BackBack

Ham Gunahgar aur Besharm Auraten

Rs. 395

कविता के पास एक सशक्त और संप्रेषणीय भाषा है जिसमें कविता की लय है और स्त्री की भंगिमा। इस संग्रह की कविताएँ एक यात्रा की तरह हैं जिसके पड़ाव बीच-बीच में चकित करते हैं तो कभी शांत होकर सोचने को विवश करते हैं। दृष्टि का पैनापन 'महापुरुष का स्त्री होना'... Read More

Reviews

Customer Reviews

Be the first to write a review
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
readsample_tab
कविता के पास एक सशक्त और संप्रेषणीय भाषा है जिसमें कविता की लय है और स्त्री की भंगिमा। इस संग्रह की कविताएँ एक यात्रा की तरह हैं जिसके पड़ाव बीच-बीच में चकित करते हैं तो कभी शांत होकर सोचने को विवश करते हैं। दृष्टि का पैनापन 'महापुरुष का स्त्री होना' जैसी कविता में झलकता है तो 'मछली के पंख' जैसी कविता पारंपरिक प्रतीकों के ज़रिए नए स्त्री जीवन की विडम्बनाओं को नई अभिव्यक्ति में तब्दील कर देती हैं। ये कविताएँ उस स्त्रीवादी स्टैंड को आवाज़ देती हैं जहाँ किसी के साथ अन्याय, लिंचिंग, धोखा न हो; जहाँ हर कमज़ोर, परित्यक्त, दुखी के प्रति संवेदनशीलता के साथ दुनिया को प्रेम से बेहतर बनाने का स्वप्न पलता है। यह गुनाह है तो एक खूबसूरत गुनाह है! भाषा ने स्त्रियों के साथ जो भी छल किया हो उसे धो-पोंछकर अपनी बात कहलवाने की उत्कट इच्छा इस संग्रह की ताकत है जिसका हिंदी कविता की दुनिया में स्वागत किया जाना चाहिए। —सुजाता
Description
कविता के पास एक सशक्त और संप्रेषणीय भाषा है जिसमें कविता की लय है और स्त्री की भंगिमा। इस संग्रह की कविताएँ एक यात्रा की तरह हैं जिसके पड़ाव बीच-बीच में चकित करते हैं तो कभी शांत होकर सोचने को विवश करते हैं। दृष्टि का पैनापन 'महापुरुष का स्त्री होना' जैसी कविता में झलकता है तो 'मछली के पंख' जैसी कविता पारंपरिक प्रतीकों के ज़रिए नए स्त्री जीवन की विडम्बनाओं को नई अभिव्यक्ति में तब्दील कर देती हैं। ये कविताएँ उस स्त्रीवादी स्टैंड को आवाज़ देती हैं जहाँ किसी के साथ अन्याय, लिंचिंग, धोखा न हो; जहाँ हर कमज़ोर, परित्यक्त, दुखी के प्रति संवेदनशीलता के साथ दुनिया को प्रेम से बेहतर बनाने का स्वप्न पलता है। यह गुनाह है तो एक खूबसूरत गुनाह है! भाषा ने स्त्रियों के साथ जो भी छल किया हो उसे धो-पोंछकर अपनी बात कहलवाने की उत्कट इच्छा इस संग्रह की ताकत है जिसका हिंदी कविता की दुनिया में स्वागत किया जाना चाहिए। —सुजाता

Additional Information
Book Type

Hardbound

Publisher
Language
ISBN
Pages
Publishing Year

Ham Gunahgar aur Besharm Auraten

कविता के पास एक सशक्त और संप्रेषणीय भाषा है जिसमें कविता की लय है और स्त्री की भंगिमा। इस संग्रह की कविताएँ एक यात्रा की तरह हैं जिसके पड़ाव बीच-बीच में चकित करते हैं तो कभी शांत होकर सोचने को विवश करते हैं। दृष्टि का पैनापन 'महापुरुष का स्त्री होना' जैसी कविता में झलकता है तो 'मछली के पंख' जैसी कविता पारंपरिक प्रतीकों के ज़रिए नए स्त्री जीवन की विडम्बनाओं को नई अभिव्यक्ति में तब्दील कर देती हैं। ये कविताएँ उस स्त्रीवादी स्टैंड को आवाज़ देती हैं जहाँ किसी के साथ अन्याय, लिंचिंग, धोखा न हो; जहाँ हर कमज़ोर, परित्यक्त, दुखी के प्रति संवेदनशीलता के साथ दुनिया को प्रेम से बेहतर बनाने का स्वप्न पलता है। यह गुनाह है तो एक खूबसूरत गुनाह है! भाषा ने स्त्रियों के साथ जो भी छल किया हो उसे धो-पोंछकर अपनी बात कहलवाने की उत्कट इच्छा इस संग्रह की ताकत है जिसका हिंदी कविता की दुनिया में स्वागत किया जाना चाहिए। —सुजाता