Kursipur Ka Kabir
Author | Gopal Chaturvedi |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9380183114 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.25 kg |
Edition | 1st |
Kursipur Ka Kabir
कुरसीपुर के कबीर का जन्म एक पंचायत-प्रधान के परिवार में हुआ। उसने अपने पूज्य पिता को बचपन से, नाली-खड़ंजे और नरेगा का सदुपयोग करते; याने पैसे खाते देखा। वह जब से स्कूल गया, पिता के लिए कमाई का साधन बन गया। नरेगा के रजिस्टर पर कहीं पैर का अँगूठा लगाता, कहीं हाथ का। प्रधानजी ने जब अपने घर के पास नाली बनवाई तो उसमें उसने कबीर कुमार के नाम से हस्ताक्षर कर दिहाड़ी कमाई। तब तक वह अक्षर-ज्ञानी हो चुका था। उसके प्राध्यापक उसकी प्रतिभा से चकित थे। वह उसके बाप से संतान की प्रशंसा करते—“प्रधानजी, आपका पुत्र तो जन्मजात नेता है। आपने तो अपने जन्म-स्थान की सेवा की। आप तो पंचायत में रह गए, यह पार्लियामेंट जाकर देश की सेवा करेगा।” नए कबीर की मान्यता है कि सियासत में कभी किसी दल के कोई सिद्धांत-उसूल नहीं हैं, न कोई विकास का कार्यक्रम। हर दल का इकलौता लक्ष्य, कार्यक्रम, उसूल और फलसफा सत्ता की कुरसी पर साम, दाम, दंड, भेद से कब्जा करना है और एक बार कब्जा हो जाए तो उसे बरकरार रखना है। बाकी हर बात जैसे चुनाव घोषणा-पत्र, सेक्यूलर-सांप्रदायिक की बहस, सुशासन वगैरह-वगैरह सिर्फ कोरी बकवास है।—इसी संग्रह सेहिंदी व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर गोपाल चतुर्वेदी के मारक व्यंग्यबाणों से समाज के हर उस वर्ग को अपना निशाना बनाते हैं, जिनके लिए मानवीय मूल्य, संवेदना और सरोकार कोई मायने नहीं रखते। वे हवा भरे गुब्बारे की तरह हैं, जिन्हें इन व्यंग्यों की तीखी नोक फुस्स कर देती है।______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रम1. कर सेवा या सेवा कर —Pgs. 72. सायरन बजाता प्रजातंत्र —Pgs. 133. सत्ता और साँड़ —Pgs. 174. सावन के दिन चार —Pgs. 235. मूँछवाले महान् होते थे! —Pgs. 286. मंत्रीजी और जिन का जिन्न —Pgs. 347. चुनाव और पत्रकार —Pgs. 408. आजादी के बाद रेल —Pgs. 459. भौतिक-सांस्कृतिक प्रगति और परिवार —Pgs. 5110. मंदिर और मनोरंजन —Pgs. 5711. स्वर्ग में भटका नेता —Pgs. 6212. कागज की नाव —Pgs. 6813. चीफ इंजीनियर का भोंपू —Pgs. 7414. हमारे शहर के बदनाम लोग —Pgs. 7915. देश के डंडीमार —Pgs. 8516. कुरसी पर बंदर —Pgs. 9117. दफ्तर के 'अफेयर' —Pgs. 9818. कबाड़, घर, शहर और नदी —Pgs. 10519. महानगर की ओर अग्रसर नगर —Pgs. 11020. दफ्तर, आजादी और नगदेश्वर —Pgs. 11521. ढक्कन का महत्त्व —Pgs. 12122. आतंक प्रधान वर्ष में आतंकी से भेंट —Pgs. 12823. जनतंत्र और जूता —Pgs. 13424. उनका प्रतीक प्रेम —Pgs. 13925. दर्शन और सापेक्षता का समता सिद्धांत —Pgs. 14626. इलेक्शन का प्रदूषण —Pgs. 15227. फर्क बाजार और मॉल का —Pgs. 15928. दफ्तर, कूलर, गरमी वगैरह —Pgs. 16529. चींटी चढ़ी पहाड़ —Pgs. 17130. कुरसीपुर का कबीर —Pgs. 17831. संतोषी सदा सुखी की अंतर्कथा —Pgs. 187
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