Bureaucrats Aur Jharkhand
Item Weight | 272 Grams |
ISBN | 978-9353225834 |
Author | Anuj Kumar Sinha |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan |
Book Type | Hardbound |
Edition | 1 |

Bureaucrats Aur Jharkhand
यह पुस्तक अनुभवी और जिम्मेवार पदों पर काम कर चुके अधिकारियों द्वारा लिखे गए लेखों का संकलन है। इन लेखों में अधिकांश लेख झारखंड या देश के आई.ए.एस.-आई.पी.एस. अफसरों द्वारा लिखे गए हैं। ये सारे लेख 'प्रभात खबर' में समय-समय पर प्रकाशित हुए हैं। कोई भी राज्य तब तरक्की करता है, जब सरकार और ब्यूरोक्रेट्स अपना-अपना काम ढंग से करते हैं, दोनों में तालमेल रहता है। सरकारें नीतियाँ बनाती हैं, निर्णय लेती हैं और ब्यूरोक्रेट्स उन्हें लागू करते हैं। कई बार सत्ता-ब्यूरोक्रेट्स में तालमेल गड़बड़ाता है। आरोप-प्रत्यारोप में समय निकल जाता है। जब झारखंड के नवनिर्माण की बात आई, तो राजनीतिज्ञों (यहाँ सरकार) ने अपने तरीके से काम किया। अफसरों की अपनी सोच थी कि कैसे राज्य विकसित हो सकता है। 'प्रभात खबर' ने प्रयास किया था कि झारखंड कैसे विकसित होगा, विकास का मॉडल क्या होगा, इस पर अधिकारी भी खुलकर बोलें और लिखें भी। तब आई.ए.एस.-आई.पी.एस. अफसरों ने हिम्मत कर अपनी बात लेखों के माध्यम से रखी थी। लेख लिखनेवालों में ब्यूरोक्रेट रह चुके तब के राज्यपाल प्रभात कुमार और वेद मारवाह भी थे। ये महत्त्वपूर्ण दस्तावेज हैं, जो झारखंड को समझने में सहायक साबित होंगे। इनमें कई ऐसे अफसरों के लेख या इंटरव्यू हैं, जो बाद में झारखंड के मुख्य सचिव या डी.जी.पी. भी बने। इन लेखों का मकसद एक था—सिस्टम को और अच्छा करके झारखंड को आगे ले जाना। यह सिर्फ लेख नहीं, भविष्य का रोडमैप भी था, इसलिए ये लेख भविष्य में योजना बनाते समय भी बहुत काम आएँगे।________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमअपनी बात —Pgs.51. झारखंड का विकास —प्रभात कुमार —Pgs.152. आबुआ कामिको, आबुआ ते चलाओ —प्रभात कुमार —Pgs.203. जहाँ प्रशासन विफल है, वहीं उग्रवाद है —वेद प्रकाश मारवाह —Pgs.254. गुड गवर्नेंस की स्थापना के लिए दृढ राजनीतिक इच्छाशक्ति जरूरी —वेद प्रकाश मारवाह —Pgs.295. झारखंड में ब्यूरोक्रेसी डिमोरलाइज की गई —वी.एस. दुबे —Pgs.326. संकीर्णमना झारखंड सरकार —वी.एस. दुबे —Pgs.417. दूध की धुली नहीं है ब्यूरोक्रेसी —वी.एस. दुबे —Pgs.478. नौकरशाही में देशज संस्कृति-संवेदना का अभाव है —सुभाष शर्मा —Pgs.559. अनुत्पादक कार्यों को बाय-बाय करे सरकार —डी.के. तिवारी —Pgs.6010. प्रशासनिक मॉडल बने झारखंड —आई.सी. कुमार —Pgs.6811. जरूरत झारखंडियों का सपना बचाने की —एस.के. चाँद —Pgs.7512. झारखंड में शिक्षा —मृदुला सिन्हा —Pgs.8113. संचिकाओं में उलझी सरकार —जे.बी. तुबिद —Pgs.8414. भारत बनाम इंडिया : विकास का वैकल्पिक मॉडल —वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी —Pgs.9115. सफर अभी लंबा है झारखंड का —शिवेंदु —Pgs.9516. अगर मैं झारखंड का प्रथम मुख्यमंत्री होता! —गुमनाम नौकरशाह —Pgs.10017. गवर्नेंस की सारी संस्थाएँ ध्वस्त होने के कगार पर —राधा सिंह —Pgs.10418. ब्यूरोक्रेसी को प्रोफेशनल बनाना होगा —श्याम शरण —Pgs.11019. राजनीतिक दलों के एजेंडे पर नहीं सुशासन का मुद्दा —मुचकुंद दुबे —Pgs.11320. क्या है इ-गवर्नेंस? —आर.एस. शर्मा —Pgs.11721. झारखंड नवनिर्माण : विकल्प, विकास और सुनहरा अवसर —एस.के. चाँद —Pgs.12722. शिक्षा, सड़क, पानी, बिजली से आएगी खुशहाली —यशवंत सिन्हा —Pgs.13323. ब्यूरोक्रेसी व राजनेता लोकतंत्र के स्तंभ —राम उपदेश सिंह —Pgs.13924. विचार के धन की लूट में सब साझीदार —जियालाल आर्य —Pgs.14325. प्रशासन में स्थानीय संवेदना जरूरी —जी. कृष्णन —Pgs.14626. सत्ता और भत्ता मोह से बाधित विकास —आई.सी. कुमार —Pgs.14827. दृढ संकल्प और मजबूत नेतृत्व चाहिए —आर.ई.वी. कुजूर —Pgs.15128. ब्यूरोक्रेसी, व्यूह रचना और मार्केटमैनिया —वाई.बी. प्रसाद —Pgs.15529. तार-तार होती बिहार की नौकरशाही —राम उपदेश सिंह —Pgs.16330. स्वाधिकार का गढ़ बनता प्रजातांत्रिक प्रतिनिधित्व —कमला प्रसाद —Pgs.17231. बोर्ड को अपनी पॉकेट संस्था बनाना चाहते थे मंत्री —राजीव रंजन —Pgs.17432. रोड शो करने, हाथ जोड़ने से इंडस्ट्रियलिस्ट नहीं आएँगे, उन्हें चाहिए... —संतोष सतपथी —Pgs.18233. उग्रवाद पर काबू के लिए विकास को प्राथमिकता जरूरी —राजीव रंजन प्रसाद —Pgs.19034. सुशासन की पहली शर्त है जनता के प्रति निष्ठा —वरिष्ठ आई.ए.एस. 19735. अगर पॉलिटिकल विल-पावर हो तो कार्यसंस्कृति सुधर सकती है —संतोष सतपथी —Pgs.20536. हर खेत में होगी हरियाली —सुधीर त्रिपाठी —Pgs.21137. देर भले हुई, लेकिन झारखंड बेहतर स्थिति में होगा —आर.एस. शर्मा —Pgs.21938. बरगद से हार्वर्ड तक —अशोक कुमार सिंह —Pgs.22939. इनलाइटेंड नेतृत्व से ही गुड गवर्नेंस संभव —टी. नंदकुमार —Pgs.24540. समस्या क्रियान्वयन की है —अरुण कुमार सिंह —Pgs.25141. नो कमेंट्स —विमल कीर्ति सिंह —Pgs.25742. राजनीतिक एजेंडा से नक्सलवाद का सफाया हो सकता है —जी.एस. रथ —Pgs.26743. विकास के लिए भ्रष्टाचार पर अंकुश जरूरी —वी.डी. राम —Pgs.275
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