Dahan
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Author | Suchitra Bhattacharya |
Language | Hindi |
Publisher | Rajkamal |
Pages | 167p |
ISBN | 978-8171195909 |
Item Weight | 0.5 kg |
Dimensions | 26*16*7 |
Edition | - |
Dahan
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हम पुस्तक क्यों पढ़ें
• ‘दहन’ प्रतिष्ठित कथाकार मनोज रूपड़ा का पाँचवाँ कहानी-संग्रह है। ‘प्रतिसंसार’ और ‘काले अध्याय’ नाम उनके दो उपन्यास भी बहुचर्चित हैं।
• ‘दहन’ की पाँचों कहानियाँ पाँच अलग-अलग थीम पर हैं। लेकिन एक चीज जो कॉमन है इनमें वह है इसके चरित्रों का पैशन। वे अपने काम के प्रति या कि अपनी भावनाओं के प्रति एक जिद और आवेग से भरे हुए हैं। उनका यही आवेग इन कहानियों में खून की तरह बहता है।
• हिंसा और प्रतिहिंसा के बीच की डार्क मनःस्थिति का जैसा बयान ‘दहन’ संग्रह की दो कहानियों में है वह दुर्लभ कोटि का है। संग्रह की एक कहानी अनुभूति में संगीत की दुनिया की विसंगतियों का मुहब्बत भरा बयान है।
विशेषज्ञों की राय
खोज और जादू से भरे अपने भीतर के कथानक को तैयार करना मनोज रूपड़ा का एक अद्भुत खेल है। वे बीहड़ कथा-शिल्पी हैं, उन्होंने अपनी खुरदुरी भाषा भी बनाई है।
—ज्ञानरंजन
अपने खुशहाल संसार के स्वप्न को तलाशता हुआ हमारे समय का मनुष्य निजी जीवन में भले ही कितनी भी हीनतर स्थितियों से घिरा क्यों न हो, वह उन्हें लगातार भूले रहना चाहता है। मनोज रूपड़ा ज़बरदस्ती उनकी याद दिलाते हैं। जैसे यह कहते हुए कि यह कबाड़ हमारे जीवन का ख़ौफनाक सच है। उससे मुँह चुराने से सबकुछ ठीक नहीं हो जाएगा। मनोज रूपड़ा की लड़ाई इसलिए बड़ी लगती है कि इतिहास, समकाल और प्रतिरोध तीनों का रसायन इसमें मिला हुआ है। वे जीवन की सहजता के नहीं उसकी जटिलताओं के कथाकार हैं।
—बसन्त त्रिपाठी
पुस्तक के बारे में
मनोज रूपड़ा की कहानियाँ बाजदफे आपके पढ़ने की गति को धीमा करती हैं। ऐसा गत्यावरोध संरचनात्मक स्तर पर किन्हीं भारी-भरकम, क्लिष्ट वाक्य-विन्यास से प्रसूत नहीं, न ही अर्थागम के स्तर पर ही। बात दरअसल कुछ और है। एक बार शुरू करने के बाद आप उन्हें जल्दी खत्म नहीं करना चाहते, खत्म करने से डरते हैं। मनोज के यहाँ आपके वे बिसराये पाप बसर करते हैं, आपके मानस तक जिनकी अवैध आमद बस सपनीले साँवले में ही सम्भव है। मनोज में उन गोपनीय पापों को उनकी नंगी संपूर्णता में रखने का माद्दा है। वस्तुतः मनोज की दो पंक्तियों की सन्ध में सरगोशी करते आपके अतीत के ऐसे पाप ही आपकी पढ़त को बारहाँ बाधित करते हैं।
मनुष्य का यही 'बेसिक इंस्टिंक्ट' मनोज की कहानियों का मूलाधार है। यही मनोज के नायकों को आहत करता है, उन्हें दर-ब-दर करता है, तोड़कर पुनर्नवा - 'रीकंस्ट्रक्ट' और 'रिन्यू' करता है। मनोज अपने नायकों के व्यक्तित्व व उनके अहं को बड़ी निर्ममता से विखंडित करते हैं। वे इसे प्रलय के स्तर तक ले जाते हैं, किन्तु वहाँ से लौटते हुए उनका अनाहत अहं सर्जना के उरूज पर प्रतिष्ठित होता है।
मनोज इस हारे हुए समय में मनुष्य की विजय के इकलौते स्मारक हैं। सँभालकर-सँजोकर रखे जाने वाले कथाकार। कयामत से पहले इनकी कहानियों को बचाकर रख लेना चाहिए, ये अगली दुनिया के निर्माण का ब्लूप्रिंट हैं।
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