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About Book "लफ़्ज़ महफ़ूज़ कर लिए जाएँ" किताब 'रेख़्ता नुमाइन्दा कलाम’ सिलसिले के तहत प्रकाशित हुआ है जिसमें आसिम वास्ती का चुनिन्दा कलाम संकलित है। यह किताब देवनागरी लिपि में प्रकाशित हुई है और पाठकों के बीच ख़ूब पसंद की गई है| About Author आ’सिम वास्ती ने पाकिस्तान के... Read More
About Book
"लफ़्ज़ महफ़ूज़ कर लिए जाएँ" किताब 'रेख़्ता नुमाइन्दा कलाम’ सिलसिले के तहत प्रकाशित हुआ है जिसमें आसिम वास्ती का चुनिन्दा कलाम संकलित है। यह किताब देवनागरी लिपि में प्रकाशित हुई है और पाठकों के बीच ख़ूब पसंद की गई है|
About Author
आ’सिम वास्ती ने पाकिस्तान के सरहदी प्रांत के मर्दान क़स्बे में आँखें खोलीं मगर उनका परिवार अंबाला का था। उनके पिता सलाहुद्दीन शौकत वास्ती मश्हूर शाइ’र थे। घर के माहौल से प्रेरणा पा कर आ’सिम वास्ती 11 साल की उ’म्र से ही शे’र कहने लगे। 1984 में ता’लीम के लिए इंग्लैंड गए जहाँ उनके दो कविता-संग्रह ‘किरन किरन अंधेरा’(1989) और ‘आग की सलीब’ (1995) प्रकाशित हुए। तीसरा संग्रह ‘तेरा एहसान ग़ज़ल है’ अबू ज़हबी में प्रकाशित हुआ। उनकी चौथी किताब ‘तवस्सुल’ अभी हाल ही में आई है। आ’सिम वास्ती अबू ज़हबी में मेडिकल डाक्टर हैं।