LOKTANTRA KI VIDAMBANA
Author | L.M. Singhvi |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 81-8826783X |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.4 kg |
Edition | 1st |
LOKTANTRA KI VIDAMBANA
लक्ष्मीमल्ल सिंघवी इस महादेश के ऐसे विलक्षण विद्वान् थे, जिन्हें कुछ का सबकुछ और कुछ का बहुत कुछ आता था। विभिन्न भाषाओं पर उनका पूर्णाधिकार था। मातृभाषा हिंदी के प्रति उनमें अगाध आस्था थी। उनकी रुचियाँ भिन्न थीं और बहुस्तरीय भी। उन्हें भारत और भारतीय संस्कृति का परचम लहराने में बहुत आनंद आता था। वे प्रवासी भारतीयों को भारत से जोड़ने के अहम काम में जुटे रहे। भारतीय मूल के प्रवासियों को उन्होंने 'भारतवंशी' शब्द दिया, जो आदरपूर्वक स्वीकारा गया। भारतीय संस्कृति का हर पहलू, व्यथाएँ, शिल्प, पच्चीकारी, चित्रकला, मूर्तिकला, टेराकोटा, छापा एवं भित्ति चित्र सभी में उनकी गहरी रुचि थी। वे चाहते रहे कि भारतीय संविधान का सिंहावलोकन और पुनरावलोकन लगातार होता रहे। संविधान से जुड़े अनेक बुनियादी सवालों से इस पुस्तक में उनकी भिड़ंत होती है। क्या हम संविधान की वजह से विफल हुए हैं या कि हमने संविधान को विफल किया है—ऐसे अनेक सवाल प्रस्तुत पुस्तक में पढ़ने को मिलेंगे और संविधान की बारीकियों में जानेवाले उत्सुक पाठकों की अनेकानेक शंकाओं का समाधान करेंगे। वर्तमान राजनीतिक क्षेत्र के ऐसे तमाम मुद्दे भी इस पुस्तक में उठाए गए हैं, जिन्हें पढ़कर एक बार फिर उन पर विचार करने की जरूरत महसूस होगी। पुस्तक का भरपूर स्वागत होगा, ऐसा हमारा विश्वास है।
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