Nath Sampraday (Itihas Evam Darshan)
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Item Weight | 400 Grams |
ISBN | 978-8186103517 |
Author | Yogi Hukam Singh Tanwar |
Language | Hindi |
Publisher | Rajasthani Granthagar |
Pages | NA |
Book Type | Paperback |
Publishing year | 2018 |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Nath Sampraday (Itihas Evam Darshan)
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नाथ सम्प्रदाय इतिहास एवं दर्शन : नाथ सम्प्रदाय के संबंध में महामना डॉ. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, राहुल सांकृत्यायन, रांगेय राघव, सोहनसिंह सोलंकी, पण्डित रामप्रसाद शुक्ल, आचार्य रजनीश और पाश्चात्य विद्वानों में जॉर्ज डब्ल्यू. ब्रिग्स, गियर्सन व टेसीटोरी के शोध कार्य के समक्ष इस रचना की ना तो आवश्यकता थी ना कोई महत्त्व ह���। इसीलिये नाथ योगियों की वेशभूषा, गुरूओं के प्रकार (चोटी गुरु, चीरा गुरु, मन्त्र गुरु, उपदेश गुरु आदि) और शिष्यों का नामकरण (प्रेमपट्ट, राजपट्ट और जोगपट्ट) जैसे विषयों के तथ्य एवं जानकारी एकत्रित करने के पश्चात भी हमने इन विषयों को सम्मिलित नहीं किया है। वस्तुतः यह विषय इतना विशाल है कि, इसके एक-एक तथ्य पर एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है। लेखक का प्रयास उन अनछुए प्रसंग, अनर्गल टिप्पणियों व आधारहीन कथानकों के संबंध में अन्वेषण व गवेषणा करना रहा है जो नाथयोगियों के संबंध में स्वार्थी तत्वों द्वारा प्रचारित की गयी है।सर्वोपरि तथ्य यह है कि, गोरक्षनाथ और उनके द्वारा प्रवर्तित नाथ सम्प्रदाय के संबंध में तथ्यात्मक जानकारी इस भू-मण्डल में इस तरह बिखर कर खो गयी है कि, नेपाल नरेश पृथ्वीनारायण शाह को वरदान और अभिशाप की कथा की तरह नित्य नये तथ्य सामने आ रहे हैं। बडे़-बडे़ विद्वान लेखकों के शोध भी इस विषय की एकमुश्त जानकारी दे पाने में असमर्थ रहे हैं, फिर मैं तो एक नौकरीपेशा और पद सोपान के क्रम में बहुत नीचे की सीढी पर सेवा के दायित्व से सीमित समय व संसाधनों वाला सामान्य व्यक्ति हूं। इसलिये जानकारी के प्रयास मेरे पेशे के अनुरूप नहीं होने से इस ग्रन्थ में तथ्यों की कमी स्वाभाविक है। इस सम्प्रदाय का अनुयायी होने के कारण कथित प्रतिस्पर्धी सम्प्रदायों के प्रति मेरी भाषा व शैली में उग्रता का दोष हो सकता हैं, किन्तु इतना अवश्य है कि, जो भी तथ्य दिये गये हैं वे वेद, स्मृति, धर्मयुक्त प्रमाणित वचन कहने वाले महापुरुषों, निश्छल-निर्लिप्त व निष्पक्ष जन साधारण की किंवदन्ती व परम्पराओं का आधार लिये हुए है। इन तथ्यों को अपने पेशे के अनुरूप तर्क के प्रकाश में जांचने-परखने का प्रयास नितान्त रूप से व्यक्तिगत इसलिये नहीं है कि, गत 20 वर्षों से निरन्तर इस विषय की चर्चा के दौरान इस सम्प्रदाय के वर्तमान पीठाधीश्वरों के अतिरिक्त स्वतन्त्र लेखक, समीक्षक और अधिवक्ताओं से होती रही। नाथ सम्प्रदाय से संबद्ध और सत्य कहें तो हितबद्ध व्यक्तियों की सहमति को विस्मृत कर दें तो भी अन्य किसी के द्वारा कोई तार्किक खण्डन नहीं किया जा सका। बल्कि अधिकांश का तो मानना यह रहा कि आमेर के इतिहास के नव प्राकट्य से जोधाबाई के संबंध में सदियों से चली आ रही भ्रांति समाप्त होगी और जयपुर राजघराने पर लगे हुए लांछन का समापन होगा।RelatedTRUE
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