JANGAL PATI PATI
Author | MADHUKAR UPADHYAY |
Language | Hindi |
Publisher | Setu Prakashan |
Pages | 398 |
ISBN | 9789392228261 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.0 kg |
Edition | First |
JANGAL PATI PATI
साँप और खतरनाक जंगली जानवरों के बीच, गरीबी की मार खाये अधनंगे आदिम गोंड लोगों के आसपास मिट्टी और फूस की बनी झोंपड़ियों का एक समूह 1932 से शक्ल अख्तियार कर रहा है। जंगल में, जो भारत का दिल है, एक युवा अँग्रेज के नेतृत्व में उँगलियों पर गिने जा सकने वाले मुट्ठी भर लोग रहते हैं। हिंदू, मुसलमान, ईसाई । मानवता की भावना से एकजुट यह लोग प्रयासरत हैं कि गोंड समुदाय के लोगों को शारीरिक पीड़ा से राहत दे सकें। उनके बच्चों को स्वास्थ्य और साफ-सफाई के तत्त्वों से परिचित करा सकें। इसके बदले में उन्हें अवसर मिला है कि वे इन 'जंगली' लोगों में अवचेतन दर्शन की खोज कर सकें, जिसका रहस्य जीवन के प्रति प्रेम और मित्रता का विस्तार है। अत्यंत साधारण और मोहक प्रतिबद्धता के साथ लिखी गयी डायरी की भूमिका और अंदर के पन्नों पर इसी का रहस्योद्घाटन है। ऑक्सफोर्ड के स्कॉलर, सेंट फ्रांसिस के अनुयायी और पुराने शास्त्रीय ग्रंथों में पैठे हुए लेखक ने इसे विषय की गंभीरता, अपने साहसिक कृत्य और आत्मा की आवाज पर गहरी चोट करने वाले व्यंग्य और विनोद के परदे के पीछे रह कर प्रस्तुत किया है।
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