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Hazaar Dastaan e Ishq (Hindi)

Sanjiv Saraf

Rs. 298

The exquisite journey of love passes through numerous twists and turns, bringing different experiences to each individual. In Urdu poetry, poets have penned down these diverse experiences in rhyme with a sheer eloquence that aptly expresses the exceptional bond between the lover and the beloved. Meer, Ghalib, Momin, Dagh, Faiz... Read More

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A
Ajit Pradhan

???????

S
Satish Bedaag

Hazaar Dastaan e Ishq (Hindi)

M
M Swaleh Umair

Hazaar Dastaan e Ishq (Hindi)

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The exquisite journey of love passes through numerous twists and turns, bringing different experiences to each individual.

In Urdu poetry, poets have penned down these diverse experiences in rhyme with a sheer eloquence that aptly expresses the exceptional bond between the lover and the beloved. Meer, Ghalib, Momin, Dagh, Faiz and hundreds of Urdu poets have voices to the emotions of lovers going through stages such as longing, interplay, loving, possessiveness, rivalry, separation, breaking-up and frenzy.

This eloquence makes every reader share this thought, as was inimitably expressed by Mirza Ghalib:

Dekhna taqreer ki lazzat ki jo us ne kahaa

Maine ye jaanaa ki goyaa ye bhi mere dil men hai

‘Love Longing Loss in Urdu Poetry’ narrates the enchanting tale of this journey that includes the subtle nuances and the beauty of Urdu poetry with all its grace.

Also, this book is available in Hindi and Urdu Languages with the title "Hazaar Daastaan-e-Ishq".
Description
The exquisite journey of love passes through numerous twists and turns, bringing different experiences to each individual.

In Urdu poetry, poets have penned down these diverse experiences in rhyme with a sheer eloquence that aptly expresses the exceptional bond between the lover and the beloved. Meer, Ghalib, Momin, Dagh, Faiz and hundreds of Urdu poets have voices to the emotions of lovers going through stages such as longing, interplay, loving, possessiveness, rivalry, separation, breaking-up and frenzy.

This eloquence makes every reader share this thought, as was inimitably expressed by Mirza Ghalib:

Dekhna taqreer ki lazzat ki jo us ne kahaa

Maine ye jaanaa ki goyaa ye bhi mere dil men hai

‘Love Longing Loss in Urdu Poetry’ narrates the enchanting tale of this journey that includes the subtle nuances and the beauty of Urdu poetry with all its grace.

Also, this book is available in Hindi and Urdu Languages with the title "Hazaar Daastaan-e-Ishq".

