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Hum nai kavitaein likhte hein
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About Book

चतुर्वेदी हिन्दी के सम्भवत: आखिरी कवि थे, जो हिन्दी की सुदीर्घ काव्य-यात्रा में सहभागी रहे। उनकी यह सहभागिता हमेशा प्रासंगिक और अर्थपूर्ण भी रही। उन्होंने उपनिवेशकाल के अन्तिम चरण में कविता के ब्रजभाषा के दौर में लिखना शुरू किया और इक्ïकीसवीं सदी की शुरुआत में हिन्दी कविता के प्रौढ़ हो जाने तक लिखते रहे। उन्होंने हिन्दी कविता के विकास के तमाम उतार-चढ़ाव देखे और उसमें शामिल भी रहे। वे सब आन्दोलन, प्रवृत्तियाँ और प्रभाव, जो हिन्दी कविता में आए-गये, उनकी पदïचाप उनकी कविता में सुनी जा सकती है। उनकी कविता इन सब में थी, उसने इनसे लिया-दिया भी, लेकिन यह इनमें से किसी एक की नहीं हुई। नन्द चतुर्वेदी कहीं भी नहीं ठहरे और इसलिए कभी नहीं चुके। समय नन्द चतुर्वेदी की कविता की धुरी है। उनकी कविता समय के साथ चलती है और कुछ हद तक उससे आगे भी जाती है। उनकी कविता में समय बहुत पारदर्शी है। यह बहुत निर्मम होकर अपने समय को समझती-पहचानती है। नन्द चतुर्वेदी की कविता समय में गहरे डूबी कविता है, लेकिन यह समय में ठहरी और उससे बँधी कविता नहीं है। उनका सम्पूर्ण जीवन उनके कवि और समाजवादी कार्यकर्ता के बीच आवाजाही में निकला। वे समाजवादी विचारक और कार्यकर्ता थे—उन्होंने गैरबराबरी और अन्याय के विरुद्ध आजीवन संघर्ष किया। यह संघर्ष उनकी कविताओं को भी तेजस्वी और प्राणवान बनाता है। हिमांशु पण्ड्या ने उनकी ऐसी ही कविताओं का श्रेष्ïठ चयन पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है जिसका स्वागत नयी पीढ़ी भी करेगी।

About Author

नन्द चतुर्वेदी 1923 में जन्मे कवि, रचनाकार नन्द चतुर्वेदी हिन्दी साहित्य का जाना-माना नाम है। राजस्थान के छालावाड़ में जन्मे नन्द चतुर्वेदी जाने-माने समाजवादी रचनाकार के रूप में स्थापित हैं। उन्होंने ‘बिन्दू’ नाम की पत्रिका का संपादन भी किया, यह समय मामूली नहीं, शब्द-संसार की यायावरी, वो सोये तो नहीं होंगे, उत्सव का निर्मम समय आदि अनेक रचनाएँ इनकी कविता को प्रथम श्रेणी के कवियों में स्थापित करती हैं।

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