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Humse Kya Ho Saka Mohabbat Mein - Firaq Gorakhpuri
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Humse Kya Ho Saka Mohabbat Mein - Firaq Gorakhpuri

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Humse Kya Ho Saka Mohabbat Mein - Firaq Gorakhpuri

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About Book


‘फ़िराक़’ साहब ने, उर्दू-फ़ारसी शाइ’री के साथ-साथ भारतीय और यूरोपीय साहित्य और दर्शन की परंपरा के गहरे ज्ञान की रौशनी से उर्दू शाइ’री को एक नया दिमाग़ और नया भाव-संसार दिया। वो युग-प्रवर्त्तक शाइ’र थे जिन्होंने उर्दू शाइ’री में आधुनिकता का रास्ता रौशन किया।फ़िराक़ ने एक पीढ़ी को प्रभावित किया, नई शायरी के प्रवाह में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और हुस्न-ओ-इश्क़ का शायर होने के बावजूद इन विषयों को नए दृष्टिकोण से देखा। उन्होंने न सिर्फ़ ये कि भावनाओं और संवेदनाओं की व्याख्या की बल्कि चेतना व अनुभूति के विभिन्न परिणाम भी प्रस्तुत किए। उनका सौंदर्य बोध दूसरे तमाम ग़ज़ल कहने वाले शायरों से अलग है। प्रस्तुत किताब में उनकी चुनिन्दा शाइरी को देवनागरी लिपि में संकलित किया गया है|

About Author

रघुपति सहाय ‘फ़िराक़’ गोरखपुरी 1896 में, गोरखपुरी (उत्तर प्रदेश)  के एक साहित्यिक घराने में पैदा हुए। उनके पिता भी ‘इ’ब्रत’ गोरखपुरी के उपनाम के साथ उर्दू शाइ’री करते थे। ‘फ़िराक़’ ने फ़ारसी और उर्दू घर में पढ़ी और फिर जुबिली कालेज, गोरखपुरी में शिक्षा हासिल की|  कई साल आज़ादी की लड़ाई में शरीक रहे और फिर इलाहाबाद युनिवर्सिटी के अंग्रेज़ी विभाग में लेक्चरर हो गए जहाँ से प्रोफ़ेसर के तौर पर रिटायर हुए। ‘फ़िराक़’ साहब ने, उर्दू-फ़ारसी शाइ’री के साथ-साथ भारतीय और यूरोपीय साहित्य और दर्शन की परंपरा के गहरे ज्ञान की रौशनी से उर्दू शाइ’री को एक नया दिमाग़ और नया भाव-संसार दिया। वो युग-प्रवर्त्तक शाइ’र थे जिन्होंने उर्दू शाइ’री में आधुनिकता का रास्ता रौशन किया। उन्हे भारतीय ज्ञानपीठ के अ’लावा कई सम्मान हासिल हुए|

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फ़ेह्रिस्त

 

