Keshav, Kahi Na Jai ka Kahiye
by Sanjeev Buxy
ISBN | 978-93-88799-68-3 |
Author | Sanjeev Buxy |
Language | Hindi |
Publisher | Antika Prakashan |
Categories | Hindi memoirs |
Pages | 208 |
About Author | Renowned Writer |

Keshav, Kahi Na Jai ka Kahiye
Memoires सीधी रेखा खींचना हमेशा कठिन होता है। यूँ आज का समय जटिलताओं का है जिसमें दिखावे और बाँकपन ज़्यादा हैं। जब सच से ज़्यादा फरेब, ईमानदारी से ज़्यादा मक्कारी, गुणवत्ता से ज़्यादा पैकेजिंग पर ज़ोर हो तो एक ईमानदार और सरल इन्सान क्या करे? ऐसे समय में अगर एक भला आदमी सादगी, सच्चाई और ईमानदारी का निर्वाह करते हुए प्रशासनिक सेवा के चालीस साल सकुशल गुज़ार ले तो यह दुर्लभ घटना से कम नहीं। ऐसी ही दुर्लभ घटनाओं के बीच आए विभिन्न मोड़ और पेंचो-खम की अद्भुत दास्तान है कवि-उपन्यासकार संजीव बख्शी की किताब 'केशव कहि न जाइ का कहिये'। इस किताब से गुज़रकर आप लेखक की संपूर्ण जि़ंदगी की दास्तान से तो रू-ब-रू होते ही हैं, पिछले पचास साल में भारतीय राजनीतिक-प्रशासनिक व्यवस्था में चरणबद्घ आई गिरावट से भी वाकिफ होते हैं। इस तंत्र की एक-एक कील कैसे ढीली होती गई, यह बात लेखक बिना किसी अतिरिक्त टिप्पणी के बताने-समझाने में सफल रहा है। आत्मकथा, संस्मरण, जीवनी के तमाम सूत्रों को अपने में समेटे हुए यह किताब एक बेहद पठनीय उपन्यास भी है जिसके नायक का नाम है, संजीव बख्शी। अपने अलहदा उपन्यास 'भूलन कांदा' की तरह संजीव बख्शी ने इस किताब की रचना भी इतनी तल्लीनता और बारीकी से की है कि यह यादगार बन गई है। —गौरीनाथ
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