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Chaitanya Mahaprabhu
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चैतन्य महाप्रभु का बचपन का नाम विश्वंभर था। उनका जन्म चंद्रग्रहण के दिन हुआ था। लोग चंद्रग्रहण के शाप के निवारणार्थ धर्म-कर्म, मंत्र आह्वान, ओ३म् आदि जप-तप में जुटे हुए थे। शायद इस धार्मिक प्रभाव के कारण ही चैतन्य बचपन से ही कृष्ण-प्रेम और जप-तप में जुट गए। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक उच्च कोटि का संत बनेगा और अपने भक्तों को संसार-सागर से तार देगा।बचपन से ही चैतन्य कुशाग्र बुद्धि के थे। उन्होंने अपने अकाट्य तर्कों से स्थानीय पंडितों को दर्शन और अध्यात्म चर्चा में धराशायी कर दिया था। बाद में वैष्णव दीक्षा लेने के पश्चात् चैतन्य दार्शनिक चर्चा के प्रति उदासीन हो गए। उन्होंने कृष्ण नाम-कीर्तन आरंभ कर दिया। चैतन्य ने कलियुग में भक्तियोग को मुक्ति का श्रेष्ठ मार्ग बताया है।उनकी लोकप्रियता से खिन्न होकर एक बार एक पंडित ने उन्हें शाप देते हुए कहा, 'तुम सारी भौतिक सुविधाओं से वंचित हो जाओ।' यह सुनकर चैतन्य खुशी से नाचने लगे। माता-पिता ने उन्हें घर-गृहस्थी की ओर मोड़ने के लिए उनका विवाह भी कर दिया, लेकिन उन्होंने गृह त्याग दिया, अब सारी दुनिया ही उनका घर थी।भगवान् कृष्ण के अनन्य उपासक, आध्यात्मिक ज्ञान की चरम स्थिति को प्राप्त हुए चैतन्य प्रभु की ईश्वर-भक्ति की सरस जीवन-गाथा जो पाठक को भक्ति की पुण्यसलिला में सराबोर कर देगी।_____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमअपनी बात — Pgs. 51. जन्म — Pgs. 132. बाल्यकाल — Pgs. 153. नृत्योन्माद — Pgs. 194. भाई का गृहत्याग — Pgs. 235. निमाई की शरारतें — Pgs. 286. उपनयन संस्कार — Pgs. 327. शिक्षा-दीक्षा — Pgs. 368. पत्नी को सर्पदंश — Pgs. 429. माँ द्वारा पुत्र के पुनः विवाह का प्रयास — Pgs. 4510. विष्णुप्रिया के साथ विवाह — Pgs. 4811. वैष्णव भक्ति में रुचि जाग्रत् — Pgs. 5312. गया की तीर्थयात्रा — Pgs. 5513. निमाई ने गुरुमंत्र लिया — Pgs. 5914. निमाई का भाव-परिवर्तन — Pgs. 6315. वैष्णव समुदाय में निमाई की कीर्ति — Pgs. 6716. निमाई और निताई की भेंट — Pgs. 7017. विष्णु रूप निमाई — Pgs. 7618. हरिदास की सेवा-शुश्रूषा — Pgs. 8019. जगाई-मधाई का हृदय-परिवर्तन — Pgs. 8520. श्रीवास के यहाँ शोक में कीर्तन — Pgs. 9021. जन-कल्याणार्थ संन्यास की इच्छा — Pgs. 9722. माँ और पत्नी से संन्यास की अनुमति — Pgs. 10423. निमाई से श्रीकृष्ण चैतन्य भारती — Pgs. 11024. निमाई का पुरी में वास — Pgs. 11425. चैतन्य की दक्षिण यात्रा — Pgs. 11726. चैतन्य द्वारा तीर्थ-भ्रमण — Pgs. 12627. राजा प्रतापरुद्र का आग्रह — Pgs. 13328. श्रीजगन्नाथ रथयात्रा महापर्व — Pgs. 13629. संन्यासी के रूप में पत्नी से भेंट — Pgs. 14030. चैतन्य की वृंदावन-यात्रा — Pgs. 14331. चैतन्य का गोलोक गमन — Pgs. 150परिशिष्टविष्णुप्रिया का देहत्याग — Pgs. 152श्रीशिक्षाष्टक — Pgs. 155संदर्भ-सूची — Pgs. 160

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