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Meerabai

Rashim

Rs. 80 – Rs. 150

मीराबाई -मीराबाई सगुण भक्ति की प्रभावशाली कवयित्री हैं। उन्होंने सिर्फ़ प्रेम के बलबूते पर असाधारण जीवन का निर्वाह किया, जो आसान न था, उस समय तो बिलकुल भी नहीं, जब राजघराने की स्त्रियों पर क्रूर बन्दिशों और लोकलाज तथा मान-मर्यादा की तलवारें खिंची रहती थीं, लेकिन मीरा ने किसी की... Read More

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Rs. 150
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मीराबाई -मीराबाई सगुण भक्ति की प्रभावशाली कवयित्री हैं। उन्होंने सिर्फ़ प्रेम के बलबूते पर असाधारण जीवन का निर्वाह किया, जो आसान न था, उस समय तो बिलकुल भी नहीं, जब राजघराने की स्त्रियों पर क्रूर बन्दिशों और लोकलाज तथा मान-मर्यादा की तलवारें खिंची रहती थीं, लेकिन मीरा ने किसी की कोई परवाह नहीं की। उन्होंने वही किया जो उनके गिरधर गोपाल ने स्वीकार किया।किताब में लेखिका ने मीरा के उन सभी प्रसंगों और घटनाओं का सिलसिलेवार वर्णन किया है, जिनके रहते वे कृष्ण की प्रेम-दासी होती चली गयीं और भक्ति भाव में कविता, पद आदि लिखती गयीं, जो आज भारतीय साहित्य की अमूल्य निधि के रूप में संग्रहीत हैं।मीराबाई उदात्त चरित्र की महिला थीं। उन्होंने कृष्ण के अलावा किसी के सामने अपना सिर नहीं झुकाया। पति की मृत्यु के बाद उस समय की चली आ रही राजसी परम्परा में उन्होंने सती होना स्वीकार नहीं किया। स्त्री में कृष्ण प्रेम का इतना विराट और भव्य रूप मीराबाई के अलावा अन्य किसी में पाना दुर्लभ है। इसलिए, वे कृष्ण-भक्ति काव्य की सर्वमान्य कवयित्री के रूप में प्रतिष्ठित तो हैं ही, समाज में उनके कृष्ण-प्रेम की बड़ी ही कारुणिक और मार्मिक छवि अंकित है।लेखिका ने इन सभी पक्षों पर बड़े ही सलीके से लिखा है, जिसके कारण यह पुस्तक बच्चों और युवाओं के लिए बेहद पठनीय बन पड़ी है।
Description
मीराबाई -मीराबाई सगुण भक्ति की प्रभावशाली कवयित्री हैं। उन्होंने सिर्फ़ प्रेम के बलबूते पर असाधारण जीवन का निर्वाह किया, जो आसान न था, उस समय तो बिलकुल भी नहीं, जब राजघराने की स्त्रियों पर क्रूर बन्दिशों और लोकलाज तथा मान-मर्यादा की तलवारें खिंची रहती थीं, लेकिन मीरा ने किसी की कोई परवाह नहीं की। उन्होंने वही किया जो उनके गिरधर गोपाल ने स्वीकार किया।किताब में लेखिका ने मीरा के उन सभी प्रसंगों और घटनाओं का सिलसिलेवार वर्णन किया है, जिनके रहते वे कृष्ण की प्रेम-दासी होती चली गयीं और भक्ति भाव में कविता, पद आदि लिखती गयीं, जो आज भारतीय साहित्य की अमूल्य निधि के रूप में संग्रहीत हैं।मीराबाई उदात्त चरित्र की महिला थीं। उन्होंने कृष्ण के अलावा किसी के सामने अपना सिर नहीं झुकाया। पति की मृत्यु के बाद उस समय की चली आ रही राजसी परम्परा में उन्होंने सती होना स्वीकार नहीं किया। स्त्री में कृष्ण प्रेम का इतना विराट और भव्य रूप मीराबाई के अलावा अन्य किसी में पाना दुर्लभ है। इसलिए, वे कृष्ण-भक्ति काव्य की सर्वमान्य कवयित्री के रूप में प्रतिष्ठित तो हैं ही, समाज में उनके कृष्ण-प्रेम की बड़ी ही कारुणिक और मार्मिक छवि अंकित है।लेखिका ने इन सभी पक्षों पर बड़े ही सलीके से लिखा है, जिसके कारण यह पुस्तक बच्चों और युवाओं के लिए बेहद पठनीय बन पड़ी है।

Additional Information
Book Type

Hardbound, Paperback

Publisher Jnanpith Vani Prakashan LLP
Language Hindi
ISBN 978-9326355346
Pages 64
Publishing Year 2017

Meerabai

मीराबाई -मीराबाई सगुण भक्ति की प्रभावशाली कवयित्री हैं। उन्होंने सिर्फ़ प्रेम के बलबूते पर असाधारण जीवन का निर्वाह किया, जो आसान न था, उस समय तो बिलकुल भी नहीं, जब राजघराने की स्त्रियों पर क्रूर बन्दिशों और लोकलाज तथा मान-मर्यादा की तलवारें खिंची रहती थीं, लेकिन मीरा ने किसी की कोई परवाह नहीं की। उन्होंने वही किया जो उनके गिरधर गोपाल ने स्वीकार किया।किताब में लेखिका ने मीरा के उन सभी प्रसंगों और घटनाओं का सिलसिलेवार वर्णन किया है, जिनके रहते वे कृष्ण की प्रेम-दासी होती चली गयीं और भक्ति भाव में कविता, पद आदि लिखती गयीं, जो आज भारतीय साहित्य की अमूल्य निधि के रूप में संग्रहीत हैं।मीराबाई उदात्त चरित्र की महिला थीं। उन्होंने कृष्ण के अलावा किसी के सामने अपना सिर नहीं झुकाया। पति की मृत्यु के बाद उस समय की चली आ रही राजसी परम्परा में उन्होंने सती होना स्वीकार नहीं किया। स्त्री में कृष्ण प्रेम का इतना विराट और भव्य रूप मीराबाई के अलावा अन्य किसी में पाना दुर्लभ है। इसलिए, वे कृष्ण-भक्ति काव्य की सर्वमान्य कवयित्री के रूप में प्रतिष्ठित तो हैं ही, समाज में उनके कृष्ण-प्रेम की बड़ी ही कारुणिक और मार्मिक छवि अंकित है।लेखिका ने इन सभी पक्षों पर बड़े ही सलीके से लिखा है, जिसके कारण यह पुस्तक बच्चों और युवाओं के लिए बेहद पठनीय बन पड़ी है।