Deepshikha Sa Jeevan Hai
Author | Jai Shankar Mishra |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9351868514 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.175 kg |
Edition | 1 |
Deepshikha Sa Jeevan Hai
प्रस्तुत कविता-संग्रह 'दीपशिखा सा जीवन है' श्री जयशंकर मिश्र की काव्य-यात्रा का षष्ठम सोपान है। इसमें कुल 56 नवीन रचनाएँ सम्मिलित की गई हैं। इससे पूर्व की रचनाएँ 'यह धूप-छाँव, यह आकर्षण', 'हो हिमालय नया, अब हो गंगा नई', 'चाँद सिरहाने रख', 'बाँह खोलो, उड़ो मुक्त आकाश में' एवं 'बस यही स्वप्न, बस यही लगन' हिंदी साहित्य-जगत् में अत्यधिक रुचि, उल्लास एवं गंभीरता के साथ स्वीकार की गई हैं।श्री मिश्र की कविताओं में भाषा की सहजता, सरलता एवं सुगमता के साथ ही अंतर्निहित पारिवारिक एवं सामाजिक समरसता की महत्ता, युग-मंगल की कामना, जीवन के उद्देश्यों के प्रति सतत चिंतन तथा परिवेश की विविध जटिलताओं के बावजूद मानव जीवन को सौंदर्यमय एवं शिवमय बनाने की बलवती भावना रचनाकार को एक विशिष्ट पहचान देती है। अनेक रचनाओं में प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों के प्रति रचनाकार की संवेदनशीलता तथा तादात्म्य स्थापित करने का रुझान भी प्रतिबिंबित होता है।वर्तमान कविता-संग्रह के प्रति डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के निम्न उद्गार महत्त्वपूर्ण हैं—''मैंने श्री जयशंकर मिश्र की कविताएँ पढ़ीं। ये एक संवेदनशील चित्त की भावाभिव्यक्तियाँ हैं, जो सागर के, प्रकृति के, परिवेश और परिवार के संबंध में हैं। कविता अपने बुनियादी रूप में कवि की भावाभिव्यक्ति ही होती है। मिश्रजी ने अपनी रागात्मक संव��दनाओं को छंदोबद्ध रूप में प्रस्तुत किया है, जिनमें उनकी स्मृति और प्रीति, वेदना और उल्लास तथा आशा और मंगलकामना व्यक्त हुई है। आशा है, पाठक इनका स्वागत करेंगे।''____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमप्रस्तावना —Pgs 7अपनी बात —Pgs 13आभार —Pgs 171. दीपशिखा सा जीवन है —Pgs 232. मिट्टी के सही, पर दीप जलें —Pgs 243. अथ कहाँ से करूँ —Pgs 264. जीवन की दो विधाएँ —Pgs 285. गीत लिता रहा —Pgs 306. जीवन के सघन गहन वन में —Pgs 327. जगमग दीप जले —Pgs 338. प्रणय-गान ही गाना —Pgs 349. हिमगिरि सा मन —Pgs 3610. राहें नई नित बनाते रहे —Pgs 3711. रहता यों अतृप्त अनवरत —Pgs 3812. जो अप्राप्त, यों भाता है —Pgs 4013. पुलकित साँझ देहरी आई —Pgs 4114. नया आयाम, नई राह —Pgs 4215. किसने सतरंगी रंग भरे —Pgs 4416. जो सहज प्राप्त वह अर्थहीन —Pgs 4517. मीत भी साक्ष्य भी —Pgs 4618. स्नेह-प्यार के इस आँगन में —Pgs 4719. निशिवासर प्रवहमान —Pgs 4820. तुम नहीं जानते हो प्रियवर —Pgs 5021. जन-जन पर छाई तरुणाई —Pgs 5222. नित नेह-पुष्प बिराऊँगा —Pgs 5323. जब दिवस हो सफल —Pgs 5424. शुचिता की प्रतिमूर्ति —Pgs 5525. दीपों का उत्सव —Pgs 5726. नव-शदों के गीत सुनाऊँ —Pgs 5827. प्रीति ही सृष्टि का मूल आधार है —Pgs 5928. धुँधली स्मृतियों का साक्षी —Pgs 6029. पुलकित प्रमुदित जीवन-कानन —Pgs 6230. नीलिमा-नीलिमा का यह अद्भुत मिलन —Pgs 6331. साँझ का कुहासा —Pgs 6432. नव विहान की बात करें —Pgs 6533. निज तन-मन एकाकार करें —Pgs 6634. नि:सृत होती हिम-शृंगों से —Pgs 6735. आह्लाद की मूर्ति है —Pgs 6836. प्रीति की अला जगाएँगे —Pgs 6937. मन अनमना हो जाता है —Pgs 7038. नव गगन चाहिए —Pgs 7239. स्वामित्व त्याग उपभोग करें —Pgs 7340. प्रीति के गीत गाते रहे —Pgs 7441. दिन दूनी रात चौगुनी हो —Pgs 7642. श्रेय-प्रेय दोनों जीवन में —Pgs 7743. मुझे मुत कर दो —Pgs 7844. कभी जीत, कभी हार —Pgs 8045. तुम तेज-पुंज हो शति-स्रोत —Pgs 8146. वास्को डि गामा का अंतिम पड़ाव —Pgs 8247. सागर तट का स्वर्णिम विहान —Pgs 8448. परम ज्योति से दीप्तिमान —Pgs 8549. हम कब पहचान पाते हैं —Pgs 8650. अजब पहेली है जीवन —Pgs 8851. ठहरो गतिमय जीवन! —Pgs 8952. कौन टिकता है, कब सूर्य के सामने —Pgs 9053. जाग्रत् जीवन —Pgs 9154. तत्काल तिरोहित कर देती —Pgs 9255. दिवस ईश-वंदन का —Pgs 9356. किंचित् भी पश्चाप नहीं —Pgs 94
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