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Mam Trailokyam

Dr. Anil Kumar Pathak

Rs. 399 – Rs. 595

भारतीय संस्कृति की अजम्र धारा में प्रवहमान अनन्त रत्नों के अप्रतिम 'त्रिक' के रूप में माता, पिता एवं गुरु की महत्ता सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक है। इन तीनों के विराट् स्वरूप व महिमा को वर्णित करते हुए रचित मम त्रैलोक्यम् ग्रन्थ से पावन आर्ष संस्कृति एवं परम्परा को नवजीवन प्राप्त हुआ... Read More

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Rs. 595
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भारतीय संस्कृति की अजम्र धारा में प्रवहमान अनन्त रत्नों के अप्रतिम 'त्रिक' के रूप में माता, पिता एवं गुरु की महत्ता सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक है। इन तीनों के विराट् स्वरूप व महिमा को वर्णित करते हुए रचित मम त्रैलोक्यम् ग्रन्थ से पावन आर्ष संस्कृति एवं परम्परा को नवजीवन प्राप्त हुआ है। हम प्रायः अपने अत्यन्त आत्मीय स्वजन को उतनी महत्ता और सम्मान नहीं देते हैं जितना किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति सम्मान का भाव रखते हुए उसकी प्रशंसा करते हैं जो कदाचित् हमारे सुख-दुःख, आपत्ति-विपत्ति एवं संकट का साथी नहीं रहा है। हम अपने अनन्य एवं अति निकटस्थ के योगदान को विस्मृत कर देते हैं। इन्हीं अत्यन्त आत्मीय एवं निकटस्थ महाविभूतियों में सर्वोपरि हैं- माता, पिता एवं गुरु । जनसामान्य में एक प्राचीन कहावत प्रचलित है- 'घर का जोगी जागे णा, आन गाँव का सिद्ध', किन्तु प्रस्तुत ग्रन्थ में लेखक द्वारा इन अप्रतिम रत्नों के "त्रिक' की महत्ता को "अत्यन्त भक्तिमयी विधि से प्रस्तुत करते हुए उनके प्रति अपनी आस्था एवं श्रद्धा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न महाचरितों के आख्यानों के माध्यम से हमारे जीवन के महत्त्वपूर्ण 'त्रिक' को तीन आयामों लोकों के रूप में प्रस्तुत किया है। यद्यपि वर्तमान में उक्त 'त्रिक' की स्थिति एक संक्रमण के दौर से गुज़र रही है और एक ऐसा परिवेश उत्पन्न हो गया है जो अन्धकारमय वातावरण बना रहा है, किन्तु यह ग्रन्थ, महान् भारतीय परम्परा के उन्नत एवं गौरवशाली क्षणों के विवरण, संस्मरण आदि के माध्यम से प्रकाश की किरण लिए हुए समाज को नयी राह दिखाने के लिए तत्पर है। निश्चित रूप से एक उदात्त एवं सकारात्मक दृष्टिकोण के माध्यम से ही हम अभीप्सित लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं और इसे प्राप्त करने में ऐसे कालजयी ग्रन्थ ही हमारी सहायता कर सकते हैं। माता, पिता एवं गुरु के अनुभूतिजन्य संस्मरणों के माध्यम से अभिव्यक्त विचार निस्सन्देह इस दिशा में पथ-प्रदर्शक का कार्य करेंगे, फलतः इस ग्रन्थ की भी महत्ता सदैव बनी रहेगी।
Description
भारतीय संस्कृति की अजम्र धारा में प्रवहमान अनन्त रत्नों के अप्रतिम 'त्रिक' के रूप में माता, पिता एवं गुरु की महत्ता सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक है। इन तीनों के विराट् स्वरूप व महिमा को वर्णित करते हुए रचित मम त्रैलोक्यम् ग्रन्थ से पावन आर्ष संस्कृति एवं परम्परा को नवजीवन प्राप्त हुआ है। हम प्रायः अपने अत्यन्त आत्मीय स्वजन को उतनी महत्ता और सम्मान नहीं देते हैं जितना किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति सम्मान का भाव रखते हुए उसकी प्रशंसा करते हैं जो कदाचित् हमारे सुख-दुःख, आपत्ति-विपत्ति एवं संकट का साथी नहीं रहा है। हम अपने अनन्य एवं अति निकटस्थ के योगदान को विस्मृत कर देते हैं। इन्हीं अत्यन्त आत्मीय एवं निकटस्थ महाविभूतियों में सर्वोपरि हैं- माता, पिता एवं गुरु । जनसामान्य में एक प्राचीन कहावत प्रचलित है- 'घर का जोगी जागे णा, आन गाँव का सिद्ध', किन्तु प्रस्तुत ग्रन्थ में लेखक द्वारा इन अप्रतिम रत्नों के "त्रिक' की महत्ता को "अत्यन्त भक्तिमयी विधि से प्रस्तुत करते हुए उनके प्रति अपनी आस्था एवं श्रद्धा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न महाचरितों के आख्यानों के माध्यम से हमारे जीवन के महत्त्वपूर्ण 'त्रिक' को तीन आयामों लोकों के रूप में प्रस्तुत किया है। यद्यपि वर्तमान में उक्त 'त्रिक' की स्थिति एक संक्रमण के दौर से गुज़र रही है और एक ऐसा परिवेश उत्पन्न हो गया है जो अन्धकारमय वातावरण बना रहा है, किन्तु यह ग्रन्थ, महान् भारतीय परम्परा के उन्नत एवं गौरवशाली क्षणों के विवरण, संस्मरण आदि के माध्यम से प्रकाश की किरण लिए हुए समाज को नयी राह दिखाने के लिए तत्पर है। निश्चित रूप से एक उदात्त एवं सकारात्मक दृष्टिकोण के माध्यम से ही हम अभीप्सित लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं और इसे प्राप्त करने में ऐसे कालजयी ग्रन्थ ही हमारी सहायता कर सकते हैं। माता, पिता एवं गुरु के अनुभूतिजन्य संस्मरणों के माध्यम से अभिव्यक्त विचार निस्सन्देह इस दिशा में पथ-प्रदर्शक का कार्य करेंगे, फलतः इस ग्रन्थ की भी महत्ता सदैव बनी रहेगी।

