रुचि पैदा हुई और दस-ग्यारह वर्ष की आयु से कविता करने लगे। सन् 1939 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के बाद विक्टोरिया कॉलेज, ग्वालियर में उर्दू के प्राध्यापक नियुक्त हुए, किन्तु 1947 में साम्प्रदायिक दंगे छिड़ जाने से त्याग-पत्र देकर भोपाल चले गए और वहाँ हमीदिया कॉलेज के उर्दू-फ़ारसी विभाग के अध्यक्ष बने। फिर 1950 में वहाँ से त्याग-पत्र देकर बम्बई चले गए। प्रारम्भ के रूमानी काव्य में धीरे-धीरे क्रान्तिकारी तत्त्वों का मिश्रण होता गया और वे यथार्थवाद की ओर बढ़ते गए। साम्राज्यवाद का विरोध और स्वदेश-प्रेम की भावना से इनकी कविता ओत-प्रोत रही। दूसरा महायुद्ध, आर्थिक दुर्दशा, राजनीतिक स्वाधीनता, विश्वशान्ति और ऐसी ही अनेक घटनाएँ हैं जिनको ‘अख़्तर’ ने वाणी प्रदान की। आज के जीवन-संघर्ष को वे कल के नव-निर्माण का सूचक मानते थे। उनके काव्य में सामाजिक यथार्थ का गहरा बोध परिलक्षित होता है और उनके काव्य का लक्ष्य वह मानव है जो प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सुन्दर, सरस और सन्तुलित जीवन के निर्माण के लिए संघर्षशील है। उनके कला-बोध की परिपक्वता एक ओर तो उनकी सम्पन्न विरासत और दूसरी ओर उर्दू-फ़ारसी साहित्य के गहन अध्ययन की देन है। प्रस्तुत पुस्तक का विषय-चयन तथा काव्य-सम्‍पादन उनकी उपर्युक्त विशेषताओं का ही परिणाम है। वे वर्षों फ़िल्म-जगत से सम्बद्ध रहे और उनके अनेक फ़िल्मी गीत विशेषतः लोकप्रिय हुए।
निधन: 18 अगस्त, 1976 Jan nisar akhtarPharavri, 1914 ko khairabad, zila—sitapur mein janm hua. Pita muztar khairabadi urdu ke prsiddh kaviyon mein se the aur ghar ka vatavran sahityik hone ke karan unmen bachpan se hi she’ra kahne ki ruchi paida hui aur das-gyarah varsh ki aayu se kavita karne lage. San 1939 mein aligadh muslim vishvvidyalay se em. e. Karne ke baad viktoriya kaulej, gvaliyar mein urdu ke pradhyapak niyukt hue, kintu 1947 mein samprdayik dange chhid jane se tyag-patr dekar bhopal chale ge aur vahan hamidiya kaulej ke urdu-farsi vibhag ke adhyaksh bane. Phir 1950 mein vahan se tyag-patr dekar bambii chale ge. Prarambh ke rumani kavya mein dhire-dhire krantikari tattvon ka mishran hota gaya aur ve yatharthvad ki or badhte ge. Samrajyvad ka virodh aur svdesh-prem ki bhavna se inki kavita ot-prot rahi. Dusra mahayuddh, aarthik durdsha, rajnitik svadhinta, vishvshanti aur aisi hi anek ghatnayen hain jinko ‘akhtar’ ne vani prdan ki. Aaj ke jivan-sangharsh ko ve kal ke nav-nirman ka suchak mante the. Unke kavya mein samajik yatharth ka gahra bodh parilakshit hota hai aur unke kavya ka lakshya vah manav hai jo prkriti par vijay prapt kar sundar, saras aur santulit jivan ke nirman ke liye sangharshshil hai. Unke kala-bodh ki paripakvta ek or to unki sampann virasat aur dusri or urdu-farsi sahitya ke gahan adhyyan ki den hai. Prastut pustak ka vishay-chayan tatha kavya-sam‍padan unki uparyukt visheshtaon ka hi parinam hai. Ve varshon film-jagat se sambaddh rahe aur unke anek filmi git visheshatः lokapriy hue.
Nidhan: 18 agast, 1976