1 बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
2 सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
3 किसी का यूँ तो हुआ कौन उ’म्र भर फिर भी
4 सितारों से उलझता जा रहा हूँ
5 बे-नियाज़ाना सुन लिया ग़म-ए-दिल
6 नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं
7 रात भी नींद भी कहानी भी
8 आँखों में जो बात हो गई है
9 आज भी क़ाफ़िला-ए-इ’श्क़ रवाँ है कि जो था
10 कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम
11 कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में
12 शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
13'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है
14 समझता हूँ कि तू मुझसे जुदा है
15 अब दौर-ए-आस्माँ है न दौर-ए-हयात है
16 तुम्हें क्यों-कर बताएँ ज़िन्दगी को क्या समझते हैं
17 वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें
18 तेज़ एहसास-ए-ख़ुदी दरकार है
19 बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में
20 हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए
21 हर फ़रेब-ए-ग़म-ए-दुनिया से ख़बर-दार तो है
22 ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िल्क़त के जहाँ बनता गया
23 निगाह-ए-नाज़ ने पर्दे उठाए हैं क्या-क्या
24 हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का पर्दा उठा दिया
25 जौर-ओ-बे-मेह्री-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है
26 करने को हैं दूर आज तो ये रोग ही जी से
27 छलक के कम न हो ऐसी कोई शराब नहीं
28 जुनून-ए-कारगर है और मैं हूँ
29 रुकी रुकी सी शब-ए-मर्ग ख़त्म पर आई
30 जहान ग़ुन्चा-ए-दिल का फ़क़त चटकना था
31 ये मौत-ओ-अदम कौन-ओ-मकाँ और ही कुछ है
32 हयात बन गई थी जिनमें एक ख़्वाब-ए-हयात
33 जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है
34 लुत्फ़-सामाँ इ’ताब-ए-यार भी है
35 ये निकहतों की नर्म-रवी ये हवा ये रात
36 जिनकी ज़िन्दगी दामन तक है बेचारे फ़रज़ाने हैं
37 ये कौन मुस्कुराहटों का कारवाँ लिए हुए
38 बाज़ी-ए-इ’श्क़ की पूछ न बात
39 देख मोहब्बत का ये आ’लम
40 डूबने दे न बीच में बेड़ा
41 इस सुकूत-ए-फ़ज़ा में खो जाएँ
42 रन्ज-ओ-राहत वस्ल-ओ-फ़ुरक़त होश-ओ-वहशत क्या नहीं
43 मैं साज़-ए-हक़ीक़त का इक नग़्म-ए-लर्ज़ां हूँ
44 मिटता भी जा रहा हूँ बढ़ता भी जा रहा हूँ
45 पहले अपना तो ए’तिबार करें
46 तू था या कोई तुझ सा था
47 तुझे भुलाएँ तो नींद आते आते रह जाए
48 जो आँख राज़-ए-मोहब्बत न आश्कार करे
49 फिर आज अश्क से आँखों में क्यों हैं आए हुए
50 तहों में दिल की जहाँ कोई वारदात हुई

 


ग़ज़लें

 

1

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं

तुझे ऐ ज़िन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं

 

मिरी नज़रें भी ऐसे क़ातिलों का जान-ओ-ईमाँ हैं

निगाहें मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं

 

जिसे कहती है दुनिया कामयाबी वाए1 नादानी2

उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इन्सान लेते हैं

1 हाय, अफ़सोस 2 नासमझी

 

निगाह-ए-बादा-गूँ1 यूँ तो तिरी बातों का क्या कहना

तिरी हर बात लेकिन एहतियातन छान लेते हैं

1 शराब की तरह सुर्ख़ आँख

 

तबीअ’त अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में

हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं

 

ख़ुद अपना फ़ैसला भी इ’श्क़ में काफ़ी नहीं होता

उसे भी कैसे कर गुज़रें जो दिल में ठान लेते हैं

 

अब इसको कुफ़्र मानें या बुलन्दी-ए-नज़र जानें

ख़ुदा-ए-दो-जहाँ को दे के हम इन्सान लेते हैं

 

रफ़ीक़-ए-ज़िन्दगी1 थी अब अनीस2-ए-वक़्त-ए-आख़िर है

तिरा ऐ मौत हम ये दूसरा एहसान3 लेते हैं

1 ज़िन्दगी का साथी 2 साथी, दोस्त 3 भलाई, नेकी

 

 

 


 

2

सर में सौदा2 भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं

लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत2 का भरोसा भी नहीं

1 जुनून, दीवानगी 2 मोहब्बत छोड़ना

 

दिल की गिनती न यगानों1 में न बेगानों2 में

लेकिन उस जल्वा-गह-ए-नाज़3 से उठता भी नहीं

1 अपने लोग 2 पराए लोग 3 मा’शूक़ की महफ़िल

 

मेह्रबानी1 को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त

आह अब मुझसे तिरी रन्जिश-ए-बेजा2 भी नहीं

1 कृपा, दया 2 अकारण दुश्मनी

 

एक मुद्दत1 से तिरी याद भी आई न हमें

और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं

1 बहुत दिन

 

आज ग़फ़्लत1 भी उन आँखों में है पहले से सिवा

आज ही ख़ातिर-ए-बीमार2 शकेबा3 भी नहीं

1 बेख़बरी 2 मन, दिल 3 धीरज

 