Additional Information
Book Type

Hardbound, Paperback

Publisher Vani Prakashan
Language Hindi
ISBN 978-9357750233
Pages 176
Publishing Year 2023

Mam Trailokyam

भारतीय संस्कृति की अजम्र धारा में प्रवहमान अनन्त रत्नों के अप्रतिम 'त्रिक' के रूप में माता, पिता एवं गुरु की महत्ता सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक है। इन तीनों के विराट् स्वरूप व महिमा को वर्णित करते हुए रचित मम त्रैलोक्यम् ग्रन्थ से पावन आर्ष संस्कृति एवं परम्परा को नवजीवन प्राप्त हुआ है। हम प्रायः अपने अत्यन्त आत्मीय स्वजन को उतनी महत्ता और सम्मान नहीं देते हैं जितना किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति सम्मान का भाव रखते हुए उसकी प्रशंसा करते हैं जो कदाचित् हमारे सुख-दुःख, आपत्ति-विपत्ति एवं संकट का साथी नहीं रहा है। हम अपने अनन्य एवं अति निकटस्थ के योगदान को विस्मृत कर देते हैं। इन्हीं अत्यन्त आत्मीय एवं निकटस्थ महाविभूतियों में सर्वोपरि हैं- माता, पिता एवं गुरु । जनसामान्य में एक प्राचीन कहावत प्रचलित है- 'घर का जोगी जागे णा, आन गाँव का सिद्ध', किन्तु प्रस्तुत ग्रन्थ में लेखक द्वारा इन अप्रतिम रत्नों के "त्रिक' की महत्ता को "अत्यन्त भक्तिमयी विधि से प्रस्तुत करते हुए उनके प्रति अपनी आस्था एवं श्रद्धा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न महाचरितों के आख्यानों के माध्यम से हमारे जीवन के महत्त्वपूर्ण 'त्रिक' को तीन आयामों लोकों के रूप में प्रस्तुत किया है। यद्यपि वर्तमान में उक्त 'त्रिक' की स्थिति एक संक्रमण के दौर से गुज़र रही है और एक ऐसा परिवेश उत्पन्न हो गया है जो अन्धकारमय वातावरण बना रहा है, किन्तु यह ग्रन्थ, महान् भारतीय परम्परा के उन्नत एवं गौरवशाली क्षणों के विवरण, संस्मरण आदि के माध्यम से प्रकाश की किरण लिए हुए समाज को नयी राह दिखाने के लिए तत्पर है। निश्चित रूप से एक उदात्त एवं सकारात्मक दृष्टिकोण के माध्यम से ही हम अभीप्सित लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं और इसे प्राप्त करने में ऐसे कालजयी ग्रन्थ ही हमारी सहायता कर सकते हैं। माता, पिता एवं गुरु के अनुभूतिजन्य संस्मरणों के माध्यम से अभिव्यक्त विचार निस्सन्देह इस दिशा में पथ-प्रदर्शक का कार्य करेंगे, फलतः इस ग्रन्थ की भी महत्ता सदैव बनी रहेगी।