Mancheeya Vyangya Ekanki
Item Weight | 241 Grams |
ISBN | 978-8177211825 |
Author | Giriraj Sharan |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan |
Book Type | Hardbound |
Publishing year | 2017 |
Edition | 1 |

Mancheeya Vyangya Ekanki
कभी कोई कहता है कि 'क्या नाटक सा कर रहा है' तो ऐसा लगता है कि 'नाटक' सामान्य अभिनय से अलग कोई चीज नहीं है या नाटक का एकमात्र अभिप्राय है—अभिनय।हाँ, नाटक का अभिप्राय अभिनय जरूर है, किंतु वह अभिनय होता है जीवन का, जीवन की सच्चाइयों का, जीवन की मधुर-कठोर परिस्थितियों का, सामाजिक परिवेश का।किंतु जब नाटक व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा हो तो वह केवल अभिनय नहीं रह जाता, वह घटनाओं और परिस्थितियों के साथ समझौता करने के मूड में नहीं होता, वह प्रहारक, मारक और कभी-कभी सुधारक भी हो जाता है। उसकी चोट प्रत्यक्ष नहीं होती, मार दिखाई नहीं देती, सुधारक उपदेशक नहीं होता। सबकुछ पीछे-पीछे से होता है; किंतु होता जरूर है।ये मंचीय व्यंग्य एकांकी किसी सुधार के सूत्रधार बनेंगे, ऐसा विचार लेकर तो नहीं लिखे गए, किंतु सामाजिक सरोकारों को साकार और अधिकारों की टंकार अवश्य करेंगे, यह बात साधिकार स्वीकार की जा सकती है।अपनी धारदार सोच और समसामयिक परिस्थितियों की एप्रोच के कारण निस्संकोच इन व्यंग्य एकांकियों का स्वागत किया जाना चाहिए। इनके बीच-बीच में उपस्थित हास्य के क्षण भी पाठकों और दर्शकों को गुदगुदाएँगे अवश्य!
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