Lok Katha Vigyan
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Item Weight | 400 Grams |
ISBN | 978-9385593932 |
Author | Shrichand Jain |
Language | Hindi |
Publisher | Rajasthani Granthagar |
Pages | NA |
Book Type | Paperback |
Publishing year | 2018 |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Lok Katha Vigyan
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श्री श्रीचन्द्र जैन के ‘लोक-कथा विज्ञान’ की पाण्डुलिपि देखने का सुयोग प्राप्त कर बड़ी प्रसन्नता हुई। किसी भी देश की प्रकृति, पशु-पक्षी, नर-नारी, वन-उपवन, नद-नदी, नगर-ग्राम जैसा सच्चा व्यापक चित्रण लोक-कथाओं में पाया जाता है वैसा अन्यत्र प्राप्त कर सकना दुर्लभ है। यद्यपि लोक-कथाएँ मौखिक रूप से पीढ़ियों से पीढ़ियों तक गुजरने के कारण बहुत कुछ अपना परिवेश भी बदलती रहती हैं, परन्तु इनमें परम्परा का सूत्र कभी लुप्त नहीं होता। जनजीवन की आस्थाएँ, रूढियाँ, संघर्षपरक प्रेम गाथाएँ अपने समस्त चमत्कारों और अलौकिक कार्य व्यापारों के साथ-साथ, विदग्ध संवेदनशीलता के ऐसे अन्तःसूत्र में आबद्ध होती है कि वे एक क्षेत्र अथवा प्रदेश की होने पर भी मानव मात्र की सम्पत्ति बन जाती है। भारत की पंचतंत्र की कथाओं का अरबी भाषा में अनुवाद होकर ईसप की कहानियों का स्वरूप ले लेना इसी निगूढ़ संवेदन की परिचायिका है। श्री श्रीचन्द्र जैन ने हिन्दी प्रदेश की लोक कथाओं का न केवल गहन अध्ययन किया है वरन् उन्हें वैज्ञानिक समीक्षा की कसौटी पर भी कसा है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश तथा पंजाब आदि सभी प्रांतों की लोक गाथाओं के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा वि��्वान लेखक न केवल उनका वैविध्य संवेदनाओं की ‘सूत्रमणिगणइव’ एक सूत्र में पिरोये हुए हैं। इस प्रकार का व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन अभी तक सुलभ नहीं हो सका था। कहीं-कहीं कुछ पश्चिमी समीक्षाशास्त्र की पदावली के कारण आंशिक भ्रम हो सकता है। यथा-‘फेबिल’ को पशु कथा कहना मुझे बहुत समीचीन नहीं प्रतीत होता। इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि इसमें लोक-कथाओं के ब्याज से जनजीवन के आचार-विचार, रहन-सहन, आभूषण, अलंकरण, वेशभूषा, मंत्र-जंत्र, जादू-टोना, आहार-आखेट आदि सभी का विवेचन प्रस्तुत किया जा सका है। इन सबके भीतर लेखक ने जिस सौन्दर्य बोध और प्रतीक योजना का संयोजन किया है वह उसकी प्राभि अन्तःदृष्टि की परिचायक है। मैं श्री श्रीचन्द्र जैन का लोक-कथाओं के सर्वांगीण अध्ययन के रूप में ऐसी सुंदर पुस्तक प्रस्तुत करने के लिए साधुवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि इस क्षेत्र में काम करने वाले नये लेखकों को इसके अध्ययन और अध्यवसाय से लोक-जीवन की व्यापक बिखरी संवेदनाओं को संयोजित करने का पथ प्रशस्त हो सकेगा। लोक-जीवन के बिखरे सूत्रों का पूर्ण जागरूकता और सहृदयता से संवारने की यह साधना राष्ट्र की सांस्कृतिक गरिमा को समृद्ध करने में बहुमूल्य योगदान दे सकेगी।RelatedTRUE
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