बात ये है कि सुकून-ए-दिल-ए-वहशी1 का मक़ाम2

कुन्ज-ए-ज़िन्दाँ3 भी नहीं वुसअ’त-ए-सहरा4 भी नहीं

1 दीवाने दिल का चैन 2 जगह 3 क़ैदख़ाने का कोना 4 वीराने का फैलाव

 

आह ये मज्मा-ए-अहबाब1 ये बज़्म-ए-ख़ामोश2

आज महफ़िल में ‘फ़िराक़’-ए-सुख़न-आरा3 भी नहीं

1 दोस्तों का इकट्ठा होना 2 ख़ामोश महफ़िल 3 बातें बनाने, सुनाने वाला

 

 

 


 

3

किसी का यूँ तो हुआ कौन उ’म्र भर फिर भी

ये हुस्न1-ओ-इ’श्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी

1 सौंदर्य / मा’शूक़

 

हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है

नई नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र1 फिर भी

1 रास्ता

 

झपक रही हैं ज़मान-ओ-मकाँ1 की भी आँखें

मगर है क़ाफ़िला आमादा-ए-सफ़र2 फिर भी

1 काल और देश 2 सफ़र के लिए तैयार

 

शब-ए-फ़िराक़1 से आगे है आज मेरी नज़र

कि कट ही जाएगी ये शाम-ए-बे-सहर2 फिर भी

1 जुदाई की रात 2 वो शाम जिस की सुब्ह न हो

 

पलट रहे हैं ग़रीब-उल-वतन1 पलटना था

वो कूचा2 रू-कश-ए-जन्नत3 हो घर है घर फिर भी

1 परदेसी 2 गली 3 स्वर्ग जैसा

 

लुटा हुआ चमन-ए-इ’श्क़ है निगाहों को

दिखा गया वही क्या-क्या गुल-ओ-समर1 फिर भी

1 फूल और फल

 

फ़ना1 भी हो के गिराँ-बारी-ए-हयात2 न पूछ

उठाए उठ नहीं सकता ये दर्द-ए-सर फिर भी

1 ख़त्म, विलीन 2 ज़िन्दगी का बोझ

 

 

 


 

4

सितारों से उलझता जा रहा हूँ

शब-ए-फ़ुर्क़त1 बहुत घबरा रहा हूँ

1 विरह की रात

 

यक़ीं ये है हक़ीक़त1 खुल रही है

गुमाँ ये है कि धोके खा रहा हूँ

1 सच्चाई

 

इन्हीं में राज़ हैं गुल-बारियों1 के

मैं जो चिंगारियाँ बरसा रहा हूँ

1 फूलों की बारिश

 

तिरे पहलू में क्यों होता है महसूस

कि तुझसे दूर होता जा रहा हूँ

 

जो उलझी थी कभी आदम के हाथों

वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हूँ

 

मोहब्बत अब मोहब्बत हो चली है

तुझे कुछ भूलता सा जा रहा हूँ

 

अजल1 भी जिनको सुन कर झूमती है

वो नग़्मे ज़िन्दगी के गा रहा हूँ

1 मौत

 

ये सन्नाटा है मेरे पाँव की चाप

‘फ़िराक़’ अपनी कुछ आहट पा रहा हूँ

 

 

 


 

5

बे-नियाज़ाना1 सुन लिया ग़म-ए-दिल

मेह्रबानी है मेह्रबानी है

1 बिना परवाह किए

 

दोनों आ’लम1 हैं जिसके ज़ेर-ए-नगीं2

दिल उसी ग़म की राजधानी है

1 दुनिया 2 अधीन

 

हम तो ख़ुश हैं तिरी जफ़ा1 पर भी

बे-सबब तेरी सरगिरानी2 है

1 अत्याचार 2 अप्रसन्नता

 

ज़ब्त1 कीजे तो दिल है अंगारा

और अगर रोइए तो पानी है

1 आत्म-संयम

 

ज़िन्दगी इन्तिज़ार है तेरा

हमने इक बात आज जानी है

 

कुछ न पूछो ‘फ़िराक़’ अ’ह्द-ए-शबाब1

रात है नींद है कहानी है

1 जवानी का समय

 

