Hindi Ka Paryavarniya Sahitya
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Author | Edited by Prabhakaran Hebbar Illath |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 200 |
ISBN | 978-9355182173 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.4 kg |
Edition | 1st |
Hindi Ka Paryavarniya Sahitya
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हिन्दी का पर्यावरणीय साहित्य -आज का ज़माना यह जान चुका है कि बिना प्रकृति के इस भूतल में मानव का मात्र नहीं, प्रकृति के सम्पूर्ण जीव-रूपों का अतिजीवन आगे निस्सन्देह असम्भव है। प्रकृति से एकदम अलग होकर मानव के अस्तित्व की परिकल्पना नहीं की जा सकती है, क्योंकि वह स्वयं प्रकृति का दूसरा रूप है। प्रदूषित, संसाधनहीन, निर्जीव प्रकृति में मानव का चैन से रहना सिर्फ़ एक सपना है। जयप्रकाश कर्दम जैसे समकालीन कवि इस चिन्ता को हमारे सामने रखते हुए कहते हैं कि 'मृत्यु सारे ग्रहों में है, पर जीवन की रंगमयता केवल इस भूमि में मात्र बरकरार है।' अतएव समकालीन संकट की घड़ी में उभरनेवाला ज्वलन्त सवाल यह है कि हम मृत्यु का वरण करें या जीवन का। इस बात को इस भाँति भी व्यक्त किया जा सकता है कि आगामी पीढ़ियाँ सुख-शान्ति से रहें या न रहें। इससे लगता है कि पर्यावरणीय साहित्य का मूलभाव सबको निगलने के लिए तत्पर खड़ी मृत्यु का नितान्त निरोध-विरोध है। पर्यावरणीय संवाद के काल में रेचल कर्सन का नामोल्लेख किये बिना हम आगे नहीं जा सकते हैं। 1962 में आपकी अमर रचना 'साईलेंट स्प्रिंग' का प्रकाशन हुआ था। उसमें पूँजीवाद और तज्जन्य औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप विकसित जीवन परिस्थितियों का हवाला देते हुए आपका कहना यह है कि 'इस पृथ्वी की सारी चीजों पर मृत्यु की परछाई छायी हुई है।' इस सावधानी से ऊर्जा ग्रहण कर विश्वभर के प्रकृति प्रेमी उदबुद्ध हो उठे। कर्सन की चिन्ता भूगोल के नक्शे को बदलने में सफल हुई है। आपके द्वारा प्रसारित चेतना से प्रेरणा ग्रहण कर पर्यावरणीय आन्दोलन उभरे, साहित्य रचा गया, संस्थाएँ खड़ी की गयीं, नवाचार निर्मित हुए, राजनीतिक दलों की स्थापना हुई, संविधान तक पकृत्योन्मुख होता गया। प्रकृति के साथ सर्जनात्मक व द्वैतहीन सम्बन्ध की माँग करने वाले पर्यावरणीय साहित्य का अध्ययन करना समय की माँग है। आजकल एक विशिष्ट विमर्श का रूप धारण कर पर्यावरण विमर्श मानव समाज के 'सामान्य बोध' को निर्मित करने में योगदान दे रहा है। आशा है कि इससे मनुष्य की वैचारिकता में, अभिवृत्तियों में आमूलचूल परिवर्तन हो। इस अन्दाज़ में पर्यावरण साहित्य मानव की समूची वर्तमान संस्कृति के विमर्श का रूप धारण करता है। परिवर्तन की लहरें इस भाँति उठ रही हैं कि आज का मानव उसी भाँति प्रकृति/पर्यावरण को चाहता है, जैसे मरते जाने वाला आदमी ज़िन्दगी को वापस चाहता है।
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