LOKAYAN KI SAMAJIKTA
Author | DHANANJAY SINGH |
Language | HINDI |
Publisher | Setu Prakashan |
Pages | 256 |
ISBN | 9788119899159 |
Item Weight | 0.0 kg |
Edition | FIRST |
LOKAYAN KI SAMAJIKTA
लोकायन में लोक साहित्य की लोकगाथा, लोकगीत, लोक कथा, लोक कहावतें, किस्से, लोकबुझौवल (पहेलियाँ), लोक बालगीत एवं लोक बालखेल, मिथक इत्यादि तो हैं ही। इसके साथ इसमें लोक की वो सब प्रथाएँ, अनुष्ठान एवं लोक सांस्कृतिक व्यवहार एवं परम्पराएँ शामिल हैं, जिनसे लोकायन बनता है। बहुधा वह अपनी जैविकता के साथ समग्रता में प्रस्तुत होता है। कई बार लोकायन वैज्ञानिक और ऐतिहासिक सत्यों पर आधारित न होकर सामूहिक आस्था और विश्वास की गतिकी में चलता है अर्थात् इसका एक भाग सामाजिक संरचना को आधार देता है, दूसरा भाग आस्थाओं और विश्वासों को। यह सामाजिक श्रुति के रूप में जीवित रहता है। इसमें भी दिक्, काल और कार्यकारण सम्बन्ध की अवधारणाएँ अन्तर्निहित होती हैं। इसमें तथ्यों और सूचनाओं का विशाल संग्रह होता है, जिसकी स्मृति एक के बाद अनेक पीढ़ियों और कई कालखण्डों तक जीवित रहती है। यह जातीय स्मृति ही परम्पराओं का मूल स्रोत है। -प्राक्कथन से
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