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Jammu-Kashmir Ka Vishmrit Adhyay
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जम्मू-कश्मीर में पिछले सात दशकों से जो राजनैतिक संघर्ष हुए, उनमें सबसे बड़ा संघर्ष राज्य को संघीय सांविधानिक व्यवस्था का हिस्सा बनाए रखने को लेकर ही था। विदेशी ताकतों की सहायता व रणनीति से कश्मीर घाटी का एक छोटा समूह इस व्यवस्था से अलग होने के लिए हिंसक आंदोलन चलाता रहा है। उसका सामना करनेवालों में लद्दाख के कुशोक बकुला रिंपोछे का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। ये रिंपोछे ही थे, जिन्होंने 1947-48 में ही स्पष्ट कर दिया था कि तथाकथित अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के वेश में जनमत संग्रह के परिणाम जो भी हों, लद्दाख उससे बँधा नहीं रहेगा। वह हर हालत में भारत का अविभाज्य अंग रहेगा। इसकी जरूरत शायद इसलिए पड़ी थी, क्योंकि भारत में ही प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहना शुरू कर दिया था कि राज्य का भविष्य जनमत संग्रह पर टिका है। ऐसे समय में नेहरू व शेख अब्दुल्ला के साथ रहते हुए भी देश की अखंडता के मामले में बकुला रिंपोछे चट्टान की तरह अडिग रहे। हिंदी में कुशोक बकुला रिंपोछे पर यह पहली पुस्तक है। निश्चय ही इससे जम्मू-कश्मीर को उसकी समग्रता में समझने के इच्छुक समाजशास्त्रियों को सहायता मिलेगी।_____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रम पुरोवाक् 1. भगवान् बुद्ध के सोलह अर्हत और लद्दाख का संदर्भ 2. उन्नीसवें कुशोक बकुला लोबजंग थुपतन छोगनोर का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 3. वापस लद्दाख में (1940-1947) 4. जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय और पाकिस्तानी आक्रमण 5. नेहरू का लद्दाख से पहला आमना-सामना 6. राजनीति में भूमिका 7. लद्दाख के अधिकारों की जंग 8. तिब्बत के सरोकार 9. साम्यवादी देशों में बौद्ध जागरण 10. मंगोलिया में सांस्कृतिक पुनरुत्थान 11. सामाजिक समरसता, संवाद रचना और भविष्य दृष्टि 12. अंतिम यात्रा और आगामी बकुला 13. मूल्यांकन संदर्भ ग्रंथ सूचीपरिशिष्‍ट-1 कुशोक बकुला रिंपोछे द्वारा 15 मई, 1952 को बजट प्रस्ताव पर जम्मू-कश्मीर विधान सभा में दिया गया ऐतिहासिक भाषणपरिशिष्‍ट-2 Tour Report of Kushok Bakula, Member, Minorities Commission, on His Visit to Leh From August 24–31, 1989

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