हज़ार दास्तान-ए-इश्क़ संकलन संजीव सराफ़ हज़ार दास्तान-ए-इश्क़ चयन व संकलन संजीव सराफ़ BOOKS प्रस्तावना अश्आर के विषय आधारित कई चयन, उर्दू देवनागरी और रोमन लिपि में संकलित किए गए हैं, मगर मेरी जानकारी के मुताबिक़ अभी तक अश्आर को एक मुसलसल और क्रमबद्ध कहानी के रूप में पेश करने की कोई ऐसी कोशिश नहीं की गई है जो इस किताब में नज़र आती है। यही इस किताब के वजूद की वजह है। इंसानी स्थिति के तक़रीबन हर पहलू पर शेर कहे गए हैं, मगर उन में मोहब्बत और उसके विभिन्न पहलुओं से सम्बंधित अश्आर की तादाद बेशक सब से जियादा है। मोहब्बत, मोहब्बत में कामयाबी और नाकामी पर ऐसे लाखों शे'र हैं जिन में महबूब की तारीफ़, प्रेम-याचना, मिलन की बेचैनी, मिलन की ख़ुशी और अस्वीकार किए जाने की तक्लीफ़ आदि के अनुभव बयान किए गए हैं। मोहब्बत में डूबे इन शे'रों में गेयता, कोमल सौंदर्यबोध और कलात्मक रख-रखाव मौजूद है। ग़ज़ल कहना कोई बेकार काम नहीं इश्क़िया शाइरी जज्बात के सधे हुए इस्तेमाल के साथ साथ नई सोच, व्यापक भाषा-ज्ञान और गहरी रचनात्मक हुनर-मंदी की माँग करती है। ग़ज़ल का शे'र कह लेने के बाद की हालत को 'फ़िराक़' गोरखपुरी ने कुछ यूँ बयान किया है : कभी पिछले पहर को देख ले किसी साँस लेते चराग को जो ग़जल हुई तो शुऊर में वही ख़स्तगी है वही थकन पिछले बरसों के दौरान मैंने हज़ारों शेर पढ़े होंगे और उन में जो शेर मेरे दिल को लगे उन्हें इकट्ठा करता रहा। पिछले दिनों जब इन शेरों पर निगाह डाली तो ख़याल आया कि इन्हें संकलित कर के दूसरों तक न पहुँचाना सख़्त ना-इन्साफ्री होगी। सो चयन का सिलसिला शुरूअ' हो गया और पैमाना ये तय किया गया कि उन्हीं शेरों को चुना जाए जो मुहावरे बन गए हों या लोगों की जबान पर चढ़े हों या जिन को पढ़ते सुनते ही मुँह से सहसा वाह या आह निकल जाए। इंतिख़ाब हो गया तो अब शेरों को प्रेम अनुभवों की सभी स्थितियों की कहानी कहने के लिए क्रमबद्ध करना था। इस संकलन में मेरी भूमिका 'इश्क़ के मैदान की सैर कराने वाले एक गाइड की है जो अपने पढ़ने वालों को मोहब्बत की अलग-अलग भावनाओं, अनुभूतियों और प्रेम कविता के विभिन्न रंगों, हजार दास्तान-ए-इश्क़ लयों, स्वादों और शैलियों से परिचित करा रहा हो। उम्मीद है कि मैं आप को उर्दू शाइरी की विस्मयकारी दुनिया के क़रीब लाने में कुछ न कुछ कामयाब जरूर रहा हूँ। " यहाँ एक स्पष्टीकरण जरूरी है। मेरी दिलचस्पी बुनियादी तौर पर क्लासिकी उर्दू शाइरी से है, तभी इस संकलन में शामिल अधिकतर शेर मीर, ग़ालिब, दाग़ वग़ैरा के हैं। गैर क्लासिकी शाइरी की सीमित जानकारी की वजह से मोहब्बत के बहुत से शे'र इस संकलन में आने से रह गए होंगे। कोशिश रहेगी कि किताब के अगले संस्करण में ये कमी पूरी कर दी जाए, इंशाअल्लाह। मैं इस किताब के पाठकों से एक ख़ास गुजारिश करना चाहूँगा। आप इन अश्आर को बाहर-बाहर से न पढ़िए। ऐसा करने से आप उन के भावों और भावनाओं की दुनिया से लगाव नहीं पैदा कर सकेंगे। इन शे'रों से पूरी तरह आनंदित होने के लिए उन के पीछे मौजूद 'आशिक़ के व्यक्तित्व से तालमेल होना जरूरी है। इस आशिक़ के दिल-दिमाग़ और आत्मा में उतरने के लिए आप को अपनी कल्पना की सारी