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Lok Sahitya Mein Maru Gurjar Pradesh Ke Premakhyan
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लोक साहित्य में मरु गुर्जर प्रदेश के प्रेमाख्यान : मरु-गुर्जर प्रदेश शताब्दियों से न केवल भौगोलिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि से भी निकटस्थ प्रदेश रहे हैं। भारतीय संस्कृति के उन्नायक तत्वों को भली-भाँति अंगीकार करते हुए इन दोनों प्रदेशों ने अपनी कुछ विशिष्ट उपलब्धियों के परिणामस्वरूप देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी अपनी धाक जमाई है। लोक-कल्याणकारी एवं वर्ग-भेद रहित चेतना का इन दोनों प्रदेशों में मध्यकाल में पर्याप्त विकास हुआ, जिसके अनमोल एवं उल्लेख्य उदाहरण हमें दोनों प्रदेशों के प्रेमाख्यानों में मिलते हैं। डॉ. सुषमा सोलंकी ने प्रदेश-द्वय में प्रचलित प्रेमाख्यानों के संकलन में जिस लगन, निष्ठा एवं परिश्रम धर्मिता का परिचय दिया है, उससे भी अधिक इन प्रेमाख्यानों के विवेचन-विश्लेषण में अपने वैदुष्य का परिचय दिया है। यह ग्रंथ भावी अनुसंधित्सुओं के लिए तुलनात्मक अध्ययन के नये द्वार खोलेगा, ऐसी मेरी मान्यता है। साम्प्रदायिक सद्भाव, भ्रातृत्व-भाव एवं प्रेम की प्रकृष्टता के प्रतिपादक ये प्रेमाख्यान जीवन में समरसता-संस्थापना में सहायक सिद्ध होंगे।प्रेमाख्यानों की परम्परा को रेखांकित करते हुए एवं प्रेमाख्यानक वैशिष्ट्य को उद्घाटित करते हुए विदुषी डॉ. सुषमा सोलंकी ने इस ग्रंथ में मरु-गुर्जर प्रदेश में प्रचलित प्रमुख प्रेमाख्यानों का प्रतिपाद्य प्रस्तुत कर प्रशंस्य कार्य किया है। इतना ही नहीं भौगोलिक दृष्टि से समीपस्थ दोनों प्रदेशों में प्रचलित इन प्रेमाख्यानों के कथानक के साम्य-वैषम्य को विवेचित कर प्रादेशिक सांस्कृतिक-सौष्ठव को भली-भांति उजागर किया है। यही सांस्कृतिक अस्मिता भारतीयता की पोषक भी है और प्रतीक भी है। इन प्रेमाख्यानों के अध्ययन के व्याज से डॉ. सोलंकी ने पौराणिक परम्पराओं, आध्यात्मिक आस्थाओं एवं मध्यकालीन जीवन-शैलियों पर समवेत रूप से प्रकाश डाला है। सभी प्रेमाख्यान प्रदेश-द्वय के भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक दस्तावेज कहे जा सकते हैं। इसके साथ ही इस ग्रंथ में वर्णित-विवेचित प्रेमाख्यानों में निरूपित लोक-जीवन एवं लोक-चेतना को उद्घाटित करने में भी लेखिका सफल रही है। निस्संदेह ऐसे प्रकाशनों से हिन्दी-साहित्य के अध्येता लाभान्वित होंगे।RelatedTRUE
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