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क्रम

1. सम्पादकीय - 13
2. दूर कोई रात भर गाता रहा - 25
3. वफ़ा की लाज रह जाए... - 26
4. ये सितारे ये चाँद ये रातें जवाँ - 27
5. नज़रें मिला के वो हमें - 28
6. झुक के ज़मीं चूम रहा आसमाँ - 29
7. अब दिन डूब गयो राजा पहाड़न में - 30
8. अजीब रंग है - 30
9. ठुकरा के हमें यूँ न जा - 32
10. अब ये बता जाएँ कहाँ - 33
11. मैं भी जवाँ - 34
12. पिया पिया पिया मेरा जिया पुकारे - 34
13. फूल से गालों पे - 35
14. रात रंगीली - 36
15. कहे दिल ये दीवाना - 37
16. तुम न आए घटा ग़म की छाने लगी - 38
17.  फूट आपस में पड़ी... - 39
18.दीवाना दिल गाए - 39
19. जाने भी दो छोड़ ये बहाना - 41
20. ;तू न बता - 42
21. मुझपे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई है - 43

27; कितने सितम - 77

28 यहाँ हम वहाँ तुम - 79

29 वो जो चाहने वाले हैं तेरे सनम - 81

30 किया ये क्या तूने इशारा... - 81

31 अरे मेरा बालम - 82

32 तू दिल मेरा लौटा दे - 84

33 चोर लुटेरे डाकू - 86

34 मिलें जो राह में छेड़ें वो मुस्करा के मुझे - 87

35 किसी का नाम जो... - 87

36 ये समाँ फिर कहाँ - 88

37 जान सके तो जान - 89

38 छाया है समाँ.... - 92

39 हो सैंया जा जा जा जा जा - 93

40 हमसे भी आते-जाते - 94

41 यूँ ही बातें न बना तू - 95

42 कुछ तो ऐसी बात कर ज़ालिम - 95

43 मुझको बार-बार याद ना आ - 97

44 पिया मैं हूँ पतंग तू डोर - 98

45 हो मैं रात गुज़ारी - 99

46 मन मोरा बावरा - 100

47 इस दुनिया से निराला हूँ - 100

48 छेड़ दिए मेरे दिल के तार क्यूँ - 101

49 दिल तोड़ने वाले बता के जा - 101

50 मुड़-मुड़ हमको देखता - 102

51 आज मैंने जाना - 103

52 बच बच बच - 104

53  मेरी अँखियों में अँखियाँ... - 104

54 सितारे राह तकते हैं... - 106

55 नशे में हम नशे में तुम - 107

56 कोई इक़रार करे... - 107

57 आओ हम प्यार करें - 109

58 मेरे बाबू रहे किस फेर में - 110

 

शिकायत
[1948]


दूर कोई रात भर गाता रहा
तेरा मिलना मुझको याद आता रहा
इस तरह कुछ उसने छेड़ा दिल का साज़
देर तक हर तार थर्राता रहा
हुस्न पर तासीर-ए-ग़म होती रही
इक शगुफ़्ता फूल कुम्हलाता रहा
हम भी ज़ब्त-ए-दर्द-ओ-ग़म करते रहे
वो भी अपने दिल को समझाता रहा
हम न आए फिर चमन में लौट कर
मौसम-ए-गुल बार-बार आता रहा

 

मिस्टर लम्बू
[1956]


कितने सितम
कितने ही ग़म
भूल गए हाय
तुम्हारे लिए हम
कितने सितम...
तुमने बनाया दिल को निशाना
हमने ज़बाँ से कुछ भी कहा ना
तड़पे जो प्यार है
दिल को क़रार है
अपनी क़सम
कितने सितम...
कब से है दिल को चाह तुम्हारी
तुमने न पूछी बात हमारी
इतना गुरूर क्या
दिल का कुसूर क्या
बोलो सनम
कितने सितम...

 

रामू उस्ताद
[1971]


पिया पिया पिया
मोरा मन प्यासा रे
मोहे गरवा तो लगा जा हो
हो पिया ऐसा भी क्या
ज़ुल्मवा
पिया पिया पिया...
छलके जोबनवा जवाँ
काहे देखे-देखे ना
होंठ रस में ढले नैन मदिरा पिए
सारे अंगों का जादू है तोरे लिए
पिया पिया पिया...
चंचल नज़र की जुबाँ
काहे जाने-जाने ना
हाय इतना ना तरसा कि कहना पड़े
मोहे बाँहों में ले ले तो चैना पड़े
पिया पिया पिया...

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