कर्मयोग (Karmyog)
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Author | ?????? ?????????? (Swami Vivekananda) |
Language | Hindi |
Publisher | Gyan Books |
Pages | 109 pp |
ISBN | 978-8121260619 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.252 kg |
Dimensions | 1*X13*X22* |
Edition | 1912 |
कर्मयोग (Karmyog)
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किताब के बारे में - प्रस्तुत पुस्तक में कर्मयोग के बारे में विस्तार से विश्लेषण किया गया है। कर्म का हमारे चरित्र पर क्या प्रभाव पड़ता है। कर्मयोग में जो साहसिकता, शूरता है वह किसी योग में संभव नहीं। संसार चक्र में कर्म योग की बदौलत कूद पड़ना एवं अनेक संघर्षों के बावजूद लक्ष्य तक पहुंच जाना, अपने आप में एक बड़ी वीरता है। स्वार्थ की जड़िमा से दूर निःस्वार्थ कर्म पर जोर दिया गया है। संसार में रहते हुये भी ईश्वर की उपासना सबसे बड़ा कर्म है। कर्म की गाड़ी में सदैव कंधा देने के लिये तैयार रहें। क्षुद्र से क्षुद्र व्यक्ति भी कर्मयोगी बनकर सम्मान का अधिकारी हो सकता है। अच्छे कर्म करके हम अपना ही उपकार करते हैं कर्मयोग कर्म करने के रहस्य का ज्ञान है। कर्म योग हमें कर्म करने की उचित प्रणाली बताता है एवं कर्म को संगठित करने का ढंग बताता है। सबसे उत्तम कर्म वह है जो बिना धन, मान, कीर्ति अथवा अन्य किसी स्वार्थ भावना से किया जाये, तभी हम मनुष्य कहलाने के अधिकारी होंगे एवं अपनी पूर्णता का अनुभव भी तभी होगा। लेखक के बारे में -ः स्वामी विवेकानन्द ;1863-1902 वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें 2 मिनट का समय दिया गया था लेकिन उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत ‘मेरे अमेरिकी बहनों एवं भाइयों’ के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था। कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में जन्मे विवेकानन्द आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे। जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीवों मे स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व हैं। इसलिए मानव जाति अर्थात जो मनुष्य दूसरे जरूरतमन्दों की मदद करता है इस सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानन्द ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। विवेकानन्द ने संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धान्तों का प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में विवेकानन्द को एक देशभक्त सन्यासी के रूप में माना जाता है और उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। The Title 'कर्मयोग (Karmyog) written/authored/edited by स्वामी विवेकानन्द (Swami Vivekananda)', published in the year 2022. The ISBN 9788121260619 is assigned to the Paperback version of this title. This book has total of pp. 109 (Pages). The publisher of this title is Gyan Publishing House. This Book is in Hindi. The subject of this book is Motivational Self-Help / Hinduism / Personal Transformation. Size of the book is 13.34 x 21.59 cms Vol:-
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