Na Gopi, Na Radha
Author | Rajendra Mohan Bhatnagar |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9386300058 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.463 kg |
Na Gopi, Na Radha
न गोपी, न राधा ' डॉ. राजेंद्रमोहन भटनागर का अप्रनिम उपन्यास हें । मीरा न गोपी थी, न राधा । वह मीरा ही थी । अपने आपमें मीरा होने का जो अर्थ- सौभाग्य है, वह न गोपियों को मिला था और न राधा को । वह अर्थ-सौभाग्य क्या था, यही इस उपन्यास का मर्म है ।इसी मर्म की जिज्ञासा ने डॉ. भटनागर को मसि पर तीन उपन्यास लिखने की प्रेरणा दी-' पयस्विनी मीरा ', ' श्यामप्रिया ' और ' प्रेमदीवानी ' । अचरज यह है कि ये सभी उपन्यास एक-दूसरे से पूर्णतया भिन्न हैं- कथ्य, चरित्र और भाषा -शैली में । इनमें यह उपन्याम तो इन सबसे मूलत : भिन्न है । इसमें मीरा का चरित्र एक वीर क्षत्राणी का है और भक्तिन- समर्पिता का । विद्रोह में समर्पण की सादगी यहाँ, द्रष्टव्य है ।पहली बार मीरा का द्वारिका पड़ाव जीवंत हुआ है । पहली बार मीरा का प्रस्तुतिकरण उनके पदों, लोक-कथाओं, बहियों आदि के माध्यम से सामने आया है । पहली बार मीरा का मेवाड़ी, मारवाड़ी, व्रज, गुजराती और राजस्थानी भाषिक बोली संस्कार मुखर हुआ हैं-नाहिं, नहिं, नाँय, कछु, कछू आदि को अपने में समेटे हुए । पहली बार मीरा को मीरा होने का यहाँ मौलिक अधिकार है ।
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