Mahajagran ka shalaka purush
Author | Kubernath ray |
Language | Hindi |
Publisher | Setu Prakashan |
Pages | 349 |
ISBN | 978-93-92228-38-4 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.218 kg |
Dimensions | 129 x 198 mm |
Edition | 1st |
Mahajagran ka shalaka purush
About Book
स्वामी सहजानन्द सरस्वती बीसवीं सदी के एक ऐसे क्रान्तिकारी राजनेता थे, जिन्हें नियति ने संन्यास की ओर अग्रसर कर स्वामी सहजानन्द सरस्वती बनाया। लेकिन संन्यास ग्रहण करने के बावजूद वे विदेशी शासकों के विरोध में खड़े होने के साथ-साथ छोटे किसानों एवं भूमिहीन मजदूरों के हितों के लिए जीवन भर संघर्षरत रहे। उन्होंने किसानों के संघर्ष को भारत के मुक्ति संघर्ष से जोडऩे का काम किया था। ओजस्वी एवं वीतरागी स्वामी सहजानन्द सरस्वती जीवन भर अपने सिद्धान्तों पर अडिग रहे। उन्होंने अपने सिद्धान्तों की कीमत पर कभी समझौता नहीं किया। वे एक सन्त और भारतीय समाज, संस्कृति और परम्परा के गहरे अध्येता थे। स्वामी सहजानन्द सरस्वती जैसे इतिहास निर्माता के बारे में, जिन्होंने न केवल कर्म किया है बल्कि समानान्तर चिन्तन भी प्रस्तुत किया है, भिन्न-भिन्न दिशाओं से विचार करना चाहिए क्योंकि ऐसे वैचारिक मन्थन ही उत्तरकालीन पीढ़ी के लिए उपयोगी हो सकते हैं। उनकी बातों का सम्प्रदायवादी या हलवादी अर्थ भविष्य के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं सिद्ध होगा।
About Author
कुबेरनाथ राय
जन्म : 26 मार्च 1938, मतसा, गाजीपुर (उ.प्र.)
शिक्षा : क्वींस कॉलेज, वाराणसी से इण्टरमीडिएट, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से बी.ए. (अँग्रेजी साहित्य, दर्शन, गणित) एवं एम.ए. (अँग्रेजी साहित्य) कलकत्ता विश्वविद्यालय से।
आजीविका : अल्पकालिक अध्यापन विक्रम विद्यालय, हावड़ा में। 1959 से 1986 तक नलबारी कॉलेज (असम) के अँग्रेजी विभाग में अध्यापन। 1986 में स्वामी सहजानन्द महाविद्यालय (गाजीपुर) के प्राचार्य पद पर नियुक्ति। 30 जून 1995 को सेवामुक्त।
प्रकाशित रचनाएँ : प्रिया नीलकण्ठी (1969), रस आखेटक (1971), गन्धमादन (1972), निषाद बाँसुरी (1973), विषाद योग (1974), पर्ण-मुकुट (1978), महाकवि की तर्जनी (1980), पत्र मणिपुतुल के नाम (1980), मन पवन की नौका (1983), किरात नदी में चन्द्रमधु (1983), दृष्टि अभिसार (1985), त्रेता का वृहत्साम (1986), कामधेनु (1990), मराल (1993), उत्तर कुरु (1993), चिन्मय भारत (1996), वाणी का क्षीरसागर (1998)—ललित निबन्ध; कन्थामणि (कविता-संग्रह, 1998), अन्धकार में अग्निशिखा (1998), रामायण महातीर्थम (2002), आगम की नाव (2005), स्वामी सहजानन्द सरस्वती (प्रस्तुत कृति)
निधन : 5 जून 1996, मतसा, गाजीपुर
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