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‘काव्यभाषा: रचनात्मक सरोकार’ एक ऐसी विशिष्ट कृति है, जिसमें ‘काव्यभाषा’ को ही काव्य-रचना-प्रक्रिया का मूलाधार माना गया है। कारण-भाषा बिना रचनाकार की विशिष्ट अनुभूति ‘गूँगे के गुड़ के स्वाद’ के समान है। लेखक यह भी स्वीकार करता है कि विशिष्ट संवेदनात्मक अनुभूति जब अभिव्यक्ति के लिए आकुल-व्याकुल होती है तब... Read More
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