Meena Samaj Ki Kuldeviyan
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Item Weight | 400 Grams |
ISBN | -: 9789385593628 |
Author | Raghunath Prasad Tiwari |
Language | Hindi |
Publisher | Rajasthani Granthaghar |
Pages | NA |
Book Type | Paperback |

Meena Samaj Ki Kuldeviyan
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मीणा समाज की कुलदेवियांमानव आदिकाल से ही शक्ति की उपासना करता आया है। शक्ति का आदि स्वरूप देवी है। यह आद्याशक्ति सनातन शक्ति प्रकृति है, समस्त जगत की उत्पत्ति उसी से हुई, वही विश्व की जननी है। Meena Samaj Ki Kuldeviyanall in all प्रत्येक सम्प्रदाय में देवी की उपासना परम्परा रही है। भारतीय संस्कृति में देवी की महिमा प्रतिष्ठापित है तथा समाज में देवी पूजा की जड़े बहुत गहरी हैं। प्रत्येक कुल की अधिष्टात्री देवी को कुलदेवी के रूप में पूजने की यहाँ परम्परा रही है। for that reason हर कुल की अपनी कुलदेवी स्थापित है और वह उस कुल की वंश वृद्धि और समृद्धि की प्रदाता मानी जाती है।प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने प्रयास करके मीणा समाज की 51 कुलदेवियों के सम्बद्ध में जानकारी व परिचय दिया है, जो उत्कृष्ट अन्वेषण के आधार पर आधारित है। surely मीणा समाज के लिए और उनके गोत्रों की पृथक-पृथक कुलदेवियों सम्बन्धी यह विवरण उपयोगी और पठनीय हैै। इससे मीणा समाज के लोग अवश्य लाभान्वित होंगे।Meena Samaj Ki Kuldeviyanमानव सभ्यता के प्रारंभ से लेकर आज तक 8216;मातृ पूजा8217; किसी न किसी रूप में मानव-समाज में निरन्तर चली आ रही है। जो हमें जन्म देती है और प्रारंभ में हमारा पालन करती है उसका महत्व निर्विवाद ही है। so इसीलिए मातृ महिमा की भावना मानव में आदिकाल से प्रतिष्ठित रही है। उसी के आधार पर किसी न किसी रूप में मातृ पूजा भी होती रही है, उसे देवी का रूप देकर विभिन्न समाज विभिन्न देवियों की पूजा भी करते रहे हैं।समाज के लिए पूजनीय ���सी माताएँ 8220;लोक देवी8221; भी कही गई हैं, लोक माता भी, कुलदेवी भी। हमारी संस्कृति में भी वेदकाल से ऐसी देवियों की महिमा का विवरण मिलता है। “अहं राष्ट्री-संमगनी वसूनां8221; आदि वेद मन्त्रों में जिस देवी की महिमा संकेतित है वह पुराणकाल में और अधिक प्रतिष्ठित हो गई। तब से आज तक प्रत्येक धार्मिक और पारिवारिक मंगल कार्य में नवग्रह पूजा आदि की तरह 8220;घोडश मातृकाओं8221; की पूजा अनिवार्य रूप से की जाती हैं। इन गौरी, पद्मा आदि षोडश मातृकाओं का परिवार देखते ही यह समझ में आ जाता है कि मातृ पूजा एक अनादि और अनन्त पावन परम्परा के रूप में मानव मात्र के लिए करणीय क्यों बताई गई है।click >> अन्य सम्बन्धित पुस्तकेंclick >> YouTube कहानियाँRelatedTRUE
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