 

 


 

6

नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं

ठंडी हवाएँ भी तिरी याद दिला के रह गईं

 

शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास

दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं

 

मुझको ख़राब कर गईं नीम-निगाहियाँ1 तिरी

मुझसे हयात-ओ-मौत2 भी आँखें चुरा के रह गईं

1 आधी खुली आँख 2 ज़िन्दगी

 

और तो अह्ल-ए-दर्द को कौन सँभालता भला

हाँ तेरी शादमानियाँ1 उनको रुला के रह गईं

1 ख़ुशियाँ

 

फिर हैं वही उदासियाँ फिर वही सूनी कायनात1

अह्ल-ए-तरब2 की महफ़िलें रंग जमा के रह गईं

1 ब्रह्मांड, संसार 2 ज़िन्दगी के मज़े लेने वाले लोग

 

कौन सुकून1 दे सका ग़म-ज़दगान-ए-इ’श्क़2 को

भीगती रातें भी ‘फ़िराक़’ आग लगा के रह गईं

1 चैन, आराम 2 इ’श्क़ से दुखी लोग

 

 

 


 

7

रात भी नींद भी कहानी भी

हाए क्या चीज़ है जवानी भी

 

इस अदा का तिरी जवाब नहीं

मेह्रबानी भी सरगिरानी1 भी

1 अप्रसन्नता

 

दिल को अपने भी ग़म थे दुनिया में

कुछ बलाएँ1 थीं आस्मानी भी

1 मुसीबतें

 

मन्सब1-ए-दिल ख़ुशी लुटाना है

ग़म-ए-पिन्हाँ2 की पासबानी भी

1 पद, प्रतिष्ठा 2 छुपे हुए दुख

 

इ’श्क़-ए-नाकाम की है परछाईं

शादमानी1 भी कामरानी2 भी

1 ख़ुशी 2 सफलता

 

पास रहना किसी का रात की रात

मेहमानी1 भी मेज़बानी2 भी

1 अतिथि होना 2 अतिथि की सेवा-सत्कार करना

 

ज़िन्दगी ऐ’न1 दीद-ए-यार2 ‘फ़िराक़’

ज़िन्दगी हिज्र3 की कहानी भी

1 पूरी तरह, बिल्कुल, ठीक 2 मा’शूक़ का दर्शन 3

Customer Reviews

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R
Rahim Ali
Humse kya ho saka mohabbat

Humse-kya-ho-saka-mohabbat-mein-firaq-gorakhpuri - ‘फ़िराक़’ साहब ने, उर्दू-फ़ारसी शाइ’री के साथ-साथ भारतीय और यूरोपीय साहित्य और दर्शन की परंपरा के गहरे ज्ञान की रौशनी से उर्दू शाइ’री को एक नया दिमाग़ और नया भाव-संसार दिया। वो युग-प्रवर्त्तक शाइ’र थे जिन्होंने उर्दू शाइ’री में आधुनिकता का रास्ता रौशन किया।फ़िराक़ ने एक पीढ़ी को प्रभावित किया, नई शायरी के प्रवाह में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और हुस्न-ओ-इश्क़ का शायर होने के बावजूद इन विषयों को नए दृष्टिकोण से देखा। उन्होंने न सिर्फ़ ये कि भावनाओं और संवेदनाओं की व्याख्या की बल्कि चेतना व अनुभूति के विभिन्न परिणाम भी प्रस्तुत किए। उनका सौंदर्य बोध दूसरे तमाम ग़ज़ल कहने वाले शायरों से अलग है। प्रस्तुत किताब में उनकी चुनिन्दा शाइरी को देवनागरी लिपि में संकलित किया गया है|

A
Altamash orooj
Firaq sahab is love 💓

Ab hamlog kya firaq sahab ko review kiya jae... Ham book ke bare me bol dete h...pacakging achi h...book ke pages ki quality boht achi h.. Apke living room ki shobha badhane wali book h

D
Dheeraj Kumar

Humse Kya Ho Saka Mohabbat Mein - Firaq Gorakhpuri

U
Umesh Kumar Misra
Unique Book

Excellent

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