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KAANI NIKAH

ARJUMAND ARA

Rs. 300 Rs. 200

कानी’ पंजाबी भाषा में सरकंडे को कहते हैं. झंग की तरफ़ ‘मिर्ज़ा साहिबां’ की दास्तान में सरकंडे के बने हुए तीर को ही कानी कहा गया है... बंजर और निर्जल इलाक़े में बरसाती पानी के तालाब अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं. तालाबों के किनारे उगने वाले सरकंडे जीवन का प्रतीक समझे... Read More

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कानी’ पंजाबी भाषा में सरकंडे को कहते हैं. झंग की तरफ़ ‘मिर्ज़ा साहिबां’ की दास्तान में सरकंडे के बने हुए तीर को ही कानी कहा गया है... बंजर और निर्जल इलाक़े में बरसाती पानी के तालाब अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं. तालाबों के किनारे उगने वाले सरकंडे जीवन का प्रतीक समझे जाते हैं. यह भी मुम्किन है कि इस्लाम के आगमन से पहले इस इलाक़े में जब मूर्ति-पूजा ज़ोरों पर थी, सरकंडे पर मेघराज यानी इंद्र देवता की विशेष कृपा मानी जाती रही हो और सरकंडा मेघराज का ही प्रतीक समझा जाता हो, क्यूंकि कश्मीर की वादी में अब भी पवित्र छड़ी की हिन्दू रस्म अदा की जाती है और हिंदू साधू बड़े जोश-ख़रोश से यह धार्मिक रस्म अदा करते हैं... सरकंडा निकाह भी अज्ञानता के दौर की उन रस्मों में से एक है जिनकी बुनियाद जादू-टोने पर रखी गई थी. 1983 में लेखक को इत्तिला मिली कि पिंडी घेब से कुछ आगे, सील नाले के पास स्थित गांव दंदी में कानी निकाह हुआ है. यही घटना इस उपन्यास की प्रेरक बनी. “कानी निकाह” में उपन्यास के सबसे महत्वपूर्ण पात्र, यानी हीरोइन का एक भी बोल शामिल नहीं किया गया. शायद “कानी निकाह” उस बुनियाद पर दुनिया-भर में पहला उपन्यास होगा जिसमें हीरोइन का एक संवाद भी नहीं लिखा गया और वह गूँगी भी नहीं है. कोशिश की गई है कि उसकी चुप्पी ख़ुद ही हर दिशा में बोलती महसूस हो.
Description
कानी’ पंजाबी भाषा में सरकंडे को कहते हैं. झंग की तरफ़ ‘मिर्ज़ा साहिबां’ की दास्तान में सरकंडे के बने हुए तीर को ही कानी कहा गया है... बंजर और निर्जल इलाक़े में बरसाती पानी के तालाब अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं. तालाबों के किनारे उगने वाले सरकंडे जीवन का प्रतीक समझे जाते हैं. यह भी मुम्किन है कि इस्लाम के आगमन से पहले इस इलाक़े में जब मूर्ति-पूजा ज़ोरों पर थी, सरकंडे पर मेघराज यानी इंद्र देवता की विशेष कृपा मानी जाती रही हो और सरकंडा मेघराज का ही प्रतीक समझा जाता हो, क्यूंकि कश्मीर की वादी में अब भी पवित्र छड़ी की हिन्दू रस्म अदा की जाती है और हिंदू साधू बड़े जोश-ख़रोश से यह धार्मिक रस्म अदा करते हैं... सरकंडा निकाह भी अज्ञानता के दौर की उन रस्मों में से एक है जिनकी बुनियाद जादू-टोने पर रखी गई थी. 1983 में लेखक को इत्तिला मिली कि पिंडी घेब से कुछ आगे, सील नाले के पास स्थित गांव दंदी में कानी निकाह हुआ है. यही घटना इस उपन्यास की प्रेरक बनी. “कानी निकाह” में उपन्यास के सबसे महत्वपूर्ण पात्र, यानी हीरोइन का एक भी बोल शामिल नहीं किया गया. शायद “कानी निकाह” उस बुनियाद पर दुनिया-भर में पहला उपन्यास होगा जिसमें हीरोइन का एक संवाद भी नहीं लिखा गया और वह गूँगी भी नहीं है. कोशिश की गई है कि उसकी चुप्पी ख़ुद ही हर दिशा में बोलती महसूस हो.

NA

Additional Information
Book Type

Paperback

Publisher SURYA PRAKASHAN MANDIR, BIKANER
Language HINDI
ISBN 978-93-92252-55-6
Pages
Publishing Year 2023

KAANI NIKAH

कानी’ पंजाबी भाषा में सरकंडे को कहते हैं. झंग की तरफ़ ‘मिर्ज़ा साहिबां’ की दास्तान में सरकंडे के बने हुए तीर को ही कानी कहा गया है... बंजर और निर्जल इलाक़े में बरसाती पानी के तालाब अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं. तालाबों के किनारे उगने वाले सरकंडे जीवन का प्रतीक समझे जाते हैं. यह भी मुम्किन है कि इस्लाम के आगमन से पहले इस इलाक़े में जब मूर्ति-पूजा ज़ोरों पर थी, सरकंडे पर मेघराज यानी इंद्र देवता की विशेष कृपा मानी जाती रही हो और सरकंडा मेघराज का ही प्रतीक समझा जाता हो, क्यूंकि कश्मीर की वादी में अब भी पवित्र छड़ी की हिन्दू रस्म अदा की जाती है और हिंदू साधू बड़े जोश-ख़रोश से यह धार्मिक रस्म अदा करते हैं... सरकंडा निकाह भी अज्ञानता के दौर की उन रस्मों में से एक है जिनकी बुनियाद जादू-टोने पर रखी गई थी. 1983 में लेखक को इत्तिला मिली कि पिंडी घेब से कुछ आगे, सील नाले के पास स्थित गांव दंदी में कानी निकाह हुआ है. यही घटना इस उपन्यास की प्रेरक बनी. “कानी निकाह” में उपन्यास के सबसे महत्वपूर्ण पात्र, यानी हीरोइन का एक भी बोल शामिल नहीं किया गया. शायद “कानी निकाह” उस बुनियाद पर दुनिया-भर में पहला उपन्यास होगा जिसमें हीरोइन का एक संवाद भी नहीं लिखा गया और वह गूँगी भी नहीं है. कोशिश की गई है कि उसकी चुप्पी ख़ुद ही हर दिशा में बोलती महसूस हो.