Dingal Parampara
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Item Weight | 400 Grams |
ISBN | 978-9385593833 |
Author | Mahipal Singh Rathore |
Language | Hindi |
Publisher | Rajasthani Granthagar |
Pages | NA |
Book Type | Paperback |
Publishing year | 2016 |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Dingal Parampara
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डिंगल परम्परा : राजस्थान वीरों की वसुंधरा, प्रेमियों का प्रांगण और भक्तों की प्रिय धरा रूप त्रिवेणी का संगम रहा है। यहाँ की सुभट संस्कृति, पावन परम्परा और अनूठे इतिहास के उद्भव और विकास में कलम एवं कृपाण के समान रूप से धनी डिंगल कवियों का महान योगदान रहा है। यहाँ के शासक और कवि एक ही पथ के सहभागी रहे हैं। ऐसे में रक्त रंजित जिंदगी और तूफानी मौत का संदेश ही नहीं राष्ट्रीयता और जातीय गौरव के पर्याय इन गीतों का समुचित अध्ययन होना चाहिए। परिवर्तन का चक्र बड़ी तेज गति से घूम रहा है। पुराने मूल्य ढह रहे हैं और नये स्थापित नहीं हो रहे हैं। एक खाली अंतराल है, ऐसे में हमारे सम्मुख ऐसे जीवन मूल्यों व मानवीयता की रक्षा की सीख देने वाली साहित्यिक विधाओं के अध्ययन की ओर भी जरूरत बढ़ जाती है। इस सम्बन्ध में ओपा जी आढा की कविता दृष्टव्य है :-कर जाणो जिके भलाई कीजो, लाभ जनम रो लीजो जोय।पुरुष दोय दिन तणा पामणा, किण सूं मती बिगाड़ो कोय।।जाणो छे जाणो छै जाणो, समझो भीतर बार समान।बै दिन काज कजहर मत बोवो, मरदां दूर करो अभिमान।।यूं इज करतां जावे ऊमर, पर मन कलप परार न पौर।आपां बात करां अवरां री, आंपा री कोइ करसी और।।RelatedTRUE
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