Jeet Lo Har Shikhar
Author | Kiran Bedi |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9350484951 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.25 kg |
Edition | 1st |
Jeet Lo Har Shikhar
जीत लो हर शिखर'जीत लो हर शिखर' एक ऐसी पुस्तक है, जिसमें अलग-अलग व्यक्तियों की आपबीती (जिनमें से कुछ पुलिस अत्याचार के पीड़ित रहे हैं) का प्रत्यक्ष एवं स्पष्ट वर्णन है। इन्होंने स्वेच्छा से अपनी-अपनी कहानी सुनाई, हालाँकि उनमें से अनेक ऐसे भी हैं, जिनका अतीत संदिग्ध रहा है। पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों ने यह बताने की हिम्मत जुटाई कि उनके जीवन में क्या-क्या गलत हुआ और अपनी दुर्दशा के लिए किस हद तक वे स्वयं को उत्तरदायी मानते हैं तथा किस हद तक उन परिस्थितियों को, जिन पर उनका कोई वश नहीं था।प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न प्रकार के लोगों की असल जिंदगी, उनकी जबानी सुने दिल दहलानेवाले अनुभवों का वर्णन है, जिनमें शामिल हैं—घरेलू हिंसा और पुलिस अत्याचार के मारे, ड्रग्स लेने के आदी, अपराधी और बाल-अपराधी। लेखिका को इनकी बात गहरे तक छू गई, अतः वे इस प्रकार के दुराचार और अन्याय की मूक-दर्शक बनी नहीं रह सकती थीं। उन्होंने एक ऐसा संगठन बनाने का निश्चय किया, जो नशे की लत के आदी और समाज के सताए लोगों का मददगार बन सके और उनका जीवन सुधार सके।जाँबाज शीर्ष पुलिस अधिकारी किरण बेदी ने सदा सच्चाई का मार्ग चुना, चाहे उसमें कितने ही व्यवधान आए; आम आदमी में पुलिस के प्रति विश्वास उत्पन्न कराया और उनकी भरपूर मदद कर अपने पद को गरिमा दी। समाज-सुधार का पथ-प्रशस्त करती मर्मस्पर्शी जीवन-कथा��ं का प्रेरक संकलन।______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमÖêç×·¤æ — Pgs. z1. एक निराश्रिता की आपबीती — Pgs. 112. क्रूरता पारिवारिक संबंधों को नहीं पहचानती — Pgs. 153. बाप के व्यभिचार की शिकार बेटी की पीड़ा — Pgs. 174. क्या बहकाकर शादी के जाल में फँसाया? — Pgs. 205. अंत भला तो सब भला — Pgs. 236. सहमति से या जबरदस्ती? — Pgs. 267. अपनी पहचान न छोड़ें — Pgs. 288. कूदने से पहले देख लें — Pgs. 309. पैसों के लिए पत्नी की अदला-बदली — Pgs. 3210. शिक्षित महिलाएँ भी दब्बू बन जाती हैं — Pgs. 3511. डरपोक नहीं, साहसी बनें स्त्रियाँ — Pgs. 3812. यह न समझें कि स्त्रियों के कष्टों को सुननेवाला कोई नहीं — Pgs. 4013. अंतिम विकल्प : तलाक — Pgs. 4314. अत्याचारी पुलिस और उसके कुटिल तरीके — Pgs. 4515. विवाह का सुबूत देखने से पुलिस का इनकार — Pgs. 4916. घुड़दौड़ में घुड़सवारी से खतरनाक क्षेत्र में प्रवेश — Pgs. 5217. ड्रग्स : ऐसा साँप, जो पूरा डस लेता है — Pgs. 5618. शराब का फंदा — Pgs. 5919. ड्रग्स : जानलेवा नशेबाजी — Pgs. 6220. फंदेबाजों से सावधान रहें — Pgs. 6521. कर्ज बना गले का फंदा — Pgs. 6722. भेडि़ए — Pgs. 6923. मैं क्यों बना हत्यारा? — Pgs.24. शादी, शादी और शादी — Pgs. 7525. बहन बहन की दुश्मन — Pgs. 7826. काहे का सत्यमेव जयते — Pgs. 8127. इन बच्चों को बचाओ — Pgs. 8628. मजबूरी का दर्द — Pgs. 8929. हृश्वयार, शोषण और धोखा — Pgs. 9230. अनाथों से नाइनसाफी — Pgs. 9531. है हिम्मत — Pgs. 9932. पीडि़त मसीहा — Pgs. 10333. लौटी जिंदगी — Pgs. 10834. सपनों की हकीकत — Pgs. 11135. आ, अब लौट चलें — Pgs. 11436. आँख खुलने के बाद — Pgs. 11737. फिर सुबह होगी — Pgs. 12038. दलदल में तिल-तिल — Pgs. 12339. मकड़जाल — Pgs. 12640. उजाले की किरण — Pgs. 13041. सपनों से दूर हकीकत — Pgs. 13342. रंग बदलती जिंदगी — Pgs. 13743. कतरा-कतरा जिंदगी — Pgs. 14144. कुसूरवार कौन? — Pgs. 14445. सिगरेट से हेरोइन तक — Pgs. 14746. अपराधी बना उपदेशक — Pgs. 15047. सपना ऐसे टूटा — Pgs. 15548. देर होने से पहले — Pgs. 15949. आसमान से गिरा — Pgs. 16250. एक गलत फैसला — Pgs. 16651. अपने दम पर — Pgs. 16952. दर-बदर का दंश — Pgs. 17353. हमारा क्या कुसूर — Pgs. 177परिशिष्ट-1 : इंडिया विजन फाउंडेशन — Pgs. 180परिशिष्ट-2 : नवज्योति : सुधार, नशा-मुक्ति एवं पुनर्वास के लिए दिल्ली पुलिस फाउंडेशन — Pgs. 182
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