Jeevan Leela
Author | Rajvanshi Renu Gupta |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-8188266210 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.2 kg |
Edition | 1st |
Jeevan Leela
मैं उनकी निगाहों में जीवन का नाप-तौल देख रही थी। क्या कहीं कोई लगाव, मोह, आसक्ति बची है? इतनी पीड़ा के बाद प्राण कहीं अटके हुए हैं। जब भी आंटी की बेचैनी बढ़ती, आंटी पापा-मम्मी को बुला भेजतीं—और मम्मी-पापा का हाथ कसकर पकड़े रहतीं। पापा मन बहलाने के लिए मजाक करते या उनका मनोबल बढ़ाते तो आंटी बस मुसकराकर रह जातीं। डॉक्टर, हकीम, वैद्य सब जवाब दे चुके हैं। आंटी की तड़प जब घर के लोगों से देखी नहीं गई तो उन्हें अस्पताल में रखा गया। मम्मी बार-बार उनसे पूछतीं, 'प्रीति, मन कहाँ अटक गया है? सेवा कर रहे बेटे-बेटी का जीवन बीच जंगल में खड़ी रेलगाड़ी की तरह ठहर गया है। भाई साहब जा ही चुके हैं। कौन सा ऐसा सूत्र है जिसे तुम छोड़ नहीं पा रही हो?'उत्तर में आंटी अपने निरीह, भोले-भाले बेटे आनंद की ओर देखतीं, जो धन-लोलुप भेड़ियों के बीच खड़ा है। आंटी का होना मानो आनंद के लिए ढाल है। चूँकि संपत्ति आंटी के नाम है, अत: कोई कुछ कर नहीं सकता है। यदि वे चली गईं तो बेटे को तो लोग जीते-जी मार देंगे। न पत्नी इसकी, न ही बेटा पास और माँ भी चली गई तो?...—इसी पुस्तक सेअमेरिका में रह रहे भारतवंशियों की सामाजिक व्यथा-कथा का ऐसा मार्मिक प्रस्तुतीकरण, जो भुलाए न भूले। वहाँ की पारिवारिक-सामाजिक विसंगतियों व विद्रूपताओं को दरशाती हृदयस्पर्शी कहानियाँ।
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