क्षमता, संवेदनशीलता, अपनी पूरी आत्मिक ऊर्जा को इस्तेमाल में लाना होगा। इन अश्आर से गुजरते हुए बुद्धि को पीछे रखिए और उस माहौल और हवा में साँस लीजिए जिस में ख़ुद शाइर साँस ले रहा है। बुद्धि का इस्तेमाल सिर्फ़ ज़बान और बयान की शुद्धता और • सूक्ष्म कलात्मकता को समझने तक सीमित रहना चाहिए। बाक़ी काम दिल का है जिसे आशिक़ के सुख-दुख, आशा-निराशा, जुनून और वहशत को आत्मसात और अभिव्यक्त करने के लिए खुला छोड़ दिया जाना चाहिए। मैंने ऐसा ही किया है। नए पढ़ने वालों के लिए एक ख़ास बात । शेर अगरचे उर्दू शाइरी में सब से छोटी संरचना है मगर गहराई के मुआमले में इस का कोई जवाब नहीं। शे'र के दो मिस्टे' (पंक्तियाँ) उस से बहुत जियादा बयान करने की क्षमता रखते हैं जितना कोई सोच सकता है। दोनों मिस्टरों की बह्र (छंद) तो एक होती ही है, उन के बीच एक पेचीदा आंतरिक सम्बंध भी होता है। आमतौर पर पहला मिसरा' या मिस्र:- ए- ऊला एक सवाल पेश करता है जिस से एक तनाव या हैरानी की स्थिति पैदा होती है, कि अब आगे क्या । इस का जवाब दूसरा मिसरा' या मिस्र:- ए-सानी देता है। शे'र पढ़ते हुए, शाइर अक्सर मिस्र:-ए-ऊला को दो बार पढ़ते हैं, ताकि मिस्र:-ए-सानी के पूरी तरह प्रभावी होने के लिए माहौल तैयार हो सके। एक निजी अनुभव तबीअत के उतार-चढ़ाव, मिजाज की तेजी सुस्ती, ख़ुद को भुला देने वाली ख़ुशी और जान जला देने वाली तक्लीफ़, जो सिर्फ़ मोहब्बत ही दे सकती है, से गुजरे बिना ये किताब मुम्किन नहीं थी। शा'इरी के साथ जज्बाती लगाव और संवेदनशीलता, इसके एहसास से गुज़रे या उसे कल्पना के जरीए हासिल करने की बेहद दुर्लभ क्षमता के बिना पैदा नहीं हो सकती। 'अकबर' इलाहाबादी ने कहा है : दर्द को दिल में दे जगह 'अकबर' 'इल्म से शाइरी नहीं आती और ये बात पूरी तरह दुरुस्त है कि निजी अनुभव के बिना शाइरी, ख़ून की गर्मी, जज्बात की आँच और रंग-सुगंध रहित ख़ाली ख़ूली कल्पना के सिवा और कुछ नहीं होती। सुर्ख़-रु होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बाद रंग लाती है हिना पत्थर से पिस जाने के बाद ये शे'र भी इसी सच्चाई को एक और तरह से बयान करता है। मुझे रूमानी तबीअत विरासत में मिली है, ख़ास कर मेरे पिता की तरफ़ से। जैसा कि 'फ़िराक़' गोरखपुरी कहते हैं सुनते हैं 'इश्क़ नाम के गुज़रे हैं इक बुजुर्ग हम लोग भी फ़क़ीर उसी सिलसिले के हैं - मैं भी मोहब्बत की आग का ईंधन रहा हूँ। मोहब्बत से जुड़े सारे हालात - चाहत, शादी, अलगाव, और बेगानगी, मुझ पर भी गुजरे हैं, जिन्होंने मुझे ख़ूब तोड़ा-फोड़ा है और इसीलिए मेरी तबीअत इश्क़िया शाइरी के जज्बात और संवेदनात्मक कोमलता के अनुरूप हो गई है। इश्क़िया शाइरी की यही समझ है जिसे मैंने इस किताब के पन्नों में पेश करना चाहा है। मोहब्बत में कामयाबी और नाकामी दोनों तरह के अनुभवों से गुजरने वाले लोग, यहाँ पेश किए गए अश्आर के आईने में अपने हालात के अक्स देख सकते हैं। हजार दास्तान-ए-इश्क़ इस किताब के लिए अश्आर का चयन करते हुए, मेरा हाल भी मिर्जा गालिब का सा रहा है यानी: खुलता किसी पे क्यों मिरे दिल का मुआमला शेरों के इंतिख़ाब ने रुस्वा किया मुझे लेकिन फिर ये भी कि अब मैं उम्र की उस मंजिल से बहुत आगे आ चुका हूँ जब दूसरों की आलोचना चिंता और दुख की वजह होती है। मैंने अपनी बेशतर जिन्दगी अपनी शर्तों और जरूरतों के मुताबिक़ गुज़ारी है, जिसमें किसी से मुआफ़ी माँगने की कोई गुन्जाइश नहीं। मोमिन ख़ाँ मोमिन' के शब्दों में: उम्र तो सारी कटी 'इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन' आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे मैं जनाब मुजफ्फर अली का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने इस किताब के लिए रेखाचित्र तैयार किए और जिन की बहुआयामी रचनात्मकता मेरे लिए प्रेरणास्रोत रही है। रेख़्ता फ़ाउंडेशन से जुड़े असाधारण लोगों-मेरे अजीज दोस्त फ़रहत एहसास (चीफ़ एडिटर, rekhta.org), तनवीर अली सय्यद, सालिम सलीम, राहुल झा, सुरेश पँवार और मोहम्मद अशरफ़ के सहयोग के बिना इस किताब का प्रकाशन संभव नहीं था, जिन्होंने प्रूफ रीडिंग और प्रोडक्शन आदि की सेवाएँ दीं। मुझे उम्मीद है कि ये तमाम अजीज मेरी इस लेखन यात्रा का हिस्सा बन कर खुश होंगे। संजीव सराफ नई दिल्ली मोहब्बत शाइरी के विभिन्न प्रतीक दिल प्रेमिका संदेश वाहक उपेक्षा नक़ाब आमने-सामने छेड़-छाड़ चुंबन वादा और इंतिज़ार मिलन प्रेम-रोग ईर्ष्या प्रतिद्वंदी बेवफ़ाई प्रेम-अत्याचार क़ातिल दूरियाँ सम्बंध टूटना विरह प्रेमिका की गली दीवानगी मौत की इच्छा शा'इर-संचयन सूची 001 031 045 055 085 093 101 107 121 135 147 159 181 189 195 205 213 223 231 243 249 265 275 285 292 हजार दास्तान-ए-इश्क़ मोहब्बत क्या है? शा'इरों ने इस बुनियादी सवाल का तरह तरह से जवाब दिया है मोहब्बत व्यापक है इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना' ये फ़साना है सिमटे तो दिल-ए- आशिक़ फैले तो जमाना है जिगर मुरादाबादी इसके कई पहलू हैं मोहब्बत चीख़ भी ख़ामोशी भी नरमा' भी नारा भी ये इक मजमून' है कितने ही उन्वानों' से वाबस्ता' हफ्रीज मेरठी यह सब कुछ मिटा डालती है पूछे है क्या वजूद-ओ-'अदम' अल-ए-शौक़' का आप अपनी आग के ख़स-ओ-ख़ाशाक' हो गए मिर्ज़ा ग़ालिब मीर कहते हैं मोहब्बत काफ़िरों का मज़हब है सख़्त काफ़िर था जिन ने पहले 'मीर' मजहब-ए-इश्क़' इख़्तियार किया मीर तक़ी मीर मोहब्बत 'काल्पनिक होती है ● शुरूआत में जब मन उलझा होता है, ख़ुद 'आशिक़ को भी मोहब्बत पागलपन का काम मालूम होता है बुलबुल' के कारोबार पे हैं ख़न्दः-हा-ए-गुल कहते हैं जिस को 'इश्क़ ख़लल' है दिमाग़ का मिर्जा गालिब N 01 1. प्रेम शब्द 2. छोटा 3. कहानी 02 1. गीत 2. जोर की आवाज 3. विषय 4. शीर्षकों 5. सम्बंधित 03 1. अस्तित्व और अनस्तित्व 2. मोहब्बत करने वाले 3. घास-फूस 04 1. नास्तिक 2. प्रेम का धर्म 3. अपनाना 05 1. एक परिन्दे का नाम 2. खिले हुए फूल 3. बाधा, हस्तक्षेप उर्दू के सब से बड़े शाइर का कहना है कि मोहब्बत दृष्टि देती है मोहब्बत ने जुल्मत' से काढ़ा है नूर न होती मोहब्बत न होता जुहूर मीर तक़ी मीर मोहब्बत अपने में मुकम्मल है 'इश्क़ माशूक़' 'इश्क़ 'आशिक़' है यानी अपना ही मुब्तला' है 'इश्क़ मीर तक़ी मीर मोहब्बत ही ज़िन्दगी का लक्ष्य है कौन मक्सद' को 'इश्क़ बिन पहुँचा आरजू 'इश्क़ मुद्द'आ' है 'इश्क़ मीर तक़ी मीर यह आग की तरह फैलती है शायद इसी का नाम मोहब्बत है 'शेता" इक आग सी है सीने के अन्दर लगी हुई मुस्तफा ख़ाँ शेता ये इंसान के इख़्तियार में नहीं 'इश्क़ पर जोर' नहीं, है ये तो आतिश' 'गालिब' कि लगाए न लगे और बुझाए न बने मिर्जा गालिब इसमें ख़ुद के लिए भी वक़्त नहीं मिल पाता 'इश्क़ वो कार-ए-मुसलसल है कि हम अपने लिए एक लम्हा भी पस अंदाज़ नहीं कर सकते रईस फरोग मोहब्बत 06 1. अंधेरा 2. रौशनी 3. प्रकट होना 07 1. प्रेमिका 2. प्रेमी 3. पीड़ित ग्रस्त 08 1. उद्देश्य 2. मत्लब की बात 09 1. मुग्ध, आसक्त 10 1. नियंत्रण 2. आग 11 1. लगातार कार्य 2. पल 3. अलग रखना, बचाना 3 हजार दास्तान-ए-इश्क़ माशूक़ की कोहनी देख कर उत्तेजित हो जाता है आस्तीं उस ने जो कुहनी तक चढ़ाई वक़्त-ए-सुबह आ रही सारे बदन की बे-हिजाबी हाथ में गुलाम हमदानी 'मुस्हफ्री माशूक की खिलती हुई जवानी उसकी जवानी का तूफ़ान उफ़ वो तूफ़ान-ए-शबाब आह वो सीना तेरा जिसे हर साँस में दब दब के उभरता देखा 'अंदलीब शादानी और जवानी की है आमद' शर्म से झुक सकती हैं आँखें मगर सीने का फ़िना' रुक नहीं सकता उभरने से अकबर इलाहाबादी कामोत्तेजक ये सैर है कि दुपट्टा उड़ा रही है हवा छुपाते हैं जो वो सीना कमर नहीं छुपती दाग़ देहलवी माशूक की ख़ूबियाँ जब आ'शिक़ को अपने माशूक़ को क़रीब से देखने का मौक़ा मिलता है तो वो उसकी आँखें, जो उसकी रूह का दरवाजा हैं, देखकर ही सम्मोहित हो जाता है। आँखों पर एक बहुत ही खूबसूरत शेर खिलना कम कम कली ने सीखा है। उस की आँखों की नीम-ख़्वाबी से मीर तक़ी मीर 62 36 1. सुबह के समय 2. नग्नता 37 1. जवानी का तूफ़ान 38 1. आगमन 2. शरारत 39 40 1. आधी बंद आँखों का ख़ास हुस्न है ये ख़द्द-ओ-ख़ाल ये गेसू ये सूरत-ए-जेबा सभी का हुस्न है अपनी जगह मगर आँखें खान रिजवान उन आँखों को देखने वाला और कुछ नहीं देख सकता जिस ने तेरी नज़र को देख लिया उसको दुनिया नज़र नहीं आती जिगर बरेलवी आँखों की रौशनी भटका भी सकती है रौशनी अब राह से भटका भी देती है मियाँ उसकी आँखों की चमक ने मुझको बेघर कर दिया जफर इक़बाल नशीली आँखें सर चढ़ने वाला नशा 'मीर' उन नीम-बाज' आँखों में सारी मस्ती शराब की सी है मीर तक़ी मीर और पैमाना कहे है कोई मय-ख़ाना कहे है दुनिया तिरी आँखों को भी क्या क्या न कहे है अज्ञात आशिक़ को नशा हो गया है। देखा है किस निगाह से तू ने सितम- जरीफ़ महसूस हो रहा है मैं ग़र्क़-ए-शराब हूँ अब्दुल हमीद 'अदम 41 1. स्वरूप, आकार 2. सुंदर चेहरा 42 43 प्रेमिका 44 1. अध-खुली 45 46 1. अत्याचारी 2. शराब में डूबा में 63. हजार दास्तान-ए- 'इश्क़ माशूक का दिल पसीज जाता है वो उस से मिलने लगती है, कभी शर्माते हुए, कभी दूर-दूर से, कभी प्यार जताते हुए तो कभी शोख़ी के साथ? मगर अब भी बच बच कर रहती है। था मुसलमाँ जब तलक मुश्ताक़' काफ़िर था वो त मैं हुआ काफिर तो वो ज़िद से मुसलमाँ हो गया अज्ञात जब वो माशूक़ से मस्जिद में मिलता है मस्जिद में उस ने हम को आँखें दिखा के मारा काफिर की शोख़ी देखो घर में ख़ुदा के मारा शेख इब्राहीम जौक़ मिलने के लिए चाल बाज़ियाँ भी करता है सीखे हैं मह रुख़ों के लिए हम मुसव्वरी' तक़रीब' कुछ तो बहर-ए- मुलाक़ात चाहिए मिर्जा ग़ालिब जब वो उसे घेर लेता है आज घेरा ही था उसे मैं ने कर के इक़रार' मुझ से छूट गया से क़लंदर बख़्श जुरअत उससे मिलने की याचना करता है गुलों' में रंग भरे बाद -ए-नौ-बहार' चले चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले फ़ैज़ अहमद फ़ैज 122 01 1. चाहने वाला 2. नास्तिक 3. मूर्ति, माशूक्र 02 03 1. चाँद सा चेहरा 2. चित्रकला 3. मौक़ा 4. मिलने के लिए 04 1. स्वीकृति 05 1. फूलों 2. बहार की हवा 3. बाग़ हजार दास्तान-ए-इश्क़ 'आशिक़ की चिंताएँ गलत नहीं हैं। यक़ीनी तौर पर दाल में कुछ काला है। 'आशिक़ का प्रतिद्वन्द्वी जिसे उर्दू में रक़ीब, गैर और दुश्मन कहा गया है उर्दू शाइरी का महत्वपूर्ण किर्दार है, जो प्रेमिका के पीछे पड़ा है और ख़ुद प्रेमिका भी उधर आकृष्ट है। ईर्ष्या, कड़वाहट, गहरी ना-पसन्दीदगी और असुरक्षा की भावना चन्द बहुत अच्छी उर्दू शा'इरी के विषय रहे हैं। लोग 'आशिक़ से जलते हैं जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ जाने क्यों लोग मिरे नाम से जल जाते हैं क़तील शिफाई दोस्त दुश्मन हो रहे हैं जिक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज-दाँ अपना मिर्जा गालिब मा'शूक़ का ख़त पाकर 'आशिक़ को शक होता है तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था न था रक़ीब' तो आख़िर वो नाम किस का था दाग़ देहलवी माशूक रक़ीबों से घिरा हुआ है बैठे हुए रक़ीब हैं दिलबर के आस-पास काँटों का है हुजूम गुल-ए-तर के आस-पास जिगर मुरादाबादी इसीलिए वो शिकायत करता है जम्अ करते हो क्यों रक़ीबों को इक तमाशा हुआ गिला' न हुआ मिर्जा ग़ालिब 196 01 02 1. चर्चा 2. परियों जैसा सुदर 3. दुश्मन 4. रहस्य जानने वाला 03 1. दुश्मन 04 1. माशूक्र 2. भीड़ 3. ताजा फूल 05 1. शिकायत जब वो माशूक़ को ग़ैर की बाँहों में देखता है इलाही क्यों नहीं उठती क़यामत माजरा क्या है हमारे सामने पहलू में वो दुश्मन के बैठे हैं दाग़ देहलवी अपने नसीब से शिकायत करता है कल मिरा था दोस्त अब वो गैर का होने लगा वाए क़िस्मत दो ही दिन में क्या से क्या होने लगा उम्मीद ख्वाजा और मा'शूक़ की तरफ़ से सफ़ाई तलाश करता है से ग़ैर को या रब वो क्योंकर मन ए' गुस्ताख़ी' करे गर हया भी उसको आती है तो शर्मा जाए है मिर्जा गालिब उसे माशूक़ से दूर रहने पर परेशानी है जो कोई आवे है नज़दीक ही बैठे है तिरे हम कहाँ तक तिरे पहलू से सरकते जावें मीर हसन एक प्यारी सी शिकायत महफ़िल में कर रहें हैं रक़ीबों को वो सलाम वालैकुमस्सलाम किए जा रहा हूँ मैं अज्ञात नोट 1: 'सलाम-ओ- अलैकुम का मत्लब है आप सलामत रहें जिसके जवाब में 'व' अलैकुमस्सलाम' का मतलब है आप भी सलामत रहें। 06 - 1. बात 07 08 1. शरारत से रोकना 09 प्रतिद्वन्द्वी 10 1. सभा 2. दुश्मन नोट-1 197 हजार दास्तान-ए-'इश्क्र रोके जाने पर कहता है हम भी दीवाने हैं वहशत में निकल जाएँगे नज्द इक दश्त है कुछ क़ैस की जागीर नहीं मुबारक 'अजीमाबादी और सफ़ाई देता है क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो खूब गुजरेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो मियाँ दाद खां सय्याह लेकिन मज्जूँ की प्रसिद्धि से उसे ईर्ष्या भी है मेरे हवास' 'इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर मज्यूँ का नाम हो गया क़िस्मत की बात है। अकबर इलाहाबादी और मज्नूँ और फर्हाद के सौभाग्य से भी मैं सिसकता रह गया और मर गए फ़र्हाद-ओ-फ़ैस क्या उन्ही दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी मैं न था बहादुर शाह जफर वीराना उसे जाना पहचाना लगता है कोई वीरानी सी वीरानी है दश्त' को देख के घर याद आया मिर्जा गालिब नोट 1: अरबी लोककथाओं में क़ैस (जिन्हें उनके जूनून के कारण मजनूँ कहा जाता है) लगातार नज्द रेगिस्तान में भटकते रहते थे और वो रेगिस्तान उनके नाम के साथ जुड़ गया है। यहाँ कवि उस रेगिस्तान पर क्रैस के स्वामित्व को चुनौती देता है। 282 29 1. दीवानगी 2. वीराना नोट- 1 30 31 1. इन्द्रिय 2. बिखरा हुआ 32 1. मौत 33 1. वीराना जब वो थक कर गिर पड़ता है। रेत पर थक के गिरा हूँ तो हवा पूछती है आप इस दश्त में क्यों आए थे वहशत के बगैर 'इरफान सिद्दीक़ी जब वो रुक कर पाँव से काँटे निकालता है तो उससे सवाल होता है ठहर के तलवों से काँटे निकालने वाले ये होश है तो जुनूँ कामयाब क्या होगा राज यजदानी वो दीवानगी की आख़िरी हद तक पहुँच जाता है अपने मा'शूक़ से दूर हो जाना चाहता है कमाल-ए-इश्क़' है दीवाना हो गया हूँ मैं ये किस के हाथ से दामन छुड़ा रहा हूँ मैं असरारुल हक़ मजाज और प्रेम का त्याग करना भी जुनून-ए-मोहब्बत' यहाँ तक तो पहुँचा कि तर्क-ए-मोहब्बत किया चाहता हूँ जिगर मुरादाबादी नोट 1: शाइर कहता है कि वह अब ऐसे मक्राम पर पहुँच गया है कि वो खुद को गिरफ्त से आजाद करना चाहता है, जिसने उसका दामन पकड़ उसे रोक रखा है। माशूक्र की 34 1. वीराना 2. दीवानगी 35 दीवानगी 36 1. प्रेम की परा काष्ठा नोट 37 1. प्रेम दीवानगी 2. मोहब्बत छोड़ना 283

Additional Information
Book Type

Default title

Publisher Rekhta Publications
Language Hindi
ISBN 978-9391080792
Pages 0
Publishing Year 2021

Hazaar Dastaan e Ishq (Hindi)

The exquisite journey of love passes through numerous twists and turns, bringing different experiences to each individual.

In Urdu poetry, poets have penned down these diverse experiences in rhyme with a sheer eloquence that aptly expresses the exceptional bond between the lover and the beloved. Meer, Ghalib, Momin, Dagh, Faiz and hundreds of Urdu poets have voices to the emotions of lovers going through stages such as longing, interplay, loving, possessiveness, rivalry, separation, breaking-up and frenzy.

This eloquence makes every reader share this thought, as was inimitably expressed by Mirza Ghalib:

Dekhna taqreer ki lazzat ki jo us ne kahaa

Maine ye jaanaa ki goyaa ye bhi mere dil men hai

‘Love Longing Loss in Urdu Poetry’ narrates the enchanting tale of this journey that includes the subtle nuances and the beauty of Urdu poetry with all its grace.

Also, this book is available in Hindi and Urdu Languages with the title "Hazaar Daastaan-e-Ishq".