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Koi Bhee Din

Pankhuri Sinha

Rs. 50 – Rs. 90

कोई भी दिन - पंखुरी सिन्हा की कहानियों को बहुत कुछ कहने की इच्छा की कहानियाँ कहा जा सकता है। कथाकार परिवेश को, परिवर्तन को, विघटन को, निजी-अनिजी, अमूर्त-अभौतिक, उदात्त सभी को पहचानती व रेखांकित करती हुई अपनी कथावस्तु के सन्दर्भ से कहीं ज़्यादा कहना चाहती हैं। कथावस्तु का केन्द्र... Read More

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कोई भी दिन - पंखुरी सिन्हा की कहानियों को बहुत कुछ कहने की इच्छा की कहानियाँ कहा जा सकता है। कथाकार परिवेश को, परिवर्तन को, विघटन को, निजी-अनिजी, अमूर्त-अभौतिक, उदात्त सभी को पहचानती व रेखांकित करती हुई अपनी कथावस्तु के सन्दर्भ से कहीं ज़्यादा कहना चाहती हैं। कथावस्तु का केन्द्र सदा चलायमान और विभिन्न सन्दर्भों में आवाजाही करता दिखाई देता है। इस केन्द्र को वह कभी गहराती या सघन करती दिखाई नहीं देतीं बल्कि अन्तःसलिला की तरह ज़मीन के नीचे उतर जाती हैं और जीवन से उगाहे हर प्रकार के अनुभवों, निरीक्षणों, परीक्षणों को अपनी संरचना में नत्थी कर देने के आत्मविश्वास से कहानी बुनती हैं। किसी एक पूरमपूर अनुभव का रचना रूपान्तरण करने की अपेक्षा वह विचार की द्युति से जगह-जगह रोकती और चमत्कृत करती हैं।सन्दर्भ-बहुल और मितभाषी एक साथ होने का विरल उदाहरण हैं पंखुरी की कहानियाँ। स्थिति कोई भी हो, प्रश्नाकुलता का तनाव कथाकार को बहुलता की ओर ले जाता है और भाषा के अद्भुत संयम से व्यंग्य की धार को समुचित रूप से प्रयुक्त कर लेने की शक्ति पंखुरी के रचना रूपायन को सन्तुलित और भेदक बनाती है। व्यंग्य, वक्रकथन, विलक्षण, व्यंजक, अन्तर्निहित के ज़रिये बोलती और समापन जैसे आस्वाद से बचती इस संग्रह की कहानियाँ किसी विशेष अनुभव के पूरेपन की प्रतीति से बेदख़ल करती पाठक को जीवन प्रवाह में ख़ामोशी से दाख़िल कर लेती हैं। इनकी शक्ति मितकथन, आश्वस्त भाषा-व्यवहार, ग़ैर-रूमानी मुद्रा में अनुत्तेजित ढंग से पाठक के मर्म को भेदने में है। अपने उपकरणों को लेकर ख़ासी आश्वस्त और सचेत कथाकार पंखुरी सिन्हा पाठक में एक वयस्क, अनुभवी, विचारशील कथाकार के रू-ब-रू होने का अहसास जगाती है। 'कहिन' का उनका लहजा एकदम अपना और मौलिक है। कथ्य के चुनाव का अनोखापन, प्रस्तुति में सादगी, सोच का अन्तर्निहित सुलझाव इन कहानियों को पठनीय बनाता है, अकसर उदास भी करता है। स्थिति-नियति की करामातों से उपजी मनुष्य की उदासियों को भिड़ते दिखाने और गहराई में विचलित कर देने के कौशल से लैस यह संग्रह, कुछ कहानियों के लिए स्मरणीय माना जायेगा। —राजी सेठ
Description
कोई भी दिन - पंखुरी सिन्हा की कहानियों को बहुत कुछ कहने की इच्छा की कहानियाँ कहा जा सकता है। कथाकार परिवेश को, परिवर्तन को, विघटन को, निजी-अनिजी, अमूर्त-अभौतिक, उदात्त सभी को पहचानती व रेखांकित करती हुई अपनी कथावस्तु के सन्दर्भ से कहीं ज़्यादा कहना चाहती हैं। कथावस्तु का केन्द्र सदा चलायमान और विभिन्न सन्दर्भों में आवाजाही करता दिखाई देता है। इस केन्द्र को वह कभी गहराती या सघन करती दिखाई नहीं देतीं बल्कि अन्तःसलिला की तरह ज़मीन के नीचे उतर जाती हैं और जीवन से उगाहे हर प्रकार के अनुभवों, निरीक्षणों, परीक्षणों को अपनी संरचना में नत्थी कर देने के आत्मविश्वास से कहानी बुनती हैं। किसी एक पूरमपूर अनुभव का रचना रूपान्तरण करने की अपेक्षा वह विचार की द्युति से जगह-जगह रोकती और चमत्कृत करती हैं।सन्दर्भ-बहुल और मितभाषी एक साथ होने का विरल उदाहरण हैं पंखुरी की कहानियाँ। स्थिति कोई भी हो, प्रश्नाकुलता का तनाव कथाकार को बहुलता की ओर ले जाता है और भाषा के अद्भुत संयम से व्यंग्य की धार को समुचित रूप से प्रयुक्त कर लेने की शक्ति पंखुरी के रचना रूपायन को सन्तुलित और भेदक बनाती है। व्यंग्य, वक्रकथन, विलक्षण, व्यंजक, अन्तर्निहित के ज़रिये बोलती और समापन जैसे आस्वाद से बचती इस संग्रह की कहानियाँ किसी विशेष अनुभव के पूरेपन की प्रतीति से बेदख़ल करती पाठक को जीवन प्रवाह में ख़ामोशी से दाख़िल कर लेती हैं। इनकी शक्ति मितकथन, आश्वस्त भाषा-व्यवहार, ग़ैर-रूमानी मुद्रा में अनुत्तेजित ढंग से पाठक के मर्म को भेदने में है। अपने उपकरणों को लेकर ख़ासी आश्वस्त और सचेत कथाकार पंखुरी सिन्हा पाठक में एक वयस्क, अनुभवी, विचारशील कथाकार के रू-ब-रू होने का अहसास जगाती है। 'कहिन' का उनका लहजा एकदम अपना और मौलिक है। कथ्य के चुनाव का अनोखापन, प्रस्तुति में सादगी, सोच का अन्तर्निहित सुलझाव इन कहानियों को पठनीय बनाता है, अकसर उदास भी करता है। स्थिति-नियति की करामातों से उपजी मनुष्य की उदासियों को भिड़ते दिखाने और गहराई में विचलित कर देने के कौशल से लैस यह संग्रह, कुछ कहानियों के लिए स्मरणीय माना जायेगा। —राजी सेठ

Additional Information
Book Type

Paperback, Hardbound

Publisher Jnanpith Vani Prakashan LLP
Language Hindi
ISBN 812-6311487
Pages 144
Publishing Year 2006

Koi Bhee Din

कोई भी दिन - पंखुरी सिन्हा की कहानियों को बहुत कुछ कहने की इच्छा की कहानियाँ कहा जा सकता है। कथाकार परिवेश को, परिवर्तन को, विघटन को, निजी-अनिजी, अमूर्त-अभौतिक, उदात्त सभी को पहचानती व रेखांकित करती हुई अपनी कथावस्तु के सन्दर्भ से कहीं ज़्यादा कहना चाहती हैं। कथावस्तु का केन्द्र सदा चलायमान और विभिन्न सन्दर्भों में आवाजाही करता दिखाई देता है। इस केन्द्र को वह कभी गहराती या सघन करती दिखाई नहीं देतीं बल्कि अन्तःसलिला की तरह ज़मीन के नीचे उतर जाती हैं और जीवन से उगाहे हर प्रकार के अनुभवों, निरीक्षणों, परीक्षणों को अपनी संरचना में नत्थी कर देने के आत्मविश्वास से कहानी बुनती हैं। किसी एक पूरमपूर अनुभव का रचना रूपान्तरण करने की अपेक्षा वह विचार की द्युति से जगह-जगह रोकती और चमत्कृत करती हैं।सन्दर्भ-बहुल और मितभाषी एक साथ होने का विरल उदाहरण हैं पंखुरी की कहानियाँ। स्थिति कोई भी हो, प्रश्नाकुलता का तनाव कथाकार को बहुलता की ओर ले जाता है और भाषा के अद्भुत संयम से व्यंग्य की धार को समुचित रूप से प्रयुक्त कर लेने की शक्ति पंखुरी के रचना रूपायन को सन्तुलित और भेदक बनाती है। व्यंग्य, वक्रकथन, विलक्षण, व्यंजक, अन्तर्निहित के ज़रिये बोलती और समापन जैसे आस्वाद से बचती इस संग्रह की कहानियाँ किसी विशेष अनुभव के पूरेपन की प्रतीति से बेदख़ल करती पाठक को जीवन प्रवाह में ख़ामोशी से दाख़िल कर लेती हैं। इनकी शक्ति मितकथन, आश्वस्त भाषा-व्यवहार, ग़ैर-रूमानी मुद्रा में अनुत्तेजित ढंग से पाठक के मर्म को भेदने में है। अपने उपकरणों को लेकर ख़ासी आश्वस्त और सचेत कथाकार पंखुरी सिन्हा पाठक में एक वयस्क, अनुभवी, विचारशील कथाकार के रू-ब-रू होने का अहसास जगाती है। 'कहिन' का उनका लहजा एकदम अपना और मौलिक है। कथ्य के चुनाव का अनोखापन, प्रस्तुति में सादगी, सोच का अन्तर्निहित सुलझाव इन कहानियों को पठनीय बनाता है, अकसर उदास भी करता है। स्थिति-नियति की करामातों से उपजी मनुष्य की उदासियों को भिड़ते दिखाने और गहराई में विचलित कर देने के कौशल से लैस यह संग्रह, कुछ कहानियों के लिए स्मरणीय माना जायेगा। —राजी सेठ