Ek chakranagari
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    | Item Weight | 173 gram | 
| ISBN | 978-93-91277-04-8 | 
| Author | Gyanendrapati | 
| Language | Hindi | 
| Publisher | Setu prakashan | 
| Pages | 80 | 
| Book Type | Hardbound | 
| Dimensions | 129 x 198 mm | 
| Publishing year | 2021 | 
| Edition | 1st | 
| Return Policy | 5 days Return and Exchange | 
  
  
Ek chakranagari
            Product description
          
        
        
          
          
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                    About Book
एकचक्रानगरी ! यह काव्याख्यान अपनी संरचना में ही नाटकीय है; इसे पढ़ते हुए भी आप इसे अपने मन की आँखों के आगे मंचित होता महसूस कर सकते हैं।
'एकचक्रानगरी' एक व्यायोग है और नहीं है। है, क्योंकि इसका आकार तनु है, कथा ख्यात है, अधिकतर पुरुष पात्र हैं, स्वल्प स्त्रीजन संयुत है, समरोदय स्त्री के निमित्त नहीं होता, दीप्त काव्य-रस पाठक को अभिसिंचित करता है। नहीं है, क्योंकि इसका इतिवृत्त एक दिन में सम्पन्न नहीं होता, इसलिए भी यह एकांकी नहीं। गोया, यह शुद्ध व्यायोग नहीं। आखिर तो अपन स्पेनिश भाषा के कवि पाब्लो नेरुदा के भी मुरीद ठहरे जो 'अशुद्ध कविता' के पैरोकार थे, सो अपन से किसी भी सर्वथा शुद्ध चीज़ की आशा दुराशा ही सिद्ध होनी है, आखिरकार!
'एकचक्रानगरी' में ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया है जो महाभारत में की मूल कथा से बाहर हो। तिनका-प्रसंग वहाँ भी आता है, खेल-खेल में। बस केवल सर्जक-दृष्टि को संकेन्द्रित कर महाभारत के पृष्ठों पर से अपने समय की माँग के अनुरूप पाठ तैयार किया गया है। बर्गसाँ जिसे वर्तमान की अतीत के पुनस्सृजन की शक्ति कहते हैं, उसका लघु निदर्शन शायद!
प्रसिद्ध चरित्रों के साथ आनन्दी, दुखिया, नगरसेठ जैसे कुछ कल्पित प्रातिनिधिक चरित्रों को घुलाने-मिलाने के अलावा नगरदेवी के चरित्र की अवधारणा वाल्मीकीय रामायण से ली गयी है।
महाभारत में रामायण की कलम लगाने में हरज़ ही क्या है (वैसे तो महाभारत में रामायण लघु रूप में अन्तर्भुक्त है ही)! आचार्य क्षेमेन्द्र ने व्यास को भुवनोपजीव्य और वाल्मीकि को सर्वोपजीव्य कवि माना है जिनके पास रचनोत्सुक हथेली फैलाये निस्संकोच जाया जा सकता है।
 
About Author
ज्ञानेन्द्रपति
जन्म झारखण्ड के एक गाँव पथरगामा में, पहली जनवरी, 1950 को, एक किसान परिवार में।
पटना विश्वविद्यालय से पढ़ाई।
दसेक वर्षों तक बिहार सरकार में अधिकारी के रूप में कार्य।
नौकरी को 'ना करी' कह, बनारस में रहते हुए, फ़क़त कविता-लेखन।
प्रकाशित कृतियाँ : आँख हाथ बनते हुए (1970) शब्द लिखने के लिए ही यह काग़ज़ बना है (1981) गंगातट (2000), संशयात्मा (2004), भिनसार (2006), कवि ने कहा (2007) मनु को बनाती मनई (2013), गंगा-बीती (2019), कविता भविता-2020 (कविता-संग्रह), एकचक्रानगरी (काव्य-नाटक) पढ़ते-गढ़ते (कथेतर गद्य) भी प्रकाशित।
'संशयात्मा' के लिए वर्ष 2006 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार। समग्र लेखन के लिए पहल सम्मान, शमशेर सम्मान, नागार्जुन सम्मान आदि कतिपय सम्मान।
                  
              एकचक्रानगरी ! यह काव्याख्यान अपनी संरचना में ही नाटकीय है; इसे पढ़ते हुए भी आप इसे अपने मन की आँखों के आगे मंचित होता महसूस कर सकते हैं।
'एकचक्रानगरी' एक व्यायोग है और नहीं है। है, क्योंकि इसका आकार तनु है, कथा ख्यात है, अधिकतर पुरुष पात्र हैं, स्वल्प स्त्रीजन संयुत है, समरोदय स्त्री के निमित्त नहीं होता, दीप्त काव्य-रस पाठक को अभिसिंचित करता है। नहीं है, क्योंकि इसका इतिवृत्त एक दिन में सम्पन्न नहीं होता, इसलिए भी यह एकांकी नहीं। गोया, यह शुद्ध व्यायोग नहीं। आखिर तो अपन स्पेनिश भाषा के कवि पाब्लो नेरुदा के भी मुरीद ठहरे जो 'अशुद्ध कविता' के पैरोकार थे, सो अपन से किसी भी सर्वथा शुद्ध चीज़ की आशा दुराशा ही सिद्ध होनी है, आखिरकार!
'एकचक्रानगरी' में ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया है जो महाभारत में की मूल कथा से बाहर हो। तिनका-प्रसंग वहाँ भी आता है, खेल-खेल में। बस केवल सर्जक-दृष्टि को संकेन्द्रित कर महाभारत के पृष्ठों पर से अपने समय की माँग के अनुरूप पाठ तैयार किया गया है। बर्गसाँ जिसे वर्तमान की अतीत के पुनस्सृजन की शक्ति कहते हैं, उसका लघु निदर्शन शायद!
प्रसिद्ध चरित्रों के साथ आनन्दी, दुखिया, नगरसेठ जैसे कुछ कल्पित प्रातिनिधिक चरित्रों को घुलाने-मिलाने के अलावा नगरदेवी के चरित्र की अवधारणा वाल्मीकीय रामायण से ली गयी है।
महाभारत में रामायण की कलम लगाने में हरज़ ही क्या है (वैसे तो महाभारत में रामायण लघु रूप में अन्तर्भुक्त है ही)! आचार्य क्षेमेन्द्र ने व्यास को भुवनोपजीव्य और वाल्मीकि को सर्वोपजीव्य कवि माना है जिनके पास रचनोत्सुक हथेली फैलाये निस्संकोच जाया जा सकता है।
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ज्ञानेन्द्रपति
जन्म झारखण्ड के एक गाँव पथरगामा में, पहली जनवरी, 1950 को, एक किसान परिवार में।
पटना विश्वविद्यालय से पढ़ाई।
दसेक वर्षों तक बिहार सरकार में अधिकारी के रूप में कार्य।
नौकरी को 'ना करी' कह, बनारस में रहते हुए, फ़क़त कविता-लेखन।
प्रकाशित कृतियाँ : आँख हाथ बनते हुए (1970) शब्द लिखने के लिए ही यह काग़ज़ बना है (1981) गंगातट (2000), संशयात्मा (2004), भिनसार (2006), कवि ने कहा (2007) मनु को बनाती मनई (2013), गंगा-बीती (2019), कविता भविता-2020 (कविता-संग्रह), एकचक्रानगरी (काव्य-नाटक) पढ़ते-गढ़ते (कथेतर गद्य) भी प्रकाशित।
'संशयात्मा' के लिए वर्ष 2006 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार। समग्र लेखन के लिए पहल सम्मान, शमशेर सम्मान, नागार्जुन सम्मान आदि कतिपय सम्मान।
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