Maine Gardha Hai Apna Purush
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Item Weight | 0.13 |
ISBN | 978-9395737180 |
Author | Anupam Singh |
Language | Hindi |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Pages | 136 |
Dimensions | 22*14*1 |
Publishing year | 2022 |
Edition | 2nd |

Maine Gardha Hai Apna Purush
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अनुपम सिंह इक्कीसवीं सदी की सम्भावना पूर्ण स्त्री-कविता की प्रखर आवाज़ हैं। उनकी कविताओं में एक छोटी लड़की झाँकती है जो पूरे सजग भाव से अपने आसपास सब कुछ देख रही है लेकिन सम्भवत: चुप करा दी गई है। यह चुप्पी कविताओं में आकर खुलती है और पूरी बेबाकी के साथ अपने जीवन, परिवेश और व्यवस्था को तार-तार कर देती है।अनुपम की कविताएँ गहरे दुख की कविताएँ हैं। दुख जो स्त्री-जीवन में शोकगीत बनकर बसा है; दुख, जिसे हर किसान, शोषित-पिछड़े वर्ग का व्यक्ति और स्त्रियाँ अपने जीवन का स्थायी भाव मान चुके हैं।जीवन की त्रासदी के इस मानचित्र का एक बड़ा हिस्सा स्त्रियों और उनके अभिशप्त जीवन के नाम है। वे स्त्रियाँ जो कठिन श्रम करते हुए, अधिकारविहीन और निरानन्द जीवन जीती हैं और हर बार जिस परिवार, समाज में वे जीती आई हैं उससे बेदख़ल कर दी जाती हैं। अनुपम ने ऐसी कई नाइंसाफ़ियों को क़रीब से देखा और महसूस किया है। अपमान और अवहेलना के अनेक ऐसे अध्याय जिनको समाज ने सामान्यीकृत करके स्वीकार कर लिया, फिर चाहे त्वचा के रंग पर ताना देने का प्रचलन हो या परिवार में ही बच्चियों की पीठ पर हाथ फेरते पुरुषों की वासना। सब उस व्यवस्था में विन्यस्त है। ‘थोड़ा कहे को बहुत समझना’ के कौशल से इन कविताओं में एक परा-इतिहास की रचना हुई है। स्त्री-कविता की धार इसी से है कि उसने दूर देखने वाले बाइस्कोप का लेंस बदल दिया है। वह अपने आस-पास के छोट-बड़े आख्यानों से इतिहास को परा-इतिहास के रूप में पहचान रही है। एक समानांतर दुनिया।अनुपम सिंह ने इन कविताओं में एक और वर्जित क्षेत्र में प्रवेश किया है। उन्होंने स्त्री देह के रहस्यों, उसकी इच्छा-आकांक्षा और यौनिकता के अनुभवों को बड़े करीने से काग़ज़ पर उतारा है। ऐसा करने के लिए भाषा को भी नए सिरे से साधना पड़ता है। अनुपम ने यह कठिन काम किया। उनकी भाषा लोक और शास्त्र के बीच आवाजाही करती हुई स्त्री-जीवन में यौन-अनुभवों के सुख और आनन्द को सहेजती है। इन कविताओं की सघन बिम्बात्मक प्रस्तुति उस अनुभव की उद्दामता को बचा ले जाती है। यहाँ दो स्त्रियों के प्रेम में होने के अनुभव को भी उसकी मुलायमियत और पूरे सम्मान के साथ रचा गया है। इस अर्थ में यौनिकता के सवाल स्त्री-अस्मिता की नए सिरे से शिनाख़्त करने की कोशिश है जहाँ मन और देह अलग नहीं हैं।—रेखा सेठी
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