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Dharm Yog aur Adhyaatm ka Saar
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आदमी को इस दुनिया के बहुत सारी चीजों के विषय में पता है, लेकिन वह अपने विषय में अनजान है। इसे पता नहीं है की उसका स्वरुप क्या है ? क्या वह मन, पांच ज्ञानेंद्रिय, पांच कर्मेन्द्रियों से बना पांच तत्वों का शरीर मात्र है या वह खुद ब्रम्ह स्वरुप है? दरअसल आदमी अज्ञान में जिंदगी जीते हुए एक दिन मर जाता है । उसे अपने विषय में तनिक भी ज्ञान नहीं है कि वह स्वयं ही ब्रह्म स्वरुप है जिसे छान्दोग्य उपनिषद ने ‘तत् त्वम् असि’ या ‘तत्त्वमसि’ कहा है,अर्थात वह ब्रह्म तुझमें, मुझमें और सब जीवों में है। बृहदारणक्य उपनिषद ‘अहम् ब्रह्मस्मि’ का उद्घोष करता है, अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ। ऐतरेय उपनिषद; प्रज्ञान ब्रह्म ; कहता है, यानि ब्रह्म का बोध ही ज्ञान है । लेकिन अपने ब्रह्म स्वरुप का अहसास केवल गहन ध्यान की अवस्था यानि समाधी की अवस्था में किया जा सकता है। इंसान खुद ही ब्रह्म स्वरुप है, मगर उसका तनिक भी एहसास उसे नहीं है। वह अज्ञान में ही जीवन को बर्बाद करके इस दुनिया से विदा हो जाता है। उपनिषदो के ज्ञान, भगवत गीता में श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए सांख्य (ज्ञान), भक्ति और कर्म योग की शिक्षा, भगवान बुद्ध के
उपदेश, महर्षि पतंजलि का योग सूत्र और संत कबीर की वाणियां हमें अज्ञान से बाहर निकालकर ज्ञान के प्रकाश के तरफ ले जाती हैं और मानव को उसके वास्तविक स्वरुप से परिचित कराती हैं।
आज धर्म और संप्रदाय को लेकर आदमी -आदमी का शत्रु बनते जा रहा है। संत कबीर कहते है ;
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा,
तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी लड़ी मुए,
मरम न कोउ जाना।
यानि धर्म क्या ? उसका तात्विक सार क्या? इसे आम लोगो को पता नहीं है और आदमी में मानवीय संवेदना गायब होती जा रही है। आज चारो तरफ ईर्ष्या,द्वेष, असंतोष, क्रोध तथा नकारात्मक विचारो का आलम है। दिन प्रति दिन आदमी में इंसानियत गायब होती जा रही
जो मानव के अस्तित्व के लिए चिंताजनक है। प्रेम, वन्धुत्व, ख़ुशी , अहिंसा और करुणा ही मानव जीवन को श्रेष्ठ बनाने का आधार है जो अध्यात्म और योग के द्वारा ही पैदा की जा सकती है। प्रस्तुत पुस्तक में लेखन ने धर्म, योग और अध्यात्म के सार को धर्मग्रंथो, प्रामाणिक ग्रंथों तथा संतों, महर्षियों के विचारों के आधार पर प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, ताकि मानव जीवन से भ्रम और अज्ञानता का अँधेरा दूर हो सके और संसार में सकारात्मक विचारो का प्रचार हो। इस पुस्तक में धर्म के लक्षण, ब्रह्म, आत्मा, माया,अविद्या, कर्म
का विधान तथा पुनर्जन्म के सिद्धांत का जिक्र किया गया है और सभी धर्मों, अध्यात्म और योग की विस्तृत चर्चा की गई हैं ताकि हर मानव के लिए यह पुस्तक “धर्म योग और अध्यात्म का सार” उपयोगी हो सकें ।
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