Main Nastik Kyon Hoon
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Item Weight | 0.2 |
ISBN | 9789348650368 |
Author | Shaheed Bhagat Singh |
Language | Hindi |
Publisher | Nayee Kitab Prakashan |
Pages | 152 |
Dimensions | 24X14X2 |
Publishing year | 2025 |
Edition | 2025 |

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'मैं नास्तिक क्यों हूं' उनका अंतिम तर्कपूर्ण पर्चा है जिसे उन्होंने अपनी शहादत से पूर्व जेल के भीतर रहते हुए लिपिबद्ध किया था। एक तरह से यह उनके वैज्ञानिक चिन्तन का अनमोल खाका है जिसे सामने रखकर उनके संघर्ष और विचार-चेतना के विकास को भी गहराई से चीन्हा जा सकता है। उनका परिवार आर्यसमाजी था लेकिन भगतसिंह धीरे-धीरे उस परिवेश से बाहर आकर अराजकतावादी और क्रमशः आगे बढ़ते हुए अंत में मार्क्सवाद के उस मुकाम तक जा पहुंचे जो सच्चे अर्थों में मनुष्य की मुक्ति का सोपान है। अपनी इस सार्थक विप्लवी यात्रा के मध्य निरन्तर घट रहे देश और विश्वव्यापी राजनीतिक घटनाक्रम और सामाजिक परिवर्तन उन्हें प्रतिपल गहराई से स्पर्श करते रहे। 1928 में लाहौर में 'नौजवान भारत सभा' का गठन हुआ तब भगत सिंह उसके महासचिव और भगवतीचरण वोहरा प्रचार सचिव बने। उस समय लिखे गए इस संगठन के घोषणापत्र में देश उन दिनों जिस अव्यवस्था की स्थिति से गुजर रहा था, उस पर सघन विमर्श करते हुए यह बताने की चेष्टा की गई थी कि धार्मिक अन्धविश्वास और कट्टरपन हमारी प्रगति में बहुत बड़े बाधक हैं, जो हमारे रास्ते के मध्य रोड़े साबित हुए हैं और हमें उससे हर हालत में छुटकारा पा लेना चाहिए।
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