Gyan Ka Gyan
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Author | Hridaynarayan Dikshit |
Publisher | Vani Prakashan |

Gyan Ka Gyan
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'ज्ञान का ज्ञान' शब्दों से नहीं मिला लेकिन शब्द ही सहारा है। शब्द मार्ग संकेत है। उपनिषदों के शब्द संकेत जिज्ञासा को तीव्र करते हैं-छुरे की धार की तरह। सो मैंने अपनी समझ बढ़ाने के लिए ईशावास्योपनिषद्, कठोपनिषद्, प्रश्नोपनिषद् व माण्डूक्योपनिषद् के प्रत्येक मन्त्र का अपना भाष्य लिखा है। उपनिषद् ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। विश्व दर्शन पर उनका प्रभाव पड़ा है। भारत को समझने का लक्ष्य लेकर यहाँ आये विदेशी विद्वानों को भी उपनिषदों से प्यार हुआ है। मूलभूत प्रश्न है कि क्या तेज़ रफ़्तार जीवन में सैकड़ों वर्ष प्राचीन ज्ञान अनुभूति की कोई उपयोगिता है? यहाँ इस पुस्तक में किसी ज्ञान का दावा नहीं। पहला अध्याय 'ज्ञान का ज्ञान' है। यहाँ ज्ञान के अन्तस् में प्रवेश की अनुमति चाही गयी है। दूसरा अध्याय ब्राह्मण, उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र है। यह तीनों का परिचयात्मक है। ईशावास्योपनिषद् के विवेचन वाले अध्याय के एक अंश में ईश्वर को भी विवेचन का विषय बनाया है। यह भाग मैंने अपनी ही लिखी एक पुस्तक ‘सोचने की भारतीय दृष्टि' से लिया है। प्राकविवरण के लिए इतना काफ़ी है। इसके बाद चार उपनिषदों को हमारे साथ पढने की विनम्र अपेक्षा है। हाँ में हाँ मिलाते हए नहीं, अपने संशय और प्रश्नों की पूँजी साथ लेकर। फिर जो उचित जान पड़े वही दिशा। हमने यथार्थ का निषेध नहीं किया। यथार्थ को ही लक्ष्य नहीं माना। अन्तश्चेतना की स्वाभाविक दीप्ति को ही यहाँ शब्द दिये गये हैं। उपनिषद् अध्ययन का अपना रस है। यही रस आनन्द बाँटने, मित्रों को इस ओर प्रेरित करने के प्रयोजन से ऐसी पुस्तिका की योजना मेरे मन में थी।
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