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Dhoop Mein Baithne Ke Din Aaye
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Abount the Book: धूप में बैठने के दिन आए' सुनील आफ़ताब का पहला शेरी मज्मूआ है। इस किताब में सुनील आफ़ताब ने नाज़ुक और मद्धम लहजे और सादा ज़बान में अपने एहसासात को बयान किया है, जिसका क़ारी पर कुछ अलग ही असर दिखता है।

Abount the Author: सुनील आफ़ताब का शुमार नई पीढ़ी के नुमाइन्दा शायरों में होता है।वो पंजाब की मिट्टी से ताल्लुक़ रखते हैं। उनका जन्म 23 नवम्बर, 1976 को पंजाब के पठानकोट ज़िले के गाँव शाहपुर कण्डी में हुआ। उन्होंने गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर से बी.एस.सी. तथा जम्मू यूनिवर्सिटी के रामिष्ट कॉलेज से बी.एड. किया। कुछ समय तक अध्यापन करने के बाद वो अपना व्यवसाय करने लगे।

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फ़ेहरिस्त

1. किसी के काम आने लग गए हैं .......... 18
2. मिरी ज़मीन पे ये आसमान किसका है। .......... 19
3. छोड़ ये दुनियादारी यार .......... 20
4. रंग उभर आए सब पस-ए-दीवार .......... 21
5. यहाँ से दूर का मंजर दिखाई देता है। .......... 22
6. इस फ़साने से उस फ़साने तक .......... 23
7. आँसू आँसू होने को .......... 24
8. रौशनी क्या पड़ी है कमरे में .......... 25
9. आँख में बे-ख़्वाब नींदें भर गया .......... 26
10. किस खराबे में मुझको लाया है .......... 27
11. समुन्दर के भँवर में कितने मंजर तैरते हैं .......... 28
12. तमाम अक्स अँधेरों में खो गए जैसे .......... 29
13. बिछड़ने के सिवा रस्ता नहीं था .......... 30
14. जिधर भी देखता हूँ हर तरफ़ सियासत है। .......... 31
15. वहशतों में बसर नहीं करते .......... 32
16. सभी के सामने रोता था और हँसता था .......... 33
17. उनसे हर रोज मुलाक़ात कहाँ होती है .......... 34
18. इक अँधेरा सा था जिसको रौशनी समझे थे हम .......... 35
19. कभी ज़मीन कभी आसमाँ को तकता हूँ .......... 36
20. एक तस्वीर बोलती होगी .......... 37
21. गुमसुम गुमसुम बैठे रहना .......... 38
22. कोई पर्दा नजर नहीं आता .......... 39



किसी
के काम आने लग गए हैं
सो हम भी कुछ कमाने लग गए हैं।
ये झीलें भर गई हैं बारिशों में
परिन्दे आने-जाने लग गए हैं
हवा--शहूर इधर भी  गई है
यहाँ भी कारखाने लग गए हैं
ये कोयल गा रही है हिज्र अपना
सो हम भी गुनगुनाने लग गए हैं
वही इक शेर मुझमें साँस लेगा
जिसे कहते जमाने लग गए हैं
शिकारी दाना ले कर  गया है
परिन्दे फड़फड़ाने लग गए हैं
जहाँ हम धूप से करते थे बातें
वहाँ अब शामियाने लग गए हैं


मिरी ज़मीन पे ये आसमान किसका है
सफ़र मिरा है मगर सायबान किसका है
जो तू नहीं तो ये वहम--गुमान किसका है
ये सोते-जागते दिन-रात ध्यान किसका है
ये गिरती टूटती दीवारें किसके घर की हैं
वो दूर एक नया सा मकान किसका है
कहाँ खुली है किसी पे ये वुसअत--सहरा'
सितारे किसके हैं ये आसमान किसका है
मुखालिफ़ीन' तो सब राय दे चुके अपनी
जो आया है मिरे हक़ में बयान किसका है


छोड़ ये दुनियादारी यार
दिल से मिल इक बारी यार
जीने ही कब देती है
जीने की बीमारी यार
एक तो मीलों लम्बी रात
उस पे शब-बेदारी'यार
आते आते आएगी
लफ़्ज़ों में तहदारी' यार
ऐसे उतरी कल की शाम
पड़ गई मुझपे भारी यार
एक पुरानी धुन फिर से
हो गई मुझपे तारी यार


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