khul Ja Sim-Sim
Item Weight | 200 Grams |
ISBN | 978-9384343613 |
Author | Subhah Mishra |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan |
Book Type | Hardbound |
Publishing year | 2017 |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

khul Ja Sim-Sim
प्रसिद्ध लेखक श्री सुभाष मिश्र के पास शिल्प और भाषा का सुंदर संयोजन है। वे व्यंग्य के लिए सुरक्षित शिल्प में व्यंग्य की भाषा से ऐसी आत्मीयता स्थापित नहीं करते जिसमें कहन पीछे छूट जाता है और लेखक की भाषा पर मुग्धता बची रह जाती है और ध्येय अलक्षित रह जाता है। सुभाष समाज और समय की जटिल और विद्रुप होती जा रही निम्नतर, लेकिन अतिपरिचित स्थितियों के बीच एक संतुलित व्यंग्य भाषा में कथ्य-ध्येय का परिचय स्पष्ट करते हैं। व्यंग्य लेखक को व्यंग्य को तल्ख बनाना होता है, उसको आक्रामक नहीं, इसी संतुलन में सुभाष मिश्र निष्णात हैं, जिससे कई बार वे भाषा में व्यंग्य की अपेक्षा एक तल्ख टिप्पणी करते नजर आते हैं, लेकिन उसकी सपाट बयानगी से बचते हैं। एक व्यंग्य लेखक से ज्यादा निर्भिकता और आक्रामकता की अपेक्षा के कारण व्यंग्य लेखक को रचना और अपेक्षा के द्वंद्व के बीच कथ्य की रक्षा भी करनी होती है। सुभाष मिश्र की व्यंग्य-निर्भिकता कथ्य और भाषा दोनों में प्रकट होती है। लेकिन वे चीजों और स्थितियों के सरलीकरण और निष्कर्षों पर पहुँचने की उतावली नहीं दिखाते हैं। वे खुद को और पाठक को उन विसंगतियों से पैदा हुई दुर्बलताओं से बचते-बचाते हैं। सुभाष मिश्र की यह पुस्तक सामाजिक विसंगतियों, रूढि़यों और भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ मामूली आदमी की ओर से एक प्रतिरोध बयान है। इसे उनकी सामाजिक प्रतिबद्धता के आग्रह में देखना उचित होगा।—भालचंद्र जोशी('अपनी बात' से)___________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमअपनी बात— Pgs. 71. सांप्रदायिकता के खिलाफ परसाई— Pgs. 132. धंधा धर्म का— Pgs. 203. हम न मरिहैं, मरिहैं जग सारा— Pgs. 234. साँपों पर टिकी सभ्यता— Pgs. 275. बुरा तो मानो कि होली है!— Pgs. 296. परिचय, प्रणय और सत्यानाश!— Pgs. 537. तलाश फिल्मों में दिखनेवाली आदर्श भौजी की— Pgs. 578. एक कुँवारे का दहेज-चिंतन— Pgs. 629. एक सामाजिक की मौत— Pgs. 6510. हिंदी हैं हम, वतन है, हिंदोस्ताँ हमारा— Pgs. 6811. अपने शहर के रंग— Pgs. 7012. सप्ताह की फिल्म— Pgs. 7413. सावधान! सड़क बन रही है— Pgs. 7814. मैंने फिर मकान बदला— Pgs. 8015. खुल जा सिम-सिम— Pgs. 8616. चौक की पान दुकान— Pgs. 8817. कल्लू का प्रेम-प्रसंग— Pgs. 9118. खुलना कस्बे में महाविद्यालय का— Pgs. 9419. एक अदद लड़की चाहिए शादी के लिए— Pgs. 9620. चिंतन, शुभचिंतकों पर!— Pgs. 10121. सत्यनारायण-कथा— Pgs. 10422. नकारों का मोह— Pgs. 10923. एक दुखिया की पाती प्रधानमंत्री के नाम— Pgs. 11224. पथरी की बीमारी के बहाने— Pgs. 11525. नए वर्ष की डायरी— Pgs. 11926. सच का सामना झूठ के साथ— Pgs. 12227. एडवांस— Pgs. 150
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