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Jharkhand : Sapne Aur Yatharth
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प्रस्तुत पुस्तक वरिष्‍ठ पत्रकार श्री हरिवंश के लगभग दो दशकों (1991-2010) के बीच झारखंड राज्य से जुड़े लेखों का संग्रह है। सन् 1991 से 2000 के बीच झारखंड बिहार का हिस्सा था, सन् 2000 (15 नवंबर) में यह अलग राज्य बना। एक तरह से इसमें पीछे के दस वर्षों (1991-2000, बिहार) और आगे के दस वर्षों (2000-2010, झारखंड) के प्रशासनिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, विरोध, संघर्ष और सृजन के क्षेत्रों के दृश्य हैं। उन पर टिप्पणियाँ, विवेचना, हस्तक्षेप, सुझाव और आगाह या सावधान करने की कोशिश है। गुजर चुके इन दो दशकों के वे प्रासंगिक मुद्दे हैं, जिन्होंने समाज और 'राज्य' नाम की संस्था को गहराई से प्रभावित किया।इस पुस्तक में सामाजिक इतिहास बताने या दर्ज करने का मकसद नहीं। पर कौन सी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक धाराएँ-उपधाराएँ इस दौर को प्रभावित कर रही हैं, और राज्य व देश की राजनीति को भविष्य में प्रभावित करेंगी, उन्हें रेखांकित और उजागर करने की कोशिश जरूर है। इस धरती के मौलिक सवाल क्या हैं—यही इस पुस्तक में संकलित है।झारखंड को गहराई से जानने-समझने में सहायक एवं उपयोगी विचारशील पुस्तक।"__________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमणिका भूमिका — Pgs. 739. झारखंड : सवाल और हालात — Pgs. 1581. बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकले हम — Pgs. 1740. जाँच से मत भागिए कोड़ाजी — Pgs. 1632. कांग्रेस के संकेत साफ हैं — Pgs. 2041. झारखंड कांग्रेस हम नहीं सुधरेंगे — Pgs. 1703. माकन—हीरो हैं या विलेन — Pgs. 2342. बाड़ खाए खेत! — Pgs. 1734. बचाव पक्ष मैदान से गायब — Pgs. 2543. गरिमा के सौदागर — Pgs. 1775. सिमरिया का संदेश — Pgs. 2844. सबसे गरीब जनता, सबसे अमीर विधायक — Pgs. 1806. दर्शक सरकार, झगड़ते अफसर — Pgs. 3145. किस रास्ते चले अध्यक्ष-विधायक — Pgs. 1837. हम शर्मिंदा हैं कि आप विधायक हैं! — Pgs. 3346. मंत्रियों के कारनामे — Pgs. 1878. नमस्कार! — Pgs. 3747. बदले झारखंड — Pgs. 1909. घृणा करिए ऐसे विधायकों से — Pgs. 4048. स्तब्धकारी — Pgs. 19210. बाजार न बने विधानसभा — Pgs. 4349. कितना धन चाहिए? — Pgs. 19711. कीमत चुकाएगी कांग्रेस — Pgs. 4550. पार्टियों की बोलती बंद! — Pgs. 20412. झारखंड के स्वाभिमान के लिए एक कदम! — Pgs. 4751. सुधरेंगे या तबाह होंगे! — Pgs. 21213. वोट डालिए, हालात बदलिए — Pgs. 5152. ये मुद्दे कहाँ हैं? — Pgs. 21414. बिकेंगे या बचेंगे? — Pgs. 5353. नक्सल मुद्दे पर मौन — Pgs. 21715. 'मुझे भुला न पाओगे!' — Pgs. 5554. अगर माकन की चली होती — Pgs. 22016. राजसत्ता (स्टेट पावर) की विदाई के दृश्य — Pgs. 5855. कैसे हुई युवा भविष्य की हत्या? — Pgs. 22317. मुख्यमंत्रीजी! कब तक! किस हद तक!! — Pgs. 6156. चूके, तो भोगेंगे — Pgs. 22718. महामहिम कुछ करिए — Pgs. 6457. बिदकते वोटर! — Pgs. 23019. हे, भगवान्! अब तो अवतार लीजिए — Pgs. 6958. विधानसभा में नियुक्तियाँ — Pgs. 23420. सोरेन होंगे मुख्यमंत्री या राष्ट्रपति शासन? — Pgs. 7559. विधानसभा समितियों का चेहरा — Pgs. 23721. संभावनाएँ शिबू सोरेन के पक्ष में — Pgs. 7860. बहुमत या साझा या खिचड़ी! — Pgs. 24122. फाइनल राउंड में — Pgs. 8261. झारखंड चुनाव के संदेश — Pgs. 24623. 'सारा खेला हाउस में होगा' — Pgs. 8762. फजीहत! — Pgs. 24924. कोड़ा कला! — Pgs. 9263. सुकरात की भूमिका — Pgs. 25125. शुरुआत की सीढि़याँ — Pgs. 9564. लोकतंत्र का फरेब — Pgs. 25526. सरकार से और विधायकों से! जाँच ही रास्ता है — Pgs. 9965. कांग्रेस के सतर्क दाँव — Pgs. 25927. राजनीतिक रंगमंच के दृश्य — Pgs. 10266. झारखंड में सरकार की तलाश — Pgs. 26228. हार के बाद — Pgs. 10867. अर्जुन मुंडा का 'मास्टर स्ट्रोक' — Pgs. 26429. झारखंड के दाँव-पेच — Pgs. 11168. झारखंड की चुनौतियाँ — Pgs. 26730. राजनीतिक नाटक के दृश्य — Pgs. 11469. इतिहास बनने या बनाने के क्षण! — Pgs. 27231. फाइनल राउंड — Pgs. 11870. नई राह खोजें — Pgs. 27832. झामुमो, कांग्रेस की मजबूरी — Pgs. 12371. विधायिका ही राह दिखा सकती है — Pgs. 28533. चुनौती भी, अवसर भी — Pgs. 12572. मिलना एक मास्टर से! — Pgs. 28834. झारखंड : अब किधर? — Pgs. 12973. बदल रहे हैं गाँव, देहात और जंगल — Pgs. 29235. आईने में अपना चेहरा — Pgs. 13674. झारखंड, समय से पहले तो नहीं बना? — Pgs. 29636. क्या करें, कहाँ जाएँ? — Pgs. 14575. मकसद — Pgs. 29937. कमलेश, ध्रुव भगत और भाजपा — Pgs. 14976. सपने और यथार्थ — Pgs. 30338. स्टेट इज डेड? (राजसत्ता मर चुकी है?) — Pgs